हर 30 घंटे में बना 1 अरबपति, 33 घंटे में 10 लाख लोग हुए गरीब, रिपोर्ट में दावा
विश्वव्यापी कोरोना महामारी ने पिछले करीब सवा दोल साल में जहां करोड़ों लोगों की जिंदगी को तबाह कर रख दिया, वहीं कुछ उद्योगपतियों के लिए यह वरदान साबित हुई है।
विश्वव्यापी कोरोना महामारी ने पिछले करीब सवा दोल साल में जहां करोड़ों लोगों की जिंदगी को तबाह कर रख दिया, वहीं कुछ उद्योगपतियों के लिए यह वरदान साबित हुई है। वैश्विक ऑक्सफैम प्रॉफिटिंग फ्रॉम पेन रिपोर्ट तो हैरान करने वाला है। ऑक्सफैम की ताजा वैश्विक रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के दौरान दुनिया में हर 30 घंटे में 1 व्यक्ति अरबपति बनकर उभरा तो हर 33 घंटे में 33 लाख लोगों को हमेशा के लिए गरीबी की गर्त में धकेल दिया। यह रिपोर्ट दावोस में हो रही विश्व आर्थिक मंच की सलाना बैठक के अवसर पर जारी हुई है।
कोरोना के शुरुआती 24 महीनों में ही अमीरों की संपत्ति इतनी बढ़ी की बीते 23 वर्षों में इतनी नहीं बढ़ पाई। दूसरी तरफ हर 33 घंटों में दस लाख लोग दर्दनाक गुरबत में चले गए। आक्सफैम इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोनाकाल में 573 नये अरबपति बने जिससे इनकी तादाद बढ़कर 2,668 हो गई। इनकी संपत्ति की बात करें तो यह थोड़े से समय में 3,800 अरब डॉलर चढ़कर 12,700 अरब डॉलर हो गई। कोरोना के दौरान सबसे ज्यादा मुनाफा खाद्य, ऊर्जा और दवा क्षेत्र से जुड़े उद्योगपतियों ने कमाया।
आक्सफैम के कार्यकारी निदेशक गैब्रिएला बुचर का कहना है कि अरबपतियों की किस्मत इसलिए नहीं चमकी कि वे ज्यादा मेहनत कर रहे हैं बल्कि वे श्रमिकों से कम वेतन और खराब हालात में ज्यादा काम करवा रहे हैं। अमीर लोगों ने गरीबों की मजबूरी का बेजा फायदा उठाया है। ऑक्सफैम प्रॉफिटिंग फ्रॉम पेन रिपोर्ट ने श्रमिक अधिकारों को धत्ता करार दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के शीर्ष अमीरों ने दशकों तक व्यवस्था में जो धांधली की उसका फायदा उन्होंने कोरोनाकाल में जमकर उठाया है। दुनिया के अरबपतियों की कुल संपत्ति अब वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद की 13.9 फीसद के बराबर है। यह 2000 में 4.4 फीसद थी, जो तीन गुना बढ़ चुकी है