2024 में यूपी की चुनावी जंग दिलचस्प: मल्लिकार्जुन खरगे को उत्तर प्रदेश से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी
बसपा संस्थापक कांशीराम जीतकर पहली बार सांसद पहुंचे थे.
2024 की चुनावी जंग में कांग्रेस यूपी के बुलडोजर राज को रौंदने की तैयारी में है! कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को उत्तर प्रदेश से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी है. खरगे के लिए यूपी की उस सीट को चिन्हित किया गया है, जहां से बसपा संस्थापक कांशीराम जीतकर पहली बार सांसद पहुंचे थे.
कांशीराम ने उत्तर प्रदेश में दलितों के दिल में राजनीतिक चेतना जगाई थी और बसपा को नई सियासी बुलंदी पर पहुंचाने का काम किया. तीन दशक के बाद बसपा यूपी की सियासत में हाशिए पर पहुंच गई है तो कांग्रेस खरगे के जरिए दलितों को अपने साथ जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है.
कांग्रेस मानना है कि मायावती विपक्षी गठबंधन INDIA का हिस्सा न बनकर बीजेपी की मददगार बन रही हैं. ऐसे में यूपी सहित देशभर में दलित वोट साधने के लिए खरगे को कर्नाटक की गुलबर्गा सीट के साथ ही इटावा या बाराबंकी सीट से विपक्षी गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर उतारा जाए.
इन दोनों ही सीटों पर फिलहाल बीजेपी का कब्जा है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि बीते वक्त में एक सीट पर बसपा प्रमुख मायावती के राजनैतिक गुरू कांशीराम सांसद थे, जबकि दूसरी सीट से उनके करीबी रहे पीएल पुनिया सांसद चुने गए थे.
इटावा सीट पर दलित-पिछड़े वोटों का समीकरण है. बाराबंकी सीट पर दलित-मुस्लिम कैंबिनेशन काफी मजबूत है. इटावा से खरगे चुनावी मैदान में उतरते हैं तो यादव बेल्ट की सीटों को प्रभावित कर सकते हैं. बाराबंकी सीट से उतरते हैं तो रायबरेली-अमेठी सहित अवध की सीटों को प्रभावित करेंगे.
खरगे भले ही कांग्रेस में हो और मौजूदा समय में पार्टी अध्यक्ष हो, लेकिन वो हमेशा से सामाजिक न्याय वाली सियासत करते रहे हैं. कर्नाटक में इस साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस खरगे के जरिए दलित वोटों को एकमुश्त अपने पक्ष में करने में कामयाब रही है.
खरगे दलित कार्ड को भुनाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं. जातीय जनगणना के मुद्दे को धार दे रहे हैं तो कांशीराम के सामाजिक न्याय के सिद्धांत, जिसकी जितनी भागेदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी वाले फलसफे को भी खरगे अपने भाषणों में जोर-शोर से उठाते हैं.
उत्तर प्रदेश में दलित मतदाता 22 फीसदी हैं, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. 2022 में 15 करोड़ से ज्यादा मतदाता है, जिनमें 3 करोड़ से ज्यादा दलित समुदाय के वोटर्स हैं.
बसपा के राजनीतिक उदय से पहले तक दलित वोटर्स कांग्रेस का परंपरागत वोटर हुआ करता थे, लेकिन वक्त के सात छिटक गया था. कांग्रेस दलित वोटों को वापस हासिल करने की कोशिशों में जुटी है, जिसके लिए ही मल्लिकार्जुन खरगे को पार्टी की कमान सौंपी गई है और अब उन्हें यूपी से चुनाव लड़ाने की तैयारी है.