जब अफजाल अंसारी ने कहा था- ओवैसी भाजपा को फायदा पहुंचाने वाला ठीकेदार है...!
बहुत संभव है कि सपा, बसपा और कांग्रेस तीनों को ऐसा करने से परसेप्शन वोट में गिरावट का खतरा सता रहा हो। पूर्वांचल के बाहर की करीब साठ सीटों पर मुख्तार अंसारी के बारे में जो भी धारणा कायम हो रही है वह मीडिया के माध्यम से है। मीडिया मुख्तार को माफिया कहता है और ‘माफिया को मिट्टी में मिला देने’ वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पुराने बयान को तीन दिन से चला रहा है।
"इंशा अल्लाह इन अंधेरों का जिगर चीरकर नूर आएगा, तुम हो 'फिरौन' तो 'मूसा' भी जरूर आएगा" - गाजीपुर के मोहम्मदाबाद में दिवंगत मुख्तार अंसारी के खानदान को पुरसा देकर लौटे असदुद्दीन ओवैसी की ट्विटर पर लिखी इन पंक्तियों के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति लोकसभा चुनाव की दौड़ में कुछ अलग शक्ल लेती दिखने लगी है।
समाजवादी पार्टी की विधायक पल्लवी पटेल की पार्टी अपना दल (कमेरावादी) के साथ एआइएमआइएम (ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन) के मुखिया ओवैसी का तीसरा गठबंधन अस्तित्व में आ चुका है। स्वामी प्रसाद मौर्य भी इस गठबंधन में जुड़ने वाले हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के फॉर्मूला पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) से उधार लेते हुए इस तीसरे गठबंधन ने ‘अल्पसंख्यक’ को ‘मुसलमान’ में बदल कर पीडीएम कर डाला है।
इन दो समानांतर घटनाक्रमों से स्वाभाविक सवाल उठ रहे हैं कि क्या असदुद्दीन ओवैसी अब बिहार के सीमांचल के बाद उत्तर प्रदेश में भी पांव फैलाने वाले हैं? मुख्तार की मौत के बहाने फाटक का दौरा और पीडीएम का नाम क्या ओवैसी के लिए यूपी में मुसलमान वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश है? अगर वाकई ऐसा ही है तो क्या इसका लाभ पूर्वांचल में भाजपा को मिलेगा, चूंकि मुस्लिम वोटों के बंटने का एक और ठिकाना बन रहा है? और क्या गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी इस बात से गाफिल हैं, जो बसपा के टिकट पर दोबारा खड़े हैं?
फिलहाल अफजाल अंसारी ने मुख्तार की मौत और उसके बाद के घटनाक्रम के राजनीतिक निहितार्थों पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार किया है। वे बार-बार कह रहे हैं कि दूर-दूर से लोग मुख्तार को मिट्टी देने के लिए आए थे, उन्हें किसी ने बुलाया नहीं था। चूंकि सियासी नेताओं के बीच अभी स्वामी प्रसाद मौर्य और ओवैसी के अलावा और कोई बड़ा चेहरा फाटक नहीं पहुंचा है तो इसके भी कुछ अर्थ निकाले जा सकते हैं, हालांकि ओवैसी की राजनीति को लेकर अफजाल शुरू से ही सतर्क रहे हैं।
वह 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव का आखिरी दौर था जब ग़ाज़ीपुर की मोहम्मदाबाद सीट पर अंसारी खानदान के सबसे उम्रदार शख्स सिबग़तुल्ला अंसारी। बसपा से खड़े थे और मऊ से खुद मुख़्तार खड़े थे। वहीं घोसी से चुनावी मैदान में उनके सुपुत्र दांव आज़मा रहे थे। मुख़्तार उस वक्त लखनऊ की जेल में थे, लिहाज़ा तीनों सीटों के प्रचार का जिम्मा अफ़ज़ाल अंसारी के सिर पर था। उस वक्त असदुद्दीन ओवैसी के राष्ट्रीय उभार की शुरुआत ही थी, लेकिन अफजाल उनकी राजनीति को लेकर कई और नेताओं के मुकाबले स्पष्ट रुख रखते थे।
इस संवाददाता के साथ एक लंबी बातचीत में अफजाल अंसारी ने कहा था, ‘’मैं कई बार कह चुका हूं कि ओवैसी महाकट्टरपंथी हैं। वो ठीकेदार है। कट्टरपंथी तो दिखाने के लिए हैं। असलियत में भाजपा को फायदा पहुंचाने वाला ठीकेदार है।‘’
