पायलट को फिर आलाकमान ने बैरंग भेजा, बेइज्जती कराने के बजाय इंतजार करना होगा
बेइज्जती कराने के बजाय इंतजार करना होगा
अंसतुष्ट कांग्रेसी नेता सचिन पायलट एक बार फिर से बैरंग जयपुर लौटने वाले है । वे दिल्ली से रवाना हो चुके है और शाम तक जयपुर आने की संभावना है ।
वैसे तो पायलट हर शनिवार और रविवार को दिल्ली जाते है । लेकिन इस बार मुख्य मुद्दा अपने समर्थकों को मंत्रिमंडल और राजनीतिक नियुक्तियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिलाना था । तीन-चार की प्रतीक्षा के बाद भी उनकी न तो राहुल गांधी से मुलाकात हुई और न ही प्रियंका से । पायलट से सोनिया गांधी बेहद खफा है, इसलिए वे मुलाकत या बातचीत करने के पक्ष में नही है ।
ज्ञात हुआ है कि पायलट ने प्रियंका और राहुल से मुलाकात करने के भरसक प्रयास किये । लेकिन उनको सफलता हाथ नही लगी । उधर पंजाब के बागी नेता नवजोत सिंह सिद्धू से न केवल राहुल ने बल्कि प्रियंका गांधी ने भी मुलाकत कर उनका काफी देर तक पक्ष सुना ।
बताया जाता है कि प्रियंका गांधी ने पंजाब की समस्या सुलझाने का बीड़ा उठाया है । इसलिए सिद्धू से मुलाकात करने के बाद प्रियंका पार्टी की अध्यक्षा सोनिया गांधी से मुलाकात करने गई । बातचीत जारी है । उम्मीद है कि निर्णय सिद्धू के पक्ष में जा सकता है ।
इस घटनाक्रम से यह तो जाहिर होगया है कि आलाकमान की नज़रों में पायलट की अब कोई इज्जत और हैसियत नही है । पहले जब इन्होंने बगावत की, तब हस्तक्षेप करना आलाकमान की मजबूरी थी । क्योकि उस वक्त गहलोत सरकार के गिरने का खतरा मंडरा रहा था ।
आज स्थिति पूरी तरह बदल गई है । गहलोत ने अपनी ना केवल अपनी स्थिति मजबूत करली है, बल्कि पायलट खेमे के कई विधायको को तोड़कर अपने पाले में शामिल कर लिया है । आलाकमान बखूबी जानता है कि आज पायलट ब्लैकमेल करने की स्थिति में नही है । पार्टी में रहना उनकी विवशता है । क्योंकि बीजेपी में जाना या तीसरे मोर्चे की दुकान खोलना राजनीतिक आत्महत्या के सिवा कुछ नही है ।
पायलट को यह समझ लेना चाहिए कि दिल्ली में अब उनकी कोई सुनवाई नही होने वाली है । सुनवाई भी होगी तो उनको वह नही मिलने वाला है जिसके वे तलबगार है । पायलट और उनके समर्थकों ने सारे हथकंडे अपना लिए है, लेकिन नतीजा जीरो रहा । समर्थक कभी इस्तीफे का नाटक करते है तो कभी धरने का ।
कुछ विधायक तो नए नए पैतरे आजमा रहे है । कभी "सचिन आ रहा है" तो कभी एससी और एसटी वालो पर जुल्म हो रहा है, का भी राग अलापते रहे है । खुद सचिन मातमपुरसी जैसे स्वांग के जरिये रोज नया तमाशा दिखाने को विवश है । इस तरह के तमाशो से वे खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे है । अब तो समर्थित विधायको भी पायलट से भरोसा उठता जा रहा है ।
राजस्थान में दो व्यक्तियों ने मूर्खतापूर्ण कदम उठाकर राजनीतिक रूप से आत्महत्या की है । एक घनश्याम तिवाड़ी और दूसरे सचिन पायलट । अपनी बचकानी हरकतों की वजह से तिवाड़ी ने खूब जग हंसाई कराई । बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में गए और अब वापिस बीजेपी में शरीक तो होगये । लेकिन इनको कोई अहमियत नही दे रहा है । यदि ये ठंडा करके खाते तो आज इनकी पार्टी में बहुत बड़ी हैसियत होती ।
इसी प्रकार पायलट ने भी मूर्खतापूर्ण कदम उठाया । इसकी वजह से आज इनकी पार्टी में कोई हैसियत नही है । आलाकमान इनके नाम से ही बिदकने लगा है । भीड़ एकत्रित करने ये अवश्य पारंगत है । लेकिन इसका फायदा क्या ? पुचकारने के लिए भले ही इन्हें कोई छोटा-मोटा पद दे दिया जाए । लेकिन पीसीसी चीफ और उप मुख्यमंत्री पद पर बहालगी कैसे होगी ?
यह तो साबित होगया है कि सिद्धू की तुलना में पायलट की फिलहाल कोई हैसियत नही है । बजाय आये दिन बेइज्जती कराने के, इनको चुप होकर तब तक इंतजार करना चाहिए जब तक स्टार फेवर नही हो जाते । वर्तमान में इनके सितारे गर्दिश में है । इनके समर्थकों को उल-जुलूल हरकत छोड़कर सही समय का इंतजार करना चाहिए । वरना अगले चुनाव में टिकट के भी टोटे पड़ जाएंगे ।