1947 में आग से घिरे मेवात में गांधी जी जब पहुंचे थे

विभाजन के बाद जब भारत का बड़ा हिस्सा सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में था, तब महात्मा गांधी ने मुसलमानों को पाकिस्तान न जाने के लिए मनाने के लिए जेसराह गांव की यात्रा की थी ।

Update: 2023-08-06 08:03 GMT

Vivek Shukla

वो दिन था 19 दिसंबर,1947 का। दिल्ली में कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। सूरज देवता का कहीं कोई नामो-निशान नहीं था सुबह दसेक बजे तक। सड़कों पर कम ही लोग निकले थे। देश का विभाजन हो चुका था। दिल्ली के शाहदरा, दरियागंज, बेगमपुर, करोल बाग, पहाड़गंज वगैरह में दंगे भड़के हुए थे। उन्हें रोकने की कोशिशें नाकाम हो रही थीं। गांधी जी तब तीस जनवरी मार्ग के बिड़ला हाउस में ठहरे हुए थे। वे दंगों को रोकने की जीन-जान से कोशिशें कर रहे थे। वे बीती 9 सितंबर, 1947 को कोलकाता से दिल्ली आए थे। वे जब शाहदरा रेलवे स्टेशन से बिड़ला हाउस जा रहे थे तब भी दिल्ली जल रही थी। वे अपनी प्रार्थना सभाओं में भी शांति की बहाली की अपीलें कर रहे थे। उन सभाओं में गांधी जी से मिलने मेवात के असरदार मेव नेता चौधरी यासीन खान भी आते थे। वे पंजाब विधान सभा के मेंबर थे। उन्होंने 20 सितंबर, 1947 को गांधी को बताया कि मेवात के हजारों मुसलमान पाकिस्तान जाने को तैयार हैं।

ये जानकारी मिलते ही गांधी जी विचलित हो गए। उन्होंने खुद मेवात जाने का फैसला किया ताकि पाकिस्तान जाने को तैयार बैठे मुसलमानों को सरहद के उस पार जाने से रोका जा सके। इसलिए वे 19 दिसंबर,1947 की सुबह अपने कुछ साथियों के साथ दिल्ली से 60 किलोमीटर दूर मेवात की तरफ निकल पड़े।

चौधरी यासीन खान ने उनसे मिलने के लिए घासेड़ा गांव के एक मैदान में सबको निमंत्रण भिजवाया हुआ था। जाहिर है, गांधी जी को बिड़ला हाउस से मेवात पहुंचने में करीब दो-तीन घंटे लगे होंगे। तब धौला कुआं के आगे कायदे की सड़कें ना के बराबर हुआ करती थी। घासेड़ा में राजस्थान के अलवर और भरतपुर के सैकड़ों मुसलमान कैंपों में रह रहेथे। ये सब पाकिस्तान जा रहे थे। गांधी जी ने घासेड़ा में पहुंचते ही मेव मुसलमानों को लगभग आदेशात्मक स्वर में कहा कि उन्हें पाकिस्तान जाने की कोई जरूरत नहीं है। भारत उनका और वे भारत के हैं। ये सुनते ही वहां पर मौजूद मुसलमानों ने इस्लामिक पाकिस्तान जाने का इरादा त्याग दिया। जो चले गए थे उसके बाद मेवात के मुसलमानों ने पाकिस्तान जाने के बारे में नहीं सोचा।

जब घासेड़ा में गांधी जी पहुंचे तो वहां पर एक 17 साल का एक नौजवान भी अपने पिता के साथ मौजूद था। वो आगे चलकर मौलाना जमील इलियासी के रूप में मशहूर हुए। उन्होंने इंडिया गेट के पास कस्तूरबा गांधी मार्ग की गोल मस्जिद को 1955 में स्थापित किया था। उनकी आंखें गांधी जी की घासेड़ा की यात्रा की कहानी सुनाते हुए भीग जाया करती थीं। उनके पुत्र मौलाना उमेर इलियासी कहते हैं कि मेवात का मुसलमान भले ही इस्लाम को कुबूल कर चुका हो पर उसने अपने हिंदू धर्म के संस्कारों और रीति –रिवाजों को छोड़ा नहीं है। मेवात के मुसलमान अपने हिंदू धर्म के गौत्र से जुड़े हुए हैं।

बहरहाल, जिधर गांधी जी पधारे थे वहां पर गांधी जी के नाम पर एक स्कूल है। गांधी जी ने घासेड़ा में देश के बंटवारे पर अफसोस जताते हुए कहा था कि उनके ना चाहते हुए भी देश बंटा। वे कतई नहीं चाहते थे कि धर्म के नाम पर भारत टूटे। घासेड़ा में तीन-चार घंटे बिताने के बाद उन्होंने चौधरी यासीन खान के घर में वैष्णों भोजन किया। वहां पर भी उनसे तमाम लोग मिलने आते रहे। वे शाम होने से पहले ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए। तब तक ठंड का असर बढ़ने लगा था। शाम को बिड़ला भवन में आयोजित प्रार्थना सभा में शामिल हुए। अफसोस कि अब मेवात सांप्रदायिकता की आग में जलता रहा, पर इस बार किसी नेता को वहां जाने की फुर्सत नहीं मिली।

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