यह पूछे जाने पर कि इस देश में मुसलमानों की अपनी पार्टी होनी चाहिए या नहीं, अफजाल अंसारी ने कहा था, ‘’मुसलमान से ज्यादा तो किसी की पार्टिये नहीं है, लेकिन मुसलमान से ज्यादा कोई सेकुलर नहीं है। वो ऐसे पार्टी के लीडरों को तवज्जो नहीं देता। आप बताइए ओवैसी साहब क्या हैं। उभरते हुए हैं? अरे बाप रे बाप, सीधे चारमीनार से कूदते हैं तो चले आते हैं... एक जंप में सीधे... मेरा मानना है कि मुसलमान जहां भी रहे इकट्ठा रहे, मुसलमानों की अपनी पार्टी की बात मैं नहीं मानता।‘’
दिलचस्प है कि उसी चुनाव में उलेमा काउंसिल ने बसपा का समर्थन कर दिया था। बिलकुल यही सवाल उलेमा काउंसिल के संदर्भ में जब पूछा गया, तो अफजाल बोले, ‘’अभी तो सवाल ये आकर खड़ा होगा कि मुसलमान के नाम पर राजनीति की जाए या अच्छाई और बुराई के नाम पर? मेरे राजनीतिक गुरु थे कामरेड सरजू पांडे। हम इन पार्टियों के कृपा पर राजनीति नहीं शुरू किए थे। लाल झंडा लेकर चार बार जीते। उसके बाद समाजवादी पार्टी में आए। किसी को भी कौम के नाम पर राजनीति करने का हक नहीं। राजभर अपनी पार्टी बनाया, पटेल अपनी पार्टी बनाया, निषाद अपनी पार्टी बनाया, केवल इसलिए मुसलमान अपनी पार्टी बना ले, इसका कोई मतलब नहीं है।‘’
इससे यह साफ समझ में आता है कि ओवैसी अगर मुसलमानों की कोई पार्टी खड़ी करने की कोशिश में हैं और यूपी में मुस्लिम ध्रुवीकरण का दांव आजमा रहे हैं, तो सबसे पहले उसका वैचारिक विरोध फाटक से ही निकलेगा, जिसकी मूल राजनीति लाल झंडे की पैदाइश रही।
इसका दूसरा और विरोधी पक्ष हालांकि व्यावहारिक राजनीति से जुड़ा है। अफजाल अंसारी लंबे समय से मानते रहे हैं कि भाजपा और सपा यूपी में मिलकर चुनाव लड़ती हैं। 2017 और 2022 दोनों ही विधानसभा चुनावों में यह जमीन पर देखने में आया, खासकर 2017 में मोहम्मदाबाद में तो अफजाल का दावा था कि पूरी सपा ही भाजपा के लिए वोट मांग रही थी। तभी उन्होंने कहा था, ‘’इस गुनाह का ज़हर फैलेगा बहुत दूर तक। अव्वल तो मैं कोशिश करूंगा इस सीट को बचा लिया जाए और अगर नहीं भी बचेगी तो हम मिटते-मिटते इनको मिटा देंगे।‘’
तब से लेकर अब तक अफजाल अंसारी की राजनीति भाजपा और सपा का बराबर विरोध करती रही है। इसलिए उनका राजनीतिक भविष्य इस बात पर टिका है कि बहुजन समाज पार्टी इस लोकसभा चुनाव में अपना जनाधार और वोट बचा पाती है या नहीं। अगर यह चुनाव बसपा के अवसान का चुनाव साबित हुआ तो अफजाल अंसारी को कोई तीसरा पक्ष चुनना होगा। यूपी में यही तीसरा पक्ष ओवैसी, स्वामी प्रसाद मौर्य और पल्लवी पटेल के गठजोड़ में अंगड़ाई ले रहा है।
इस लिहाज से देखें, तो मौर्य और ओवैसी का फाटक जाकर अंसारी परिवार को पुरसा देना भविष्य की राजनीति के कुछ संकेत अवश्य दे रहा है। अफजाल अंसारी ने अभी तक ओवैसी को लेकर कोई बयान नहीं दिया है। दूसरी ओर, सपा, बसपा या कांग्रेस का कोई बड़ा चेहरा अफजाल के यहां मातमपुरसी में नहीं पहुंचा है। हां, मुख्तार की मौत पर शुरुआती बयान तीनों दलों की ओर से आए हैं।
बहुत संभव है कि सपा, बसपा और कांग्रेस तीनों को ऐसा करने से परसेप्शन वोट में गिरावट का खतरा सता रहा हो। पूर्वांचल के बाहर की करीब साठ सीटों पर मुख्तार अंसारी के बारे में जो भी धारणा कायम हो रही है वह मीडिया के माध्यम से है। मीडिया मुख्तार को माफिया कहता है और ‘माफिया को मिट्टी में मिला देने’ वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पुराने बयान को तीन दिन से चला रहा है।
अफजाल ने एबीपी न्यूज को दिए एक साक्षात्कार में कहा है कि वे तो मुख्तार की मौत का राजनीतिकरण नहीं करेंगे, लेकिन बहुत संभव है कि भाजपा इसे राजनीतिक रूप से भुनाने की कोशिश करे। ऐसे में बसपा, सपा और कांग्रेस के लिए उन सीटों पर दिक्कत खड़ी हो सकती है जो पूर्वांचल से बाहर की हैं। ओवैसी को ऐसा कोई खतरा प्रत्यक्ष नहीं है क्योंकि उनका पूरे यूपी में कोई दांव नहीं है।