संसद नहीं संविधान सर्वोच्च: पी. चिदंबरम
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए चिदंबरम ने यह बात कही।
New Delhi: केंद्र सरकार के केंद्रीय मंत्री हाल के दिनों में कई बार सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम व्यवस्था पर सार्वजनिक रूप से सवाल उठा चुके हैं। अब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन) कानून को रद्द करने के फैसले की आलोचना की है। जिस पर पूर्व केंद्रीय मंत्री पी.चिदंबरम ने उपराष्ट्रपति के बयान पर आपत्ति जताई है। चिदंबरम ने कहा है कि देश की संसद नहीं बल्कि संविधान सर्वोच्च है।
जानिए क्या है पूरा मामला
उपराष्ट्रपति (Voice President) जगदीप धनखड़ बुधवार को जयपुर में 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने अपने संबोधन में न्यायपालिका को कटघरे में खड़ा किया और कहा कि न्यायिक मंचों से श्रेष्ठता और सार्वजनिक दिखावा सही नहीं है। इन संस्थानों को पता होना चाहिए कि किस तरह का व्यवहार करना है। उपराष्ट्रपति ने साल 2015 में NJAC कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द करने और 1973 के केशवानंद भारती मामले में दिए फैसले की आलोचना की। उन्होंने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से असहमत हैं, जिसमें कहा गया है कि संसद, संविधान में संशोधन कर सकती है लेकिन उसकी मूल संरचना में बदलाव नहीं कर सकती।
P चिदंबरम ने कर दी कड़ी प्रतिक्रिया
उपराष्ट्रपति(Voice President) के इस बयान पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी.चिदंबरम ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। चिदंबरम ने ट्वीट करते हुए लिखा कि "राज्यसभा के माननीय सभापति जब कहते हैं कि संसद सर्वोच्च है तो वह गलत हैं क्योंकि देश का संविधान सर्वोच्च है। संविधान के मूलभूत सिद्धांतों पर बहुमत आधारित हमलों को रोकने के लिए ही मूल संरचना विकसित की गई थी।" कई ट्वीट करते हुए चिदंबरम ने लिखा कि "मान लीजिए, संसद बहुमत से क्या देश की संसदीय व्यवस्था को राष्ट्रपति व्यवस्था में बदल सकती है? या फिर संविधान की सातवीं अनुसूची से राज्य सूची को खत्म कर राज्यों की विधायी शक्तियों को छीन सकती है? क्या ऐसे संशोधन मान्य होंगे।
सरकार ने 2015 में बनाया था कमीशन
बता दें कि केंद्र सरकार ने जजों की नियुक्ति के लिए साल 2015 में नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन कानून बनाया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था। साथ ही साफ कर दिया था कि जजों की नियुक्ति पहले की तरह कॉलेजियम सिस्टम से होगी। जिसके बाद से ही सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच तनातनी जारी है