शकील अख्तर
मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस के नेताओं में न काहु से दोस्ती न काहू से बैर वाले नेता रहे हैं। कांग्रेस में रहते हुए दोस्त दुश्मन दोनों न बनाना मुश्किल काम है। मगर यह नतीजा देता है। खरगे जी अपनी इसी योग्यता के दम पर निर्विवाद रहे और पार्टी के सर्वोच्च पद पर जा पहुंचे। जिसके बारे में न कभी वे और न ही पार्टी में कोई कुछ दिनों पहले तक सोच भी रहा था।
बहरहाल अब वे बन गए हैं। और 26 अक्तूबर को एक भव्य समारोह में उनकी ताजपोशी भी हो जाएगी। जिसमें शामिल होने के लिए राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा छोड़ कर दिल्ली आ रहे हैं। समारोह में जैसा इससे पहले 2017 में राहुल के अध्यक्ष बनने पर हुआ था। निर्वाचित अध्यक्ष खरगे जी को जीत का प्रमाणपत्र दिया जाएगा। जिसके बाद वे अपना पद भार ग्रहण करेंगे।
24 साल बाद कांग्रेस के गैर गांधी अध्यक्ष। तो क्या नया कर सकते हैं वे, जो आगे बढ़कर सोनिया गांधी और राहुल नहीं कर सकते थे? वे 26 अक्टूबर को चार्ज लेने के बाद संपूर्ण विपक्ष से मिलने जुलने के लिए उनके पास जाने का कार्यक्रम बना सकते हैं। कोई इगो नहीं। सबको खुद फोन करें। टाइम लें और इस बहाने विपक्ष जोड़ो यात्रा पर निकल जाएं।
सोनिया ने अपनी तरफ से हमेशा विपक्षी एकता की पहल की। मगर नेहरू गांधी परिवार की होने के कारण उनका एक विशिष्ट व्यक्तित्व कई विपक्षी नेताओं में असुरक्षा की भावना पैदा करता था। वे सोचते थे कि इनके साथ आने में उनकी पहचान खत्म हो जाएगी या कमजोर पड़ जाएगी। मगर खरगे जी के साथ बात करने, मिलने में किसी छोटी पार्टी के नेता को भी यह अहसास नहीं होगा। खरगे जी खुद बहुत आम आदमी हैं। जमीन से जुड़े हुए। किसी भी तरह के प्रोटोकोल, अहं, बड़े आदमी होने की व्याधि से मुक्त। धोती पहनने वाले देश की राजनीति में अंतिम पीढ़ी के नेता। एक मुलायम सिंह जी पहनते थे। वे रहे नहीं। अब खरगे जी के अलावा राजनाथ सिंह जी और हैं जो परपंरागत भारतीय परिधान धोती पहनते हैं। और यह एक संयोग हो सकता है कि धोती पहनने वाले जिन तीन नेताओं के अभी नाम लिए मुलायम, खरगे और राजनाथ तीनों की गिनती बहुत सहज सरल नेताओं में होती रही है। जिनसे कोई भी मिल सकता है। और जो किसी से भी मिल लेते हैं।
महिला नेताओं में ऐसे ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं। साधारण सूती साड़ी, हवाई चप्पल पहनने वाली। अपनी इस साधारणता में ही वे असाधारण हैं। राजनीति के मामले में। पिछले आठ सालों में जबसे मोदी जी आए हैं। उन्हें सबसे टफ मुकाबला बंगाल में ही करना पड़ा। और जितनी ताकत, साधन, दांव पेंच उन्होंने बंगाल के पिछले साल हुए चुनावों में लगाए इन आठ सालों में कहीं नहीं लगाए। और यहीं उन्हें सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा। बुरी हार इस मायने में कि जिन लोगों को वे अपने साथ ले गए थे। चुनाव हारते ही वे सब माफियां मांगते हुए ममता दीदी के पास वापस आ गए। और ममता बनर्जी ने भी उन्हें सम्मान देते हुए वापस ले लिया।
आज विपक्षी एकता समय की सबसे बड़ी जरूरत है। विपक्ष कमजोर नहीं है बल्कि विभाजित है। और बंटे हुए होने की वजह से उसकी आवाज कमजोर हो गई हैं। मोदी जी इसी का फायदा उठा रहे हैं। और आम जनता नुकसान। मंहगाई, बेरोजगारी तो बड़ी समस्याएं थी हीं। अभी ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने यह बताकर पूरे देश को शर्मसार कर दिया कि दुनिया में सबसे ज्यादा भूखे रहने वाले देशों में हम बहुत आगे निकल चुके हैं। 121 देशों में से 106 की स्थिति हमसे बेहतर है, जिनमें पाकिस्तान, बांग्ला देश, श्रीलंका और नेपाल भी शामिल हैं। अभी यह गम कम हुआ नहीं था कि भारत में आकर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने हमें कड़ी नसीहत दे दी। और वह भी आईआईटी जैसी प्रतिष्ठित संस्थान में जहां से पढ़े लड़के लड़कियां ही दुनिया में जाकर भारत का नाम कर रहे हैं। ऐसे समय में जब भाजपा के नेता विश्वगुरु बनने का दावा कर रहे हैं गुटेरस ने कहा कि दुनिया आपको गंभीरता से तभी लेगी जब आप अपने अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देंगे। मानवाधिकार को लेकर प्रतिबद्ध रहेंगे। इस तरह यूएन प्रमुख ने वह बात उजागर कर दी जो दुनिया हमारे बारे में सोच रही है। वे यह भी कहने से नहीं चूके कि भारत की आजादी का आंदोलन और उसके मूल्य दुनिया में बहुत सम्मान से देखे जाते हैं। उनसे यूरोप सहित दूसरे देश प्रेरणा लेते रहे हैं। यह हमारी सरकार और सत्तारुढ़ पार्टी के लिए आई ओपनर (आंख खोलने वाला) है। क्योंकि अभी भी वह आजादी के आंदोलन से लेकर उसका नेतृत्व करने वाले गांधी नेहरू का उपहास से लेकर अपमान और आरोप लगाने के काम में निरंतर लगी हुई है।
यह यथार्थ है। घर और बाहर दोनों जगह हम अच्छी हालत में नहीं हैं। मगर बातों के बादशाह बने हुए हैं। जनता को यही बताया जा रहा है कि 70 साल में कुछ नहीं हुआ। केवल कबूतर छोड़े जाते थे। हम चीते छोड़ रहे हैं। अब जनता इन बातो से बहल रही है या किसी डर से चुप है यह बड़ा मुश्किल सवाल है। इसका जवाब विपक्ष जनता में साहस पैदा करके ही पा सकता है। मगर उसके लिए पहली शर्त है विपक्ष एक दिखे। हर राज्य में हर हाल में सरकार बनाने के प्रधानमंत्री मोदी के रवैये से सब परेशान हैं। बंगाल में जैसा बताया एक बहुत कठिन लड़ाई लड़कर ममता बनर्जी जीतीं। वैसे ही बिहार में लालू प्रसाद यादव को 2015 में चुनाव जीतकर भी कुछ समय बाद ही सरकार गंवाना पड़ी। अभी उसी तरह नीतीश फिर वापस आ गए हैं। मगर किसी भी हालत में चुनाव जीतना और अगर नहीं जीते तो दलबदल करवाकर जैसे कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और कई प्रदेशों में फिर भी सरकार बना लेना बहुत खतरनाक खेल हो चुका है। हर विपक्षी पार्टी इसका शिकार हुई है। मगर फिर भी एक मंच पर नहीं आ रहे।
खरगे की यह प्राथमिकता होना चाहिए। सब से बात करें। विश्वास में लें कि अभी सिर्फ एक सूत्रिय कार्यक्रम पर काम करना है कि देश में लोकतांत्रिक तौर तरीके वापस आएं। ईमानदारी से चुनाव हो। जो जीते सरकार बनाए। विपक्ष एक होगा। जनता साथ आएगी। और 2024 में महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ, नफरत और विभाजन से लड़ने के लिए वह अपने धार्मिक और जातीय आग्रह छोड़कर, डर से मुक्ति पाकर खड़ी हो जाएगी।
विपक्षी एकता की पहल किसी को तो करना होगी। नहीं तो हर विपक्षी दल अलग अलग मारा जाएगा।
खरगे को शायद नियति ने यह ऐतिहासिक जिम्मेदारी दी है। अगर वह इसे पूरा करने में लग गए तो कोई कारण नहीं कि यह काम नहीं हो सके। अंदर ही अंदर तो सब दल चाहते हैं। सब पिटे बैठे हैं। ईडी, इनकम टैक्स, सीबीआई और यह नहीं तो गोदी मीडिया है पीछे पड़ने के लिए। लेकिन जिस दिन एक होने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी सबको एक मिनट में मैसेज चला जाएगा। सब नियमानुसार काम करने लगेंगे। बदलाव की आहट अफसर, मीडिया ही नहीं खुद भाजपा में बैठे दुखी लोग भी पहले ही भांप लेंगे। बस जरूरत है एक पहल की। विपक्षी एकता की गंभीर पहल की।