कांग्रेस के 70 साल में अंतरविरोध सामने नहीं आए,बीजेपी के 9 साल में खुलकर आ गए क्यों?

Contradictions did not come to the fore in 70 years of Congress, why did they come openly in 9 years of BJP

Update: 2023-07-24 05:19 GMT

शकील अख्तर 

कांग्रेस ने सत्तर साल शासन किया। बहुत गलतियां की होंगी। मगर उसके अन्तरविरोध कभी ऐसे सामने नहीं आए जैसे भाजपा सरकार के 9 साल में आ गए। दरअसल पाखंड ज्यादा नहीं चलता है। जनता भोली होती है। धर्म का नशा जब हो तो बेसूध भी हो जाती है। मगर बेवकूफ नहीं होती। और भारत के लोगों को तो खासतौर से दुनिया ने सहज बुद्धि ( कामन सेंस) का बड़ा उदाहरण माना है।

नार्मन बोरोलाग जिन्होंने भारत में हरित क्रान्ति होते देखी है। और जो विश्व में ग्रीन रेवेल्यूजोशन के जनक कहे जाते हैं ने यहां के किसानों के बारे में कहा था कि सहज ज्ञान में विश्व में इनका कोई मुकाबला नहीं है। आप इस बात का मतलब इस तरह समझिए कि भारत में किसान सबसे स्लो समुदाय है। भारत में वर्षा आधारित कृषि होने के कारण किसान के पास ज्यादा काम नहीं होता तो वह बैठा ज्यादा रहता है। उसकी शारिरिक गतिविधियां धीमी गति से होती हैं। पुरानी परंपरागत खेती में हल बैल के माध्यम से काम भी धीमी गति से होता था। किसान को बैल की गति से चलना पड़ता था। मगर इसका मतलब यह नहीं कि उसकी बुद्धि भी नहीं चलती हो। यही नोबल पुरस्कार विजेता नार्मन बोरोलाग ने कहा था। दुनिया भर में कृषि के उन्नत तरीके सीखा रहे अपने अनुभवों के परिप्रेक्ष्य में उनका यह कहना बहुत महत्वपूर्ण था कि भारतीय किसान परंपरा से सीखे अपने ज्ञान के साथ नई चीज भी सीखने को उत्सुक रहता है और उसके सीखने समझने की क्षमता काबिले तारीफ है।

भारत में हरित क्रान्ति बहुत सफल रही। और इसका श्रेय भारतीय कृषि वैज्ञानिक, राजनीतिक नेतृत्व तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी से जरा भी कम किसानों का नहीं है। जमीन पर फसलें उन्होंने ही उगाईं। मगर फिलहाल किसान का विषय आज के कॉलम का नहीं है। बहुत लिखा है। और लिखेंगे। मगर अभी मुद्दा है सोए हुए लोगों के जगने का।

हिन्दु मुसलमान के नशे में सब भूल चुके लोगों के जरा से होश आने का। इसलिए यह बताया कि लोगों को एक बार बेवकूफ बना सकते हैं। दो बार बना सकते हैं। बनाया भी 2014 और 2019 में मगर हर बार की छोड़िए तीसरी बार भी बनाना अब मुश्किल हो रहा है।

मणिपुर ने बहुत जोर से खतरे की घंटी बजा दी है। विडियो को सोशल मीडिया पर बैन करवा दिया गया है। तो क्या उससे खबर गांव गांव जाने से रुक जाएगी? जनता जो जानना चाहती है जान लेती है। आजादी के आंदोलन में कौन से वीडियो थे। कौन सा सूचना तंत्र था? मगर एक दूसरे से बात घर घर पहुंच जाती थी कि गांधी बब्बा किसी से नहीं डरते! अंग्रेजों से लड़ाई कहां कैसी हो रही है गांव देहात में खबरें पहुंच जाती थीं।

तो यह जो चोट पड़ी है। मणिपुर की पीड़ित महिलाओं और उनके परिवारों की आत्मा से जो आवाज निकली है वह दूर दूर तक पहुंच गई। अन्याय के खात्मे के लिए आखिरी चोट कौन सी होगी कहना मुश्किल होता है। अन्याय का मकड़जाल बहुत फैला हुआ होता है। लेकिन स्थाई नहीं होता।

स्थाई केवल सच और उसूल होता है। हिप्पोक्रेसी अस्थाई चीज है। उसके अन्तरविरोध जल्दी ही सामने आ जाते हैं। करो आप नफरत की राजनीति और कहो विकास की! तो जनता को कुछ देर लग सकती है मगर समझ में आती है।

लेकिन उसके लिए जरूरी है कि उसे कोई एक दूसरा आधार दिखे। आसरा। वह जुल्म तब तक ही सहती है जब तक उसको कोई बचाने वाला नहीं दिखता। लेकिन जैसे ही उसे कोई दिखता है वह हाथ आगे बढ़ा देती है। अगर सामने वाला उसे थाम ले तो वह फिर उसकी हिम्मत से हिम्मत पाकर बड़े से बड़े जुल्मी से भी टकरा जाती है।

