वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार ने लिखा: अविश्वास प्रस्ताव और मानसून सत्र का सार निकाला जाये तो….
देश के ज्वलंत मुद्दे, महंगाई, बेरोज़गारी, अमीरों और ग़रीबों के बीच बढ़ती खाई, समाज में बढ़ता तनाव, बुलडोज़र Politics, नूंह के दंगे, संस्थानों पर हावी होती विचारधारा, संस्थानों का लगातार कमजोर होना - इनमें से किसी भी मुद्दे पर 26 दलों के I.N.D.I.A ने सरकार को कारगर तरीक़े से घेरने की कोई ठोस कोशिश नहीं की। किसी भी मुद्दे पर सरकार से जवाब नहीं माँगा।
अविश्वास प्रस्ताव और मानसून सत्र का सार निकाला जाये तो….
1. मणिपुर के मुद्दे पर विपक्षी दलों ने संसद की कार्यवाई बाधित की, बहस में हिस्सा नहीं लिया, प्रधानमंत्री के वक्तव्य का इंतज़ार करते रहे। मणिपुर पर अगर विस्तृति जानकारी या बयान आया तो सिर्फ़ गृहमंत्री का। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के 95 मिनट बाद विपक्ष के walk out के बाद अपनी बात रखी। यानि, पूरी क़वायद फेल ही रही। मणिपुर की बीजेपी सरकार पर कोई लांछन ना लगा सका विपक्ष और डबल इंजन को बचा ले गई बीजेपी की सरकार।
2. देश के ज्वलंत मुद्दे, महंगाई, बेरोज़गारी, अमीरों और ग़रीबों के बीच बढ़ती खाई, समाज में बढ़ता तनाव, बुलडोज़र Politics, नूंह के दंगे, संस्थानों पर हावी होती विचारधारा, संस्थानों का लगातार कमजोर होना - इनमें से किसी भी मुद्दे पर 26 दलों के I.N.D.I.A ने सरकार को कारगर तरीक़े से घेरने की कोई ठोस कोशिश नहीं की। किसी भी मुद्दे पर सरकार से जवाब नहीं माँगा। सरकार ने अपने achievements की लिस्ट गिनाते हुए साबित कर दिया की देश तरक्की के रास्ते पर है, और विपक्ष सिर्फ़ निराशा फैलाने में लगा हुआ है। सरकार ने इन मुद्दों पर भी विपक्ष को ही पीटा।
3. संसद में boycott की वजह से विपक्ष ने क़रीब 23 महत्वपूर्ण बिल पर अपनी कोई बात, विरोध, चिंता दर्ज नहीं की। कोई बहस हुई ही नहीं। लिहाज़ा, विपक्ष ने सरकार के सामने घुटने टेकते हिये, जनता तो सरकार की रहमत पर ही छोड़ दिया। अगर सरकार के द्वारा पेश किये गये हर बिल को संसद में पास ही होना है, वो भी बिना बहस के तो फिर विपक्ष की ज़रूरत ही क्या है। Data Protection Bill, Forest Bill सब पास हो गये। जनता को पता ही नहीं है कि इन क़ानून से उनका फ़ायदा कितना और नुक़सान किसका या कितना। इस front पर भी विपक्ष पूरी तरह से फेल रहा।
4. संसद में #NoConfidenceMotion को सरकार ने पूरी तरह से #Congress को धोने में लगाया। जिस तरह से प्रधानमंत्री ने - Congress, No Confidence के नारे लगवाये, हर बात के लिए कांग्रेस को लताड़ा, हर मुद्दे की जड़ में कांग्रेस की सरकारों की विफलता को गिनाया - साफ़ है, कि सत्ता पक्ष ने अपने वोटरों को ये विश्वास दिलाया कि देश की दुर्दशा के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ कांग्रेस ज़िम्मेदार है। संसद से निकली ये आवाज़, #BJP के core voter के कानों तक पहुँची और सरकार का चुनाव अभियान भी शुरु हो गया। मुक़ाबले में पूरा का पूरा विपक्ष, बीजेपी को सार्थक तरीके से संसद में घेर भी नहीं पाई। राहुल गांधी और महुआ मोइत्रा को छोड़ दें, तो शायद ही किसी ने बीजेपी और सरकार को कटघरे में खड़ा भी किया। यहाँ भी I.N.D.I.A फेल रहा।
5. 2016 से 2023 तक विपक्ष ने संसदीय कार्यवाई को कई मौक़ों पर बाधित किया। सरकार ने विपक्ष की माँगों के सामने कभी भी झुकने का कोई संकेत नहीं दिया। इस बार भी सरकार ने साबित कर दिया कि जितना बोलना है, बोल लो, होगा वही, जो हम चाहेंगे। विपक्ष ने बीते 7 सालों में सरकार के द्वारा पेश किये गये एक भी बिल को सदन में पछाड़ने में सफलता हासिल नहीं की है। एक भी ऐसा मौक़ा नहीं मिला, जहां विपक्षी नेता के भाषण से सदन में सरकार के पसीने छूटे हो, इस मानसून सत्र में भी वही हुआ। हाँ, ओवेसी का 8 मिनट का भाषण सुनने लायक़ था। 5 तीखे सवाल उन्होंने केंद्र सरकार से किये, और दावे के साथ कह सकता हूँ कि उनके किसी भी सवाल का जवाब केंद्र का कोई भी मंत्री इंमानदारी से नहीं दे सकेगा। उन्होंने लद्दाख में चीन के घुसपैठ से नूंह की हिंसा पर सवाल किये, लेकिन हैदराबाद में उनके समर्थकों के अलावा शायद ही किसी ने सुना होगा। पुरानी कहावत है - झुकती है सरकारें, झुकाने वाला चाहिये। अफ़सोस, आज सरकारों को झुकाने वाले लोग हमारे बीच शायद हैं, ही नहीं। इस मुद्दे पर भी विपक्ष फेल ही रहा। कई और Failures हैं, जिन्हें गिनाया जा सकता है, लेकिन उम्मीद है कि कभी तो कई इन Failures को हरा कर सरकार की आँखों में आँख डाल का सही सवाल पूछेगा।