टीना डाबी से प्रेरणा लेनी चाहिए अफसरों को, राजधानी जयपुर में कानून और व्यवस्था ध्वस्त

चीफ सेक्रेटरी को औचक निरीक्षण से कोई परहेज नही है तो कलेक्टर, संभागीय आयुक्त, डीजीपी, पुलिस कमिश्नर आदि को गुरेज क्यों ?

Update: 2024-09-26 06:23 GMT

महेश झालानी

प्रशासनिक और पुलिस सेवा के लिए बाड़मेर की कलेक्टर टीना डाबी एक मिसाल बन गई है । उन्होंने कुछ सप्ताह में बाड़मेर की तस्वीर बदल कर रख दी है। उनका सफाई अभियान लोगो के सिर चढ़ कर बोल रहा है । नेता और आम जनता की टीना डाबी चहेती बन गई है ।

राज्य सरकार ने कुछ दिन पहले ही उन्हें बाड़मेर के कलेक्टर पद पर नियुक्त किया था । पद ग्रहण करने के साथ ही उन्होंने बाड़मेर की तस्वीर बदलने की ठानी । अतिक्रमण और सफाई अभियान को उन्होंने मुख्य मुद्दा बनाया । वे खुद मौके पर जाकर लोगो से अतिक्रमण हटाने और कचरा साफ करने के लिए प्रेरित कर रही है । उनके इस अभियान का अनुकूल और सार्थक परिणाम सामने आ रहा है ।

इससे पहले जब वे जैसलमेर कलेक्टर पद पर तैनात थी, तब इन्होंने बेहतरीन कार्य किया । कुछ ही दिनों में वे जनता की चहेती बन गई । इसी प्रकार भीलवाड़ा में एसडीएम रहते हुए कोरोना के वक्त नायाब कार्य करके एक मिसाल कायम की । पूरी दुनिया मे "भीलवाड़ा मॉडल" सुर्खिया बन गया था । नए आईएएस और आईपीएस विशेषकर जिला कलेक्टरों और एसपी आदि को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए । क्योंकि कलेक्टर और एसपी एसी चेम्बरों में बैठने के लिए नही, जनता की तकलीफ दूर करने के लिए नियुक्त किये जाते है ।

इधर राजधानी जयपुर की हालत बद से बदतर होती जा रही है । पूरे शहर में अतिक्रमण का बोलबाला है । बेखौफ होकर अवैध तरीके से अवैध निर्माण हो रहे है । हकीकत यह है कि जेडीए और नगर निगम आदि के सतर्कता प्रकोष्ठ केवल पैसे उगाने के लिए स्थापित हुए है । कानून और व्यवस्था की हालत नाकाबिले बर्दाश्त है । जुआ और सट्टा खुले आम हो रहा है । इसी तरह शराब की दुकानों के लिए सारे नियम और कायदे बेमानी होगये है । हर महीने बन्दी की राशि मे इजाफा हो रहा है ।

वैसे तो पूरे शहर की हालत बदतर है । लेकिन थाना महेश नगर, श्यामनगर, सोडाला, मानसरोवर, मुहाना, सांगानेर, जालूपुरा, आमेर, करधनी, वैशाली आदि में लगता ही नही है कि प्रशासन नाम की कोई चीज है । शराब और जमीनों पर कब्जे करने वाले बेखौफ सक्रिय है । पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने पूरी तरह आंख मूंद ली है ।

पहले मुख्य सचिव सुधांश पन्त कई जगह औचक निरीक्षण कर नींद में सोए हुए प्रशासन को जगाने का प्रयास किया था । लगता है कि अब वे भी ठंडे पड़ गए है । राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण इलाकों का दौरा और रात्रि विश्राम का आदेश दफन होकर रह गया है । जब चीफ सेक्रेटरी को औचक निरीक्षण से कोई परहेज नही है तो कलेक्टर, संभागीय आयुक्त, डीजीपी, पुलिस कमिश्नर आदि को गुरेज क्यों ?

मुख्यमंत्री को चाहिए कि वे प्रशासन के कान ऐंठे । केवल भाषण देने या परिपत्र जारी करने मात्र से सोया हुआ प्रशासन जागने वाला नही है । साथ ही अफसरों की लंबी लम्बी तबादला सूची जारी कना भी समस्या का हल नही है । हकीकत यह है कि तबादला उद्योग भ्रस्टाचार की प्रमुख जड़ है । सीएम को चाहिए कि वे जन प्रतिनिधियों से क्षेत्रीय विकास का हिसाब मांगे । क्योकि अधिकांश विधायक क्षेत्रीय विकास के प्रति पूरी तरह उदासीन है । जनता से उनका सम्बन्ध और संवाद लगभग टूट चुका है । 

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