तो जर्जर हो रहा बीजेपी का ज़िस्म,टूट रहा मोदी योगी का तिलिस्म !
कोरोना महामारी में लचर आपदा प्रबंधन मंदी महंगाई के कारण जनता में घटती दिख रही योगी मोदी की लोकप्रियता
वाराणसी। "दीदी" से हारकर बीजेपी उबरी नहीं थी। तबसे यूपी में सम्पन्न हुए पंचायत चुनाव ने उसे झटका दे दिया। वजह तो मंदी महंगाई समेत कईयों हैं।मगर मुख्य वजह कोरोना महामारी में स्वास्थ्य सेवाओं सुविधाओं में सिस्टम की नाकामी से उपजा आक्रोश। जिस वजह से जनता ने मोदी योगी के जादुई चेहरे को दरकिनार कर जता दिया कि वादों और इरादों में फर्क को वह समझ गयी है।
मोदी योगी सरकार के तिलिस्म को टूटता देख पार्टी से लगायत संघ में खलबली मची है। तबसे लगातार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पद से हटाये जाने के कयास लगते रहें। मगर लम्बी बैठकबाजी के बाद योगी आदित्यनाथ भारी पड़ें, फिलहाल वह पद पर बरकरार हैं। मगर अंदरखाने की माने तो यूपी में अपने खिसकते जनाधार से संघ और बीजेपी दोनों सकते में हैं। उन्हें यह चिंता सताये जा रही है कि जनता का मूड पंचायत चुनाव की तरह ही रहा तो कुछ ही महीनों बाद होने वाले (2022)यूपी विधानसभा चुनाव में कहीं मुख्यमंत्री की कुर्सी खिसक न जाये।
इसके लिए बीजेपी और संघ मिलकर डैमेज कंट्रोल पर काम करना शुरू कर दिया है। उसके लिए हर सम्भव उपाय अपनाये जा रहे हैं।ताकि जनता को फिर से अपने मोहपाश में बांधा जा सके,मगर बीजेपी के लिए पुनः जनता का भरोसा जितना इतना आसान नहीं है,यह औऱ बात है कि मंदिर हिंदुत्व समेत कई मुद्दों को लाईम लाइट में रखने से इतना कठिन भी नहीं है। जानते हैं वह मुद्दे जो जनता के लिए कहर और बीजेपी के लिए जहर की तरह बन चुके हैं।
मंदी,महंगाई,महामारी जनता के लिए शूल, इसलिए जनता भूली कमल का फूल:-कभी मंहगाई कंट्रोल करने के वादे संग सत्ता में आई मोदी सरकार अब अपने वादे से इतर उसी रास्ते पर है। जिसकी वजह से जनता त्राही त्राही कर रही है। बीते वर्ष और इस वर्ष कोरोना महामारी के बाद लगे लॉकडाउन ने छोटे मझोले रोजगारियों की कमर तोड़ दी है। कई उद्योग धंधे चौपट हो चुके हैं। तो कई धंधे मंदी के चपेट में हैं,जो उबर नहीं पा रहे हैं।
वहीं आम जनता डीजल पेट्रोल खाद्य तेलों समेत दैनिक जरूरत की चीजों के आसमान छुते दामों से बेहाल बदहाल हो चुकी है। उसे उम्मीद थी कि मोदी सरकार महंगाई कम करेगी,मगर जरूरत की चीजों के लगातार बढ़ते दामों ने उसे मोदी सरकार से निराश कर दिया है जिसकी वजह से मोदी जी का जादुई व्यक्तित्व अब छलावा नजर आ रहा है। यही कारण है कि पहले की तरह अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का क्रेज जनता में नहीं दिख रहा है। महंगाई के इस शूल की वजह से जनता कमल को भूल रही है।
कोरोना ने जनता को खूब रुलाया,योगी जी का आपदा प्रबंधन जनता को नाकाफ़ी नजर आया :-कोरोना महामारी जब पिक पर थी तब स्वास्थ्य सुविधाओं पर लोड बढ़ गया था। जिसके बाद ऑक्सीजन,आईसीयू ,आपात व्यवस्था की भारी किल्लत हो गयी थी। अचानक से मरीजों का तांता लगता देख सरकारी हॉस्पिटल्स हाँफने लगे थें। हालात यह थें की अपनों के ईलाज के लिए जनता दर दर भटक रही थी चीख चिल्ला रही थी। मगर सरकार के लाख प्रयास के बावजूद जनता को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं पाने में एड़ी चोटी का जोर लगा देने पर बमुश्किल से ईलाज मिल पा रहा था।
हालांकि योगी सरकार अपने पूरी ताकत से जनता को सुविधा उपलब्ध कराने के लिए लगी रही। मगर महामारी में मौतों के अंबार को रोक न पायी।इससे जनता में चर्चा रहा है कि जिस वक्त योगी सरकार को स्वास्थ्य सुविधाओं को और पुख्ता करना चाहिए था। उस वक्त वह यूपी में ध्यान देने की बजाय बंगाल में चुनावी सभा में प्रस्तुति दे रहे थें।
क्या 22 में आएगी फिर बीजेपी लहर,या जनता इग्नोर कर ढायेगी उसपर कहर :-
वर्तमान में बीजेपी के हालात बहुत अच्छे नहीं कहे जा सकते । मगर इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता कि बीजेपी अपना चुनावी मैनजमेंट बखूबी जानती है। जहां से दूसरे दल सोचना बन्द कर देते हैं। बीजेपी के रणनीतिकार वहां से योजना बनाने के लिए जाने जाते हैं। याद है नोटबन्दी के बाद उस वक्त लाइनों में लगी जनता का आक्रोश चरम पर था। लोग मोदी सरकार के खिलाफ खूब चीख चिल्ला रहे थें। उस समय लगा कि मोदी सरकार रिपीट नहीं हो पाएगी मगर 2019 लोकसभा चुनाव के नतीजों ने विरोधियों को चौंका दिया था।
वैसे ही लॉक डाउन के बाद प्रवासी मजदूरों की बेबस लाचार हाल तस्वीरों को देखकर लगा था की प्रवासी कामगारों मजदूरों का आक्रोश बिहार चुनाव में जदयू बीजेपी को सत्ता से हटा कर ही दम लेगी। मगर बीजेपी वहां पूरी ताकत से उभर कर आई और सत्ता पाई। पूर्व चीफ जस्टिस मार्कंडेय काटजू कहते हैं। कि यह सही है कि इस वक्त बढ़ती बेरोजगारी महामारी महंगाई आदि से बीजेपी की जनप्रियता घटी है। मगर लोग भूल जाते हैं कि जनता की यादाश्त कमजोर और अल्पदृष्टि होती है।
यूपी में चुनाव को आठ महीने बाकी हैं,ऐसे में कई घटनाएं हो सकती हैं। जो बीजेपी समर्थकों को आज की बदहाली भूलने का अवसर दे सकती है। मार्कण्डेय काटजू का स्पष्ट इशारा मंदिर मस्जिद हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण की तरफ था। बहरहाल जो भी हो यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि जनता बीजेपी को फिर से मौका देती है,या उसे इग्नोर कर चौंका देती है।