गहलोत भले ही पायलट को मात देते रहे हों मगर आईपीएस पंकज चौधरी पर नहीं चल रहा बस!

Update: 2023-09-06 06:40 GMT

प्राय: देखा और सुना यह जाता है की ब्यूरोकेसी में उस से संबंधित मंत्री या अन्य सुपर अथॉरिटी के आदेशों की अवहेलना करने या ब्यूरिकेट्स द्वारा अपने अधिकारों के लिए मुंह खोलने पर उस ब्यूरिकेटेस को संबंधित नेता जी या सुपर अथॉरिटी का कोप भाजन सहना पड़ता है। ट्रांसफर, निलंबन या शो काज नोटिस आदि कार्यवाही से बचने कर अपनी सर्विस बचाने या सुपर अथॉरिटी से दुश्मनी लेने से बचने के लिए ब्यूरोकेट मजबूरन जायज या नाजायज आदेश का पालन करना ही श्रेष्ठ समझना पड़ता है।

जिस में एक साल में कई तबादले आदि आदि परेशानी से बचाव हो जाता है। कई मगर अपने अधिकारों के लिए सुपर अथॉरिटी से संघर्ष करने के मामले में कभी कभी देश के ऐसे अधिकारियों के मामले सामने आते रहते है। राजस्थान में भी आईपीएस पंकज चौधरी का नाम भी ऐसे ही गिने चुने अधिकारियों में आता है जो अपने अधिकार के लिए संघर्ष करने में सुपर अथॉरिटी को चुनौती दे सकते है। पंकज 2009 बेच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी है। जो पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और वर्तमान सीएम अशोक गहलोत के आदेशों को भी चुनौती दी। और सब से बड़ी बात यह की उन्हे बर्खास्त करने के आदेश को भी सरकार को वापस लेना पड़ा।

जब राजस्थान में वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री हुआ करती थी उसे समय प्रमुख सचिव तन्मय कुमार ने कई तरह के आरोप लगाए थे। अगर ताजा बात करें तो अभी उन्होंने पिछले वर्ष आरपीएससी में युवाओं के पीड़ित होने के बाद ट्वीट कर कहा था की जख्मी जादूगर जी आरपीएससी सदस्य जेल जाने से युवा दिग्भ्रमित हो रहे है। पंकज ने सलाह दे दी की तीन माह के लिए आरपीएससी की कमान उन्हें सौंप दी जाए तो वे तीन माह में आरपीएससी की सारी गंंदगी समाप्त कर देंगे।

ऐसा नहीं वे खुद के लिए लड़ते हों, हाल ही में आरपीएस अवनी कुमार को एसडीआरएफ में कमांडेंट के पद पर (जो आईपीएस का पद है) पर स्थानांतरित कर दिया। जिसके विरुद्ध भी पंकज सरकार ने इस आदेश को गलत ठहराते हुए न्यायालय में चुनौती दे दी जिस पर इसी सप्ताह सरकार को जवाब देना है। कुल मिलाकर पंकज चौधरी की कार्यप्रणाली से अन्य ब्यूरोकेट्स को भी अपने अधिकारों के लिए प्रेरणा लेनी चाहिए।

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