बीजेपी के तीन मुसलमान नेता, मुख्तार अब्बास नकवी, एमजे अकबर, जफर इस्लाम का होगा क्या?
नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी के तीन सांसदों एमजे अकबर, सैयद जफर इस्लाम के साथ-साथ मुख्तार अब्बास नकवी, जो इस समय में केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं, का कार्यकाल जून-जुलाई में खत्म होने जा रहा है और इनका कार्यकाल खत्म होने के बाद अब संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में पार्टी की ओर से कोई मुस्लिम प्रतिनिधि नहीं होगा. खास बात यह है कि अब लोकसभा के बाद राज्यसभा से भी भगवा पार्टी की ओर से कोई भी मुस्लिम चेहरा सांसद नहीं होगा।
दूसरी ओर, लोकसभा में पश्चिम बंगाल के विष्णुपुर से सांसद सौमित्र खान पार्टी का एकमात्र अल्पसंख्यक चेहरा हैं, और लोक जन शक्ति पार्टी के महबूब अली कैसर के साथ एनडीए के मुस्लिम प्रतिनिधियों की संख्या 543 सदस्यीय लोकसभा में 2 हो जाती है. जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार मुसलमानों की आबादी देश की कुल आबादी से 14% से कुछ अधिक है।
केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी अभी मोदी सरकार में मंत्री पद पर बने हुए हैं और राज्यसभा का अपना कार्यकाल खत्म करने के बाद अगले 6 महीने के अंदर वे सांसद नहीं बनते हैं तो उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना होगा. हालांकि खबर यह भी है कि पार्टी उन्हें इस बार उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट से लोकसभा का उपचुनाव लड़वा सकती है।
बीजेपी ने राज्यसभा में तीनों मुस्लिम चेहरों को रिपीट नहीं किया। राज्यसभा जाने से चुके नकवी के लिए रामपुर उपचुनाव ही एकमात्र रास्ता बचा था, जो घनश्याम लोधी को टिकट मिलने के साथ बंद हो गया। अब अल्पसंख्यक मंत्रालय की जिम्मेदारी कौन संभालेगा? यह बड़ा सवाल है।
अल्पसंख्यक मंत्रालय जरूरी नहीं कि कोई मुस्लिम ही चलाए। सिख, जैन या पारसी भी मंत्री हो सकता है। क्या किसी गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक चेहरे को मिनिस्ट्री की कमान मिलेगी? या फिर मोदी के तरकश में कोई और तीर है। मनोनीत कोटे से आने वाले किसी प्रबुद्ध चेहरे को क्या मंत्री बनने का मौका मिल सकता है?
हालांकि, अल्पसंख्यक मंत्रालय के भविष्य को लेकर भी अब सवाल उठने लगे हैं। दरअसल, 2017 में विश्व हिंदू परिषद की गुजरात में हुई अहम मीटिंग में अल्पसंख्यक मंत्रालय को खत्म करने की मांग उठी थी। संघ परिवार का मानना है कि 2006 में कांग्रेस सरकार ने तुष्टिकरण के कारण अलग से अल्पसंख्यक मंत्रालय बनाया था। इसकी कोई जरूरत नहीं है।
गुजरात, हिमाचल, मध्य प्रदेश और राजस्थान चुनाव से पहले अल्पसंख्यक मंत्रालय को खत्म करना भी मास्टरस्ट्रोक हो सकता है। हालांकि, आगे क्या होगा, ये समय बताएगा। सवाल यह भी है कि मुख्तार के भविष्य को लेकर बीजेपी क्या सोच रही है? वे भी रविशंकर, जावड़ेकर की लाइन में चले गए या फिर कोई संवैधानिक कुर्सी इंतजार कर रही है? मुख्तार के बूथ पर गिनती के वोट मिलना भी उनके खिलाफ माना जा रहा।