राजस्थान में भी कांटे का मुकाबला है, क्यों कही दो बार विधायक रहे नेता ने ये बात!

There is a tough competition in Rajasthan also

Update: 2023-12-02 18:05 GMT

डॉ सुनीलम

राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर जब भी चर्चा होती है, तब यह कहा जाता है कि कांग्रेस यहां आसानी से चुनाव जीत रही है। क्योंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सुलह हो चुकी है। कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ रही है। राजस्थान विभिन्न इलाकों में बंटा हुआ है जिसमें शेखावटी, मारवाड़, हाड़ौती, मेवात, मेवाड़, ढूंढाड़ और ब्रज आदि इलाके शामिल है। पिछले चुनाव में सचिन पायलट के चलते गुर्जरों ने तथा स्थानीय स्थितियों के चलते राजपूतों ने कांग्रेस को साथ दिया था। जाटों के बारे में माना जाता है कि जो भी पार्टी उनकी जाति का उम्मीदवार देती हैं, वे उसका समर्थन करते हैं। आदिवासियों का काफी वोट पिछली बार कांग्रेस को मिला था। इस बार की स्थिति अलग है। कांग्रेस से गुर्जर खुश नहीं है, राजपूत बंटा हुआ है। आदिवासी क्षेत्रों में भारत आदिवासी पार्टी ( बा प) और भारतीय ट्राइबल पार्टी (बी टी पी) भाजपा के साथ मुकाबले में है। खड़गे जी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने का लाभ कांग्रेस को जरूर मिल रहा है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को जादूगर कहा जाता है क्योंकि वे राजनीति में अपना सिक्का जमाने के पहले जादूगर के करतब दिखाते थे। उन्हें जादूगर इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि वे किसी भी विपरीत परिस्थिति से बाहर निकलना बखूबी जानते हैं। यही कारण है कि भाजपा द्वारा ध्रुवीकरण की तमाम कोशिशों के बावजूद उसे ध्रुवीकरण का लाभ ले पाने में सफलता नहीं मिल रही है।

राजस्थान में अशोक गहलोत के सामने सबसे लोकप्रिय नेता वसुंधरा राजे है लेकिन उनके पर काटने का काम स्वयं भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने ही किया है।

वसुंधरा राजे राजपूत की बेटी, जाटों की बहू और गुर्जरों की समधन के तौर पर जानी और मानी जाती है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा दरकिनार कर दिए जाने के बावजूद राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे प्रासंगिक बनी हुई है। तमाम जानकारों का कहना है कि उन्होंने बड़ी संख्या में निर्दलीयों को चुनाव लड़ाया है तथा भाजपा के 200 में से 40 से अधिक उनके उम्मीदवार बीजेपी से भी टिकट पा चुके हैं।

राजस्थान में जन चर्चा यह भी है कि यदि भाजपा ने वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री घोषित किया होता तो अशोक गहलोत से भाजपा मुकाबला कर सकती थी। लेकिन यह भी कहा जाता है कि अशोक गहलोत को यदि विधायकों की कमी पड़ेगी तो वसुंधरा राजे के विधायक (निर्दलीय) उस कमी की खाना पूर्ति कर सकते हैं।

सचिन पायलट के समर्थकों में कांग्रेस के प्रति जबरदस्त नाराजगी है। टोंक में लगाए गए तमाम पोस्टरों से अशोक गहलोत का फोटो और कई जगह पर राहुल गांधी का फोटो भी गायब है। टोंक में गुर्जर, मुसलमान और दलित मिलाकर सवा लाख वोट है । कुल ढाई लाख वोटों में से सवा लाख वोटों का समीकरण सचिन पायलट के पक्ष में है। सचिन पायलट के खिलाफ भाजपा ने जिस उम्मीदवार को उतारा है, वह स्थानीय उम्मीदवार होने के दावे के आधार पर चुनाव लड़ रहा है। सचिन पायलट के खिलाफ नरेंद्र मोदी, अमित शाह या किसी भी बड़े नेता ने कोई सभा नहीं की है। जिससे राजनीतिक विश्लेषक यह नतीजा निकाल रहे हैं कि 3 दिसंबर को चुनाव नतीजा आने के बाद कुछ भी संभव हो सकता है या कोई नया समीकरण भी बन सकता है। अशोक गहलोत की सात गारंटियां मतदाताओं को प्रभावित कर रही है।

सबसे ज्यादा प्रभाव 25 लाख रुपए की चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना का है। जिसे बढ़ाकर 50 लाख रुपए कर दिया गया है।

पिछली बार कांग्रेस को 105 सीटें मिली थी। राजस्थान के विश्लेषक इस बार कांग्रेस के 100 सीटों तक सिमटने की संभावना बतला रहे हैं।

कांग्रेस ने जो गलती मध्य प्रदेश में की, वही गलती उसने राजस्थान में दोहराई है। राजस्थान में यदि वामपंथियों के साथ समझौता हो जाता, तो वामपंथी पार्टी के प्रभाव का लाभ कांग्रेस को मिल सकता था लेकिन कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया। इसका खामियाजा उसे कम से कम 10 सीटों पर उठाना पड़ सकता है। कांग्रेस यदि तय करती तो वह आदिवासी पार्टियों से भी भीलांचल में समझौता कर सकती थी। ऐसी स्थिति में उसे भीलांचल में भाजपा से मुकाबला करना आसान हो सकता था।

एग्जिट पोल अलग-अलग नतीजे दिखा रहे हैं लेकिन कोई भी किसी भी पार्टी की लहर का दावा नहीं कर रहा है। यह याद रखना जरूरी है कि पिछली बार आधा प्रतिशत वोटों के अंतर ने कांग्रेस को तीन दर्जन सीटें अधिक दिला दी थी। इस बार भी एक- दो प्रतिशत का अंतर दोनों पार्टियों के वोटों में नहीं रहेगा।

राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनेगी तो उसका श्रेय अशोक गहलोत को मिलेगा तथा भाजपा की हार का ठीकरा वसुंधरा राजे पर फोड़ा जाएगा। जबकि वास्तविकता यह है कि भारतीय जनता पार्टी की ओर से कांग्रेस का मुकाबला नरेंद्र मोदी जी कर रहे थे।

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