साथी तेरे सपनों को मंजिल तक पहुंचाएंगे, अंबरीश आपको आखरी लाल सलाम, जिंदाबाद!
अंबरीश जी से पहली बार मेरी मुलाकात 2003 में दिल्ली में राईट टू एज्युकेशन (NFRA) के राष्ट्रीय समन्वय के मंच पर हुई थी। तब से आज तक वे मेरे बहुत करीबी मित्र और आंदोलन के साथी रहे है। उनके जाने से हमारी व्यक्तिगत और संगठनात्मक क्षति हुई है।
"इस देश मे राष्ट्रपति का बेटा और चपरासी का बेटा एक ही स्कुल में पढ़े" ऐसी समान शिक्षा प्रणाली के पुरस्कर्ता और भांडवली बाजार व्यवस्था के खिलाफ हमेशा डटकर खडे़ रहने वाले अंबरीश तब से हमारे साथ वैचारिक रुप से जुड़ गये ।
हम महाराष्ट्र और गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्र में सतपुड़ा के पर्वत शृंखला में बसे आदिवासी समुहों के साथ उनके नैसर्गिक संसाधनों के हकों की लड़ाई लड़ते आ रहे है और ग्रामीण इलाकों में किसानों को उनकी फसल का सही दाम तथा सम्पूर्ण कर्जा मुक्ति की लड़ाई लड़ रहे है। 2004 से अंबरीश हमारे साथ इस कार्य को राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक आंदोलन का रूप देने हेतू जुडे़ और महाराष्ट्र और गुजरात के आदिवासी गावों में घुमकर उन्होंने संगठन को और मजबूत करने हेतू योगदान दिया।
गुजरात में जब मा.नरेंद्र मोदी जी की हिटलरशाही चल रही थी और 23 मार्च 2004 को भगतसिंह के शहादत दिवस पर हमने फांसीवाद के खिलाफ गांव गांव में सायकल यात्रा निकालने का तय किया तब डेडियापाड़ा में हम लोगों को गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। हमारे सुमन भाई वसावा को prevention against anti social movement के नाम से नर्मदा जिले से उठाकर सीधे पोरबंदर जेल में 49दिन रखा गया था, तब इस अन्याय के खिलाफ लोक संघर्ष मोर्चा द्वारा गांधीनगर तक कुच करके और मोदीजी को आमने सामने सवाल जवाब करके अन्याय विरोधी आवाज उठाने में उनकी भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण थी। मुकुल सिन्हा, सूरत के बाबूभाई देसाई और एड. दीपक चौधरी इनको लोक संघर्ष मोर्चा के साथ जोड़ने और गुजरात में फांसीवाद के खिलाफ लड़ाई में उनका काफी योगदान रहा है।
"आदिवासी समुहों के जल, जंगल जमीन की लड़ाई इस जागतिक बाजार व्यवस्था और पुंजीवादी व्यवस्था से और मजबुती से लड़ने के लिये गांव स्तर के कार्यकर्ताओं को वैचारिक रुप से और सक्षम बनाना होगा" यह मानते हुए अंबरीश जी ने इन गावों में अभ्यास वर्ग , प्रशिक्षण शिविर चलाये और लोकसंघर्ष मोर्चा की लड़ाई को और अधिक मजबूत किया।
अंबरीश जी को गुजरात और महाराष्ट्र के संघटन के गावं का हर व्यक्ति दोस्त मानता था तथा एक गहरा रिस्ता लोगों के साथ जुड़ा रहा।
अंबरीशजी ने अपनी निजी समस्या के कारण फिर दिल्ली जाना तय किया और उसके बाद व्यापक स्तर पर अनेक सस्थाओं के साथ राइट टु एजुकेशन की लड़ाई मजबूत की। आज की तारीख में देश में सत्ता के दलाल शिक्षा का सांप्रदायीकरण और निजीकरण करने की कोशिश हो रही है। ऐसे वक्त देशभर में घूमकर इसके खिलाफ आवाज गोलबंद करने के अंबरीश भाई की जद्दोजहद बहुत महत्वपूर्ण थी। गांव स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ता से लेकर बुद्धिजीवी साथियों को जोड़ना और इस लड़ाई के लिए तैयार करना ये उनकी खूबी थी।
कड़वे वामपंथी होने के बावजूद हमारे जैसे कई समाजवादी साथयों के वे करीबी दोस्त रहे हैं।
अंबरीश जैसे साथी को ऑक्सीजन न मिलने से हम सबसे विदा होना पड़ा, यह बात इस देश की स्वास्थ्य व्यवस्था कितनी काम चलाऊ है यही दर्शाता है। अंबरीश जैसे साथियों के जाने से परिवर्तनशील आंदोलन का कभी न भरने वाला नुकसान होता है ।
आज जब अंबरीश के अचानक विदा होने की खबर आई तो लोक संघर्ष मोर्चा के हर गांव मे संन्नाटा छा गया। बहुत ही दुखभरी घड़ी है।
इस कोरोना की त्रासदी में कई साथी अचानक से हमारा साथ छोड़ के जाने की खबर दिल को और उदास कर जाती है लेकिन जो हमे छोड़ के जा रहे है, उनको सही रूप से याद रखने के लिए हमें उनकी लड़ाई आगे बढ़ानी होगी। जिस मोर्चे को छोड़़ के उन्हें जाना पड़ा उस मोर्चे को आगे संभालना होगा यही उनकी याद में हमारी सच्ची आदरांजली होगी।
अंबरीश हमेशा हमारे दिलों मे रहेंगे, हमारे गावो में, हमारे जंगलों में हमारे हर कार्य में हमेशा याद रहेंगे। आप हमारे संघर्ष से हमेशा जिंदा रहोगे।
अंबरीश आंदोलन के साथी तो थे ही और व्यक्तिगत तौर पर मेरे बहुत करीबी दोस्त थे। उनकी यादें हमेशा मेरे साथ रहेंगी।
अंबरीश आपको आखरी सलाम और जिंदाबाद!
प्रतिभा शिंदे
लोक संघर्ष मोर्चा