अमेरिका में गुरूपूर्णिमा के अवसर पर त्रिमुखी शंकर भगवान की स्थापना एवं बिल्व वृ़क्ष का रोपण

Update: 2016-07-20 11:18 GMT
अमेरिका-ऋषिकेश,

परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने, सम्पूर्ण अमेरिका व कनाड़ा में रहने वाले अपने असंख्य शिष्यों को  गुरूपूर्णिमा को हरित रूप से मनाने के लिये प्रेरित किया। उन्हांेेने कहा, 'गुरू हमारे जीवन से अन्धकार को मिटाकर प्रकाश लाता है। यही गुरू शब्द का निहितार्थ है। किन्तु हमारा दायित्व क्या है? हमारा दायित्व है कि गुरू प्रदŸा इस प्रकाश से अन्य के जीवन को भी प्रकाशित करें जैसे की आॅक्सीजन सम्पूर्ण पृथ्वी के स्वस्थ भविष्य के लिये आवश्यक है। उसी प्रकार गुरूप्रदŸा प्रकाश केवल अपने स्वयं के लिये न हो अपितु हमें इस प्रकार प्रकाशित होना है कि हम दूसरों को भी प्रकाशित कर सकें।  


केन्टकी अमेरिका में स्थित हिन्दू मन्दिर में गुरूपूर्णिमा के अवसर पर गुरूपूजा का विशेष कार्यक्रम सम्पन्न हुआ जिसमें पूज्य स्वामी जी एवं साध्वी भगवती सरस्वती जी ने गुरूपूर्णिमा के महत्व पर अपने प्रेरणाप्रद विचार व्यक्त किये। इसके साथ ही त्रिमुखी शंकर भगवान की स्थापना एवं ऋषिकेश भारत से लाये गये बिल्व फल से प्राप्त बीज से उत्पन्न किये गये  बिल्व पौधे का रोपण किया गया।कई वर्षांे पूर्व ए़क भक्त के द्वारा परमार्थ निकेतन ऋषिकेश से एक बिल्व पौधे का बीज लाकर लुईवेल, केन्टकी में रोपा गया था। उस बीज ने अब एक सशक्त पौधे का रूप प्राप्त कर लिया है जिसे आज गुरूपूर्णिमा के शुभ अवसर पर जमीन में रोपित कर इस अवसर को हरित गुरूपूर्णिमा के रूप में शिष्यों के मध्य हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस वृक्ष के माध्यम से ऋषिकेश व लुईवेल, केन्टकी के मध्य पवित्र सेतु की; एक पवित्र सम्बंध की स्थापना भी हो गयी। गुरूपूर्णिमा के दिवस से कावंड़ मेला के गौरव पूर्ण आयोजन हेतु पूज्य स्वामी जी के दिशा निर्देश में ऋषिकेश में भी विभिन्न प्रकार के पौधों का रोपण किया गया।



सम्पूर्ण दुनिया में पूज्य स्वामी जी जहाँ भी जाते है; उस नगर व देश में वृक्षारोपण कार्यक्रम को प्रोत्साहित करते है। गुरूपूर्णिमा की पूजा सम्पन्न होने के पश्चात पूज्य स्वामी जी ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी शिष्यों को बेल का पावन पौधा प्रदान किया तथा संकल्प कराया कि प्रत्येक पारिवारिक अवसर पर सभी शिष्य एक-एक पौधे का रोपण अवश्य करेंगे। अपने उद्बोधन में स्वामी जी ने कहा, 'गुरू हमारे अन्दर निहित वातावरण को बदलता है; हममें से अधिकतर लोग आंतरिक ऊष्मा से युक्त होते हैं जैसे कि क्रोध, वासना, अंहकार। गुरू से प्राप्त ज्ञान से अंतःकरण मंे शीतलता प्राप्त होती है। उसके साथ ही आज हमें बाहरी वातावरण को शुद्ध करने के लिये भी प्रतिबद्ध होने की जरूरत है। बाहरी वातावरण का ताप भी अगाध गति से बढ़ रहा है जो भविष्य में विनाश का कारण बन सकता है। हमें आंतरिक व बाहरी दोनो वातावरण पर ध्यान देना होगा।'  

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