बकरीद पर एको फ्रेंडली का ज्ञान और गाय के नाम पर मुसलमानों की हत्या?
Eco-friendly's knowledge on Bakrid and killing of Muslims in the name of cow
2 दिन बाद 29 जून को बकरीद का त्यौहार मनाया जायेगा जिसमें लाखों मुसलमान जानवरों की क़ुरबानी देंगे और उसका गोश्त गरीबों में दान करेंगे। इस मौके पर सोशल मीडिया पर एक ट्रेंड एको फ्रेंडली और ग्रीन बकरीद मनाने का चलाया जा रहा है। सबसे हैरान करने वाली बात तो ये है कि इन ट्रेंड को राइट विंग के जाने पहचाने लोगों द्वारा चलाये जा रहे है। ये वही लोग है जो अक्सर गाय के नाम पर मुसलमानों की हत्या पर जश्न मनाते हुये पाये जाते हैं।
◾️अब यहां कुछ सवाल सीधे तौर पर उभर कर सामने आ रहे हैं कि क्या एक इंसान की जान की कीमत जानवर की जान से भी सस्ती है?
◾️किसी इंसान को जान से मार डालना तो जस्टिफाई है मगर जानवरों की क़ुरबानी पर रोना धोना मचाया जायेगा?
◾️भारत की 80 फीसदी आबादी मांसाहारी होने के बावजूद ये एको फ्रेंडली बकरीद वाली कैंपेन चलाने वाले लोग आखिर कौन है?
क़ुरबानी के दिन कुर्बान होने वाले जानवर के गोश्त को इस्लामी मान्यताओं के अनुसार तीन हिस्सों में बांटा जाता है। जिसमें एक हिस्सा क़ुरबानी करने वाले व्यक्ति का, एक हिस्सा रिश्तेदारों का, एक हिस्सा गरीबों के लिए होता है।
उदाहरण के लिए किसी जानवर का गोश्त अगर 18 किलो निकलता है तो उसमें से 6-6 किलो गोश्त हर वर्ग के हिस्से में आयेगा।
अब ये जो फ़र्ज़ी भावना आहत गैंग घूम रहा है और जानवरों का हमदर्द बना हुआ है इनकी सोशल लाइफ को खंगालेंगें तो आप को स्पष्ट हो जायेगा कि ये वही लोग है जो आये दिन मुसलमानों की लिंचिंग पर जश्न मनाते है।
मुस्लिम समाज के आर्थिक बहिष्कार और मारने पीटने का खुलेआम आह्वान करने वाले नफरती लोगों का समर्थन करते हैं। इनकी नजर में इंसान की जिंदगी किसी जानवर के सामने केवल दो कौड़ी की है।
एक बात हमें समझ लेना चाहिए कि भारत की अधिकतर आबादी नॉन वेज खाने वाले लोगों की है। दूर दराज गांव में आज भी गरीब तबके के लिए पौष्टिक आहार के तौर पर सस्ता गोश्त ही एक मात्र जरिया है। सब्जियों की आसमान छूती कीमतों ने इस मामले को और पुख्ता कर दिया है।
अगर मैं पूर्व से पश्चिम तक समुंदरी तट से सटे सभी राज्यों की बात करूँ तो यहाँ की 90 फीसदी से भी ज्यादा आबादी केवल मांसाहारी है।
चलिए एक समय के लिए मान लिया कि मुसलमानों की वजह से जीव हत्या ज्यादा हो रही है तो दिल्ली की मिसाल से बतायें कि कुछ मुस्लिम इलाकों को छोड़ कर जो झटका मुर्गा और मटन शॉप हैं वहां पर मीट बेचने और खरीदने वाले आखिर कौन लोग हैं?
किसी भी मुद्दे में मुस्लिम एंगेल को शामिल कर के टारगेट करना आज के समय में ज्यादातर लोगों की हॉबी बन चुकी है। ऐसा लगता है कि बिना मुसलमानों को गाली दिए कुछ लोगों का खाना ही नहीं हजम होता है।
जहां एक तरफ जीव हत्या पाप है का ज्ञान सोशल मीडिया में धड़ल्ले से ठेला जा रहा है वहीं पर महाराष्ट्र के नाशिक जिले में एक मुस्लिम व्यक्ति को गाय के नाम पर क़त्ल कर दिया जाता है।
ये दोहरा चरित्र कहां से लाते है लोग जिसमें जीव हत्या तो पाप है मगर एक इंसान की हत्या पुण्य का काम है।
सोचियेगा जरूर !!!