फिर अंग्रेजों का उदाहरण। जिनके राज में कभी सूरज नहीं डूबता था उनसे यह जनता ही लड़ी थी। उसे जब गांधी दिखे तो उसका सारा डर निकल गया। वह उनके साथ खड़ी हो गई। वहां टर्निंग पाइंट क्या था? क्विट इंडिया। आज टर्निंग पाइंट क्या है सेव इंडिया। INDIA बनते ही लोगों को वह आसरा दिख गया जिसमें उनको सहारा मिल सकता है। विपक्षी दलों का यह गठबंधन इन्डिया लोगों के मन में तेजी के साथ क्लिक कर गया।

प्रचार का अपना असर होता है। मोदी के मुकाबले कौन? सुन सुनकर जनता भी इस पर यकीन करने लगी थी कि कोई नहीं है। कांग्रेस को इसका जवाब देना चाहिए था। मगर वह खुद ही राहुल हटाओ में लगी हुई थी। सोचिए राहुल ने 2019 में अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। पार्टी में कोई पोस्ट उनके पास नहीं थी। मगर कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी जो उस समय अध्यक्ष थीं पत्र लिखकर उन पर राहुल को हमेशा के लिए वनवास भेजने का दबाव बनाया।

वह तो राहुल को समय पर अक्ल आ गई और वह वनवास के बदले भारत जोड़ो यात्रा पर निकल पड़े। कांग्रेस में और देश में गेम चेंज हो गया। राहुल के अन्दर तो अपने लोगों को माफ करने और उनका विरोध न करने की आदर्शात्मक प्रवृति है। वे राजनीति से दूर भी हो सकते थे। मगर सोनिया गांधी नहीं मानीं। समकालीन भारतीय राजनीति की सबसे दृष्टि सम्पन्न नेता सोनिया जानती थीं कि इनका उद्देश्य राहुल को दूर करना नहीं। कांग्रेस को खत्म करना है। आखिर जी 23 के सबसे बड़े नेता गुलामनबी आजाद की असलियत सामने आ ही गई। भाजपा के समर्थन से पार्टी बनाकर उन्होंने बता ही दिया कि वे किसके इशारों पर कांग्रेस को अंदर से तोड़ने की कोशिश कर रहे थे।

तो कांग्रेस ने और सही कहा जाए तो अभी भी कांग्रेस ने नहीं 26 विपक्षी दलों ने कहा है कि हम हैं! मोदी जी का मुकाबला क्या? प्रधानमंत्री मोदी तो एक फेस हैं। पीछे नफरत और विभाजन की राजनीति है। उससे लड़ना है। विभाजन के विचार के सामने समावेशी विचार को लाना। क्षेत्रिय दलों के नेताओं में एक खास बात होती है। अलग ही तरह का आत्मविश्वास। उद्धव ठाकरे ने जवाब दिया। मैं हूं ना! उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि फिल्म का डायलग ऐसे ही है। और यह बात उनके बिना कहे स्पष्ट हो गई कि इस मैं में बहुत बड़ा हम छुपा हुआ है। 26 दलों का। और इस इन्डिया को अब जनता ने एक्सेप्ट कर लिया है।

बड़ी बड़ी बातों के पीछे राजनीति बहुत छोटी थी। खुद उनके मुंह से निकल गई। श्मशान और कब्रिस्तान की बात करके। कोई प्रधानमंत्री इस लेवल तक जाता है! एक तरफ दावा करते हैं विश्व गुरु होने का दूसरी तरफ मणिपुर का ऐसा सच है जिसने दुनिया के सामने हमारा सिर शर्म से झुका दिया। और जो बची खुची कसर थी वह इसको जस्टिफाई करके पूरी कर दी। 9 साल में पैदा किए गए भक्त झूठे विडियो डाल डालकर उसी समुदाय का महिलाओं को बदनाम करने में लग गए। मंत्री तक घटना पर नहीं वीडियो पर सवाल उठाने लगे। मूल चीज वह शर्मनाक वाकया है। सबूत कैसे सामने आया कब आया, नहीं। वीडियो है तो सवाल! और ब्रजभुषण सिंह का नहीं था तो सवाल कि क्यों नहीं है। यह अन्तरविरोध अब सामने आने लगे हैं।

एक के बाद एक घटनाएं हो रहीं हैं। ब्रजभूषण सिंह की गिरफ्तारी तो छोड़िए थाने तक न जाना और जमानत! मध्य प्रदेश में आदिवासी के सिर पर पेशाब करना। और जिन भक्तों को इन 9 सालों में पैदा किया है उनका बेशरम सवाल कि सिर पर पेशाब करना कौन सा अपराध है?

अपराध तो शायद कोई मणिपुर में भी नहीं हुआ। इसीलिए मुख्यमंत्री को हटाया नहीं गया। कोई कार्रवाई ही नहीं हुई। 4 मई की घटना! और सही शिकायत कर रहे हैं वीडियो की कि उसके आने के बाद अभी 21 जुलाई को ढाई महीने से ज्यादा समय के बाद गिरफ्तरियां हुईं। अगर वीडियो न आता तो न प्रधानमंत्री को बोलना पड़ता और न कोई कार्रवाई होती।

लगता है वे सोचते हैं कि कुछ भी कर लें। कोई कुछ नहीं कर सकता। किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। मगर अब यह अहंकार ही खत्म हो रहा है। झूठ, नफरत, विभाजन, असहिष्णुता की राजनीति हमेशा नहीं चल सकती।

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