महामानव परेशान, चाणक्य हैरान, सभी मुद्दे उतरने से पहले फेल, विशेष अस्त्र और सत्र भी नहीं आ रहे काम!

देश के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सामने रिहर्सल हो रहे पाँच राज्यों के चुनाव चुनौती बनकर सामने खड़े है।

Update: 2023-09-27 06:50 GMT

भारत में जनता जब जिसको चाहने पर उतरती है सर पर बैठा लेती है। लेकिन जब कोई सर पर ही पेशाब करने लगे तो उसी वक्त और उसी स्थान से फेंक देती है। एसे एक नई अनगिनत उदाहरण है। लेकिन इस समय मौजूद सरकार में महामानव कहे जाने वाले विश्व गुरु की पदवी जल्द हासिल करने वाले प्रधानमंत्री अब खासे परेशान नजर आ रहे है। जिस तरह मध्यप्रदेश , राजस्थान , छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में बीजेपी की हालत पानी से भी ज्यादा पतली होती नजर आ रही है। वो समझने के योग्य है। 

दरअसल महामानव समझ रहे थे कि देश धर्म और हिन्दू मुसलमान पर चल जाएगा। ये नहीं हुआ। क्योंकि विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश को सरकारी रोजगार, और निजी क्षेत्र में रोजाग्र सृजन करने वाले उद्धोग धंधे चाहिए। साथ ही देश में अपना एक मैनोफेस्टो भी चाहिए जिसमें एक रोड मैप विकास का हो। हम उतना ही बोले जितना कर सकें क्योंकि अगर हम लगातार स्ट्रक्चर बनाते रहेंगे तो क्या हम उसमें कोई रोजगार सृजित कर पाएंगे क्योंकि तब हमारे पास फंड नहीं होगा। यही भूल महामानव को महंगी पड़ती नजर आ रही है। अब तक सर्वाधिक टेक्स वसूलने वाली सरकार अब भी भारत को विकास के उच्च पायदान पर नहीं ले सकी। 

महामानव केवल सत्ता हासिल करने के लिए प्रचार प्रसार करते रहे कभी किसी विपक्षी दल के साथ बैठकर देश का हालात पर चर्चा करना मुनासिब नहीं समझा। हमेशा यकायक आकर एक नई घोषण करके देश में एक अपनी नई छवि गढ़ने में लगे रहे जिससे कई मौकों पर देश को गंभीर परिणाम भी झेलने पड़े। आज देश में बीजेपी के प्रति नाराजगी नहीं बल्कि पीएम के प्रति ज्यादा नजर आती है क्योंकि अब यह बात उनके प्रत्येक भाषण में भी दिखने लगी है। जिस तरह लगातार पीएम मोदी अपने भाषण में भूल कर कुछ का कुछ बोल रहे है। इस लिहाज से महामानव खुद अपनी समस्या में फँसते नजर आ रहे है। 

इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पार्टियां 2019 के लोकसभा चुनाव में अलग अलग लड़ी और महामानव का सर्जिकल स्ट्राइक के बाद उपजा राष्ट्रवाद ने उन्हे एक बार फिर बहुमत ही नहीं एक सर्वाधिक अब तक आंकड़ा दे दिया। 

2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम की प्रमुख बातें

मतदाताओं ने प्रचण्ड बहुमत के साथ देश की बागडोर फिर नरेन्द्र मोदी के हाथों में सौंप दी।

भाजपा ने इस बार २०१४ से भी बड़ी और ऐतिहासिक जीत दर्ज की, भाजपा के कुल ३०३ प्रत्याशी विजयी हुए।

१० राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों में सारी सीटों पर भाजपा की जीत।

उत्तर प्रदेश में भी भाजपा ने सीधी रणनीति से सपा-बसपा-गठबंधन की चुनौती को ध्वस्त कर दिया।

पश्चिम बंगाल में भाजपा ने १८ सीटें जीतकर एक इतिहास रच दिया। अब बंगाल में भाजपा, ममता बनर्जी के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन गयी है।[58]

भारत की स्वतन्त्रता के बाद यह केवल दूसरी बार है जब मतदाताओं ने एक ही दल को लगातार दूसरी बार, पहले से अधिक बहुमत से जिताया हो।

भाजपा ने १२ प्रमुख और बड़े राज्यों में ५० प्रतिशत से भी अधिक मत प्राप्त किए।

यदि पूरे देश की बात करें तो भाजपा का मत-प्रतिशत ४१% हो गया जो सन २०१४ के ३१% से १०% अधिक है।

कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी, अमेठी से चुनाव हार गए। उन्हे भाजपा की स्मृति इरानी ने लगभग ५० हजार मतों से हराया।

कांग्रेस केवल ५२ सीटों पर ही विजयी हो पायी। इस बार भी उसे नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं मिल सका।

कांग्रेस के नौ पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कई दिग्गजों को हार का सामना करना पड़ा।

प्रियंका वाड्रा के धुंआधार प्रचार का चुनाव परिणामों पर कोई प्रभाव नहीं दिखा।

कांग्रेस को 18 राज्यों में एक भी सीट नहीं मिली।

बिहार में लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल को एक भी सीट पर जीत नहीं मिल सकी।

२०१९ के चुनावों में भारत में लगभग १.०४% मतदाताओं ने उपरोक्त में से कोई नहीं (नोटा) के लिए मतदान किया, जिसमें बिहार २.०८% नोटा मतदाताओं के साथ अग्रणी रहा।[59]

सन १९५२ से अब तक पहली बार वाम मोर्चे को दस से भी कम सीटें मिलीं।

इस चुनाव में भारतीय राजनीति से वंशवाद के नाश के भी संकेत मिल रहे हैं। गांधी परिवार, सिंधिया परिवार, मुलायम परिवार, लालू परिवार, चौधरी चरण सिंह परिवार, हुड्डा परिवार, चौटाला परिवार, देवेगौड़ा परिवार आदि को इस चुनाव में भारी धक्का लगा है।

वहीं बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह भी खासे परेशान नजर अ रहे है। जिस तरह से छत्तीसगढ़ में प्रोग्राम केसिल करना और उसके बाद मध्यप्रदेश में बीजेपी के बिगड़ते हालात साबित करते है कि बीजेपी के चाणक्य कर्नाटक हिमाचल के बाद सुर्खियों लाने में अब तक नाकाम दिख रहे है। जबकि बीजेपी ने टिकिट घोषणा में यह साबित करने का काम किया है कि अब शिवराज सिंह के सहारे ही नहीं है बल्कि हम अलग अलग क्षेत्रों से चार छत्रप लड़ा रहे है जिस क्षेत्र में जो अच्छा करेगा और सरकार बनी तो उसी को सीएम बनाएंगे। 

जबकि टिकिट घोषणा के बाद बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का वीडियो सामने आया है। जिसमें वो कह रहे है कि हम तो रैली करने वाले बड़े नेता है हमने तो सोचा भी नहीं है कि हम भी चुनाव लड़ेंगे। यही हाल सब नेताओ का है अब देखना यह होगा कि महामानव और चाणक्य बीजेपी को इन पाँच राज्यों के चुनाव में कितने राज्य में सरकार दिलाएंगे। इन राज्यों में कांग्रेस प्रमुख पार्टी बनकर उभर रही है उसका कारण भी महामानव ही है। 

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