असम में EWS आरक्षण को टाटा बाय और मियां मुसलमान !

मुसलमान युवा को अब खुलकर इस मुद्दे पर सोचना होगा कि उसको EWS आरक्षण से लाभ है या नहीं!

Update: 2024-01-22 13:04 GMT

बात तो "मुल्ले टाइट" करने की हुयी थी बीच में ये सामान्य वर्ग हिंदू युवा आ गया है। माना कि असम के 34% मियां मुसलमान की EWS आरक्षण ख़त्म करने से चूड़ी टाइट हुयी होगी मगर इस चक्कर में 61% हिंदू युवा का बलिदान क्यों लिया जा रहा है।

गाजे बाजे के साथ ऐलान हुआ था कि भाजपा की सरकार ने असम में सरकार बनाई है अब हिंदू खतरे में नहीं रहेगा मगर फिर 22 दिसंबर 2022 को फायर ब्रांड मुख्यमंत्री महोदय हेमंत बिस्वा सरमा ने 10% EWS आरक्षण को खत्म करने की घोषणा के साथ हिंदू युवाओं की जॉब को खतरे में डाल दिया।

असम का मियां मुसलमान को तो केवल पंचर लायक ही बनाया जायेगा। उनको शिक्षा रोजगार की क्या जरूरत है। वैसे असम का मियां भाई भी अलग वहम में खुश है कि उनकी ज्यादा आबादी OBC का लाभ उठा रही है EWS से उनको क्या नुक्सान!

असामी मुसलमानों के भ्रम का आलम तो देखो हालिया असम सिविल सर्विस में पास हुए 12 मुस्लिम युवाओं में से 11 युवा जनरल श्रेणी से है इसके बावजूद इनको लगता है कि EWS आरक्षण के खत्म होने का नुक्सान तो केवल हिंदू समुदाय के युवाओं को ही होगा।

वैसे एक सवाल तो हिंदू समुदाय के युवाओं से भी है कि "मुल्लों की चूड़ी टाइट" ने आपको इतना मंत्रमुग्द कर दिया है कि अपने भविष्य के साथ हो रहे इस खिलवाड़ पर भी चुप्पी साध रखी है।

एक बात हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के सामान्य वर्ग के युवाओं को अच्छे से अपने गांठ बांध लेनी चाहिए कि ये किसी की चूड़ी टाइट करने के चक्कर में आपके वर्त्तमान और भविष्य की लंका लगायी जा रही है।

वक्त रहते अपने हितों को ध्यान में रखते हुए असम में EWS आरक्षण की बहाली के लिए आवाज बुलंद करिये वर्ना रोने के लिए आंसू भी नहीं बचेंगे ! 

मुसलमान युवा को अब खुलकर इस मुद्दे पर सोचना होगा कि उसको EWS आरक्षण से लाभ है या नहीं!

इसका समर्थन करना उनके शैक्षणिक और सरकारी जॉब के मामले में क्यों बेहद जरूरी है! अगर असम की मिसाल के साथ ही समझाऊं तो लोगों को भ्रम है कि वहां पर अधिकतर मुस्लिम आबादी ओबीसी कैटेगरी के अंदर शामिल होगी जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है।

हाल ही में असम सिविल सर्विस के एग्जाम में जो 12 मुस्लिम युवा सफलता हासिल किए हैं उनमें से केवल एक युवा आरक्षित कोटे से है। जबकि 11 मुस्लिम युवाओं को जनरल कैटेगरी में ही कंपटीशन के बाद सफलता हासिल हुई है।

अब ऐसे में यह सवाल तो जरूर उभरेगा कि असम का मुसलमान जो पिछड़ेपन में पूरे देश में सबसे निचले पायदान में आता है वहां पर मुस्लिम नौजवान अगर जनरल कैटेगरी में कंपटीशन में भाग लेंगे तो यकीनन उनकी सफलता का पैमाना बहुत कम होगा।

सबसे खास बात तो यह है कि दिन रात मुसलमानों के नाम पर अपनी राजनीति करने वाले असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने भी प्रदेश से दिसंबर 2022 में हिंदू और मुसलमान दोनों समुदाय के सामान्य वर्ग के हकों पर डाका डालते हुए EWS आरक्षण के 10% कोटा पर रोक लगा दी थी।

सबसे खास बात यह है इसके खिलाफ कोई आवाज भी नहीं उठा रहा है। सोच कर देखिए अगर एक समय के लिए मुसलमान को छोड़ भी दिया जाए तो ईडब्ल्यूएस आरक्षण को न लागू करने की वजह से हिंदू समुदाय की एक बड़ी गिनती सरकारी जॉब में उत्तीर्ण होने से महरूम रह जाती होगी।

शायद असम की कथित हिंदूवादी इस भाजपा सरकार को लगता है कि सामान्य वर्ग में शामिल हर व्यक्ति चांदी का चम्मच लेकर ही पैदा होता है। उसके घर में तो सब राजा जी हैं। उसे सरकारी सहायता की क्या जरूरत है!

तो मुद्दा यह है कि मौजूदा भाजपा सरकार खास तौर पर असम में हिंदू और मुसलमान दोनों समुदाय को ईडब्ल्यूएस आरक्षण के मुद्दे पर बेवकूफ बनाने का काम कर रही है और सामान्य वर्ग के युवाओं को EWS आरक्षण न देकर पीछे धकेलना का काम कर रही है।

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