कांग्रेस : दोनो गुट मारकाट पर आमादा, बागियों द्वारा शक्ति प्रदर्शन के नाम पर उत्पात

पप्पू की बेवकूफ़ और बचकाना हरकतों के कारण पार्टी पिंडदान के कगार पर खड़ी है ।

Update: 2020-08-23 04:36 GMT

महेश झालानी

लगता है कांग्रेस आलाकमान का या तो पार्टी पर नियंत्रण समाप्त होगया है अथवा वह इस काबिल नही रहा है कि कांग्रेस का नेतृत्व कर सके । आलाकमान को अब पार्टी पर मेहरबानी करनी चाहिए । वरना साल भर में ध्वस्त होने वाली कांग्रेस उससे पहले ही मलबे में तब्दील होकर रह जायेगी ।

हकीकत यह है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व आज आईसीयू में है तथा उसकी मानसिक स्थिति दयनीय हालत में है । तभी तो जिस व्यक्ति को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए था, आलाकमान सहित पार्टी के अनेक नेता उसकी मिजाजपुरसी में सक्रिय होकर रेड कार्पेट बिछाए बैठे है । शीर्ष नेतृत्व पार्टी का बाजा बजाने वाले के गले मे माला पहना कर अपने को धन्य समझ रहा है । अब इस पार्टी का अंतकाल सन्निकट है ।

वैसे तो कांग्रेस करीब करीब डूब चुकी है । रही सही कसर कुनबा पूरा कर रहा है । पार्टी बच सकती है । लेकिन पार्टी में तोड़फोड़ करने वाले बागियों को बाहर का रास्ता दिखाने के बजाय उनकी खातिरदारी कर सोनिया, राहुल, प्रियंका तथा उनके सलाहकार पार्टी का अंतिम संस्कार शीघ्र करने पर आमादा है । राहुल उर्फ पप्पू का दृढ़ संकल्प है कि जब तक मैं पार्टी का अंतिम संस्कार अपने हाथ से नही कर दूंगा, तब तक चैन से बैठना मेरे लिए हराम है । पप्पू की बेवकूफ़ और बचकाना हरकतों के कारण पार्टी पिंडदान के कगार पर खड़ी है ।

बात हो रही है सचिन पायलट की । जिसके आगे पूरी कांग्रेस पार्टी असहाय होकर इसके इर्द-गिर्द कत्थक कर रही है । मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने के लिए यह व्यक्ति 18 विधायको के साथ बगावत कर भाजपा की गोद मे खेलने चला गया था । कायदे से ऐसे बागी विधायको को बेआबरू करके पार्टी से बाहर करना चाहिए था । परंतु इसके विपरीत पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इनको पुचकारने में पूरा दम लगा रहा है । सवाल उठता है ऐसा क्यों ? क्या आलाकमान असहाय होगया है या पायलट के आगे घुटने टेकना उसकी की विवशता बन गई है । वर्त्तमान परिस्थितियो में दोनो बाते सही है । इसके अलावा यह भी सही है कि आलाकमान अपने सोचने-समझने की शक्ति खो बैठा है । इसलिए पार्टी की चिता तैयार की जा रही है ।

बगावत करके जब पायलट बीजेपी के टुकड़े चाटने गए थे तब तथाकथित युवा वर्ग ने बजाय सही रास्ता दिखाने के पायलट को गर्त में धकेलने का कार्य किया था । उसी का नतीजा है कि पायलट को आज अपनी ताकत दिखाने के लिए सौ से भी ज्यादा वाहन किराये पर लेने को मजबूर होना पड़ रहा है । पायलट की तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी सीएम की कुर्सी नही मिली थी । सच्चा दोस्त होने के नाते पायलट को भड़काना उनका प्रथम कर्तव्य था । इसलिए सिंधिया ऐसा बिलबिलाया था मानो नरेंद्र मोदी ने अमित शाह को बीजेपी से बाहर निकाल दिया हो ।

जो व्यक्ति पार्टी और अपने मतदाताओ का सगा नही हुआ, वह पायलट का खैर ख्वाह कैसे हो सकता है ? दरअसल कांग्रेस में एक ऐसा जहरीला पौधा विकसित हो रहा है जिसका काम पार्टी को डसना है । इन लोगो मे शामिल है - रणदीप हुड्डा, मिलिंद देवड़ा, जतिन प्रसाद, भंवर जितेंद्र सिंह तथा प्रियादत्त । राहुल की तरह बेवकूफी और बचकाना हरकतों में कोई किसी से कम नही है । सर्कस देखना है तो अकेला राहुल ही बहुत है । लेकिन अब तो राहुल की तर्ज पर सचिन भी सर्कस के करतब दिखा रहे है ।

विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद सचिन पायलट का एकमात्र ध्येय मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाना था । इसमे कोई बुरी बात भी नही है । राजनीति में लोग कुर्सी के लिए आते है । जनसेवा तो केवल दिखावी ड्रामा है । पायलट ने सीएम की कुर्सी हासिल करने के लिए आत्मसम्मान और स्वाभिमान का चोला ओढ़कर हरियाणा के मानेसर में भाजपा के टुकड़ों पर महीने भर तक अपने साथियों के साथ भरपूर गुलछर्रे उड़ाए । जब भाजपा को अहसास होगया कि इन तिलों में तेल नही है तो भाजपा ने मानेसर का होटल खाली करने का फरमान सुनाया । जब पायलट गुट पर विधायकी जाने का खतरा मंडराने लगा ये जन सेवक आनन-फानन में पुनः "जनता की सेवा" लबादा ओढ़कर बेशर्मो की तरह वापिस लौट आये ।

कायदे से इन बेशर्मो को सर नीचे करके चलना चाहिए था । लेकिन बजाय सर नीचा करने के फिर से पार्टी को पूरी तरह नेस्तनाबूद करने में सक्रिय होगये है । इसलिए, क्योकि अब इनकी विधायकी जाने का खतरा टल चुका है । बेशर्मी की पराकाष्ठा इसे ही कहते है । प्रियंका और राहुल जो कांग्रेस को डुबोने के जिम्मेदार है, उनको सचिन जैसे पार्टीद्रोही लोगों को हमेशा के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए था । लेकिन दोनों ने ऐसा नही करके बागियों के गले मे माला डालकर पार्टी के पिंडदान की तैयारी करली है । जब पार्टी आलाकमान स्वयं ही बागियों के गले मे माला डालने को लालायित हो तो बागियों द्वारा पार्टी में उत्पात मचाना स्वाभाविक है ।

गहलोत और पायलट के बीच लड़ाई की शुरुआत तो विधानसभा चुनाव परिणाम के साथ से ही प्रारम्भ होगई थी । मुख्यमंत्री बनने के लिए दोनों लड़ पड़े । गहलोत अपनी गोटी फिट करने लगे तो पायलट ने बगावती तेवर दिखाए । जो लोग बेशर्मी से यह कहते है कि हम कुर्सी के भूखे नही है, वे कुर्सी हथियाने के लिए आपस मे गुत्थम-गुत्था होगये । कई दिनों तक इन लोगो की बेशर्मी का नंगा नाच दिल्ली की सड़कों पर दिखाई दिया ।

अंततः जब यह निर्णय हुआ कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अशोक गहलोत काबिज होंगे, तभी से गहलोत को अपदस्थ करने के लिए अंदर ही अंदर षड्यंत्र होने लगा । कुर्सी का हर कोई भूखा होता है । लेकिन पायलट ने तो शपथ ग्रहण के दौरान ही अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया । मंच पर कुर्सी लगाने के लिए पायलट अड़ गए । जो व्यक्ति कुर्सी लगाने के लिए क्लेश कर सकता है, उसकी महत्वाकांक्षा का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।

इसे आलाकमान की नासमझी ही कहा जाएगा कि एक महीने के बाद उसकी नींद तब टूटी जब सबकुछ स्वाहा होने लगा । एक तरफ से निकम्मे और नकारा की बौछारे होने लगी तो दूसरी ओर से हमला किया गया कि गहलोत सरकार अल्पमत में है । दोनों ओर से बाड़ेबंदी होने लगी । किसी ने मानेसर में विधायकों को जानवरो की तरह खूंटे पर बांध रखा था तो कोई फ़ायरमोंट और सूर्यगढ़ में विधायको को कैद करने में सफल रहा । देश के नामी वकील कांग्रेस की आपसी लड़ाई में घी डालने के पूरे जोर-शोर से दलील देने के लिए मैदान में कूद गए । अदालतों का बहुत सा कीमती समय वाहियात लड़ाई में जाया होगया ।

बहरहाल ! आलाकमान ने इस आपसी लड़ाई को निपटाने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन तो कर दिया है । लेकिन यह समिति कोई मुकम्मल हल खोज पाएगी, इसमे संदेह है । दोनों पक्षो को ना तो अजय माकन स्वीकार है और न ही कमेटी । माकन के बारे में एक विधायक ने कहाकि जो व्यक्ति दिल्ली में पार्टी की भट्टी बुझा चुका है, वह राजस्थान में कोई भी चमत्कार दिखाने में असफल साबित होगा । उनको पहले अपने घर को मजबूत करना चाहिए ।

वर्तमान हालातो में दोनों ओर से तलवारे खिंची हुई है । ऐसे में समझौते की उम्मीद करना बेमानी होगा । सचिन फिर से कांग्रेस का दामन छोड़कर किसी ओर के नाम का चूड़ा अपने हाथ मे पहन सकते है या फिर गहलोत को दिल्ली भेजकर किसी अन्य व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है । लेकिन गहलोत इसको स्वीकार कर सकेंगे इसकी उम्मीद बहुत कम है । इन हालातों में राष्ट्रपति शासन या फिर विधानसभा भंग की भी सिफारिश भी की जा सकती है । फिलहाल पायलट खेमे की ओर से उत्पात मचाया जा रहा है । जब गहलोत खेमा भी उत्पात मचाने पर आमादा हो जाएगा तब कांग्रेस की महाभारत में होगा चारो ओर हाहाकार । 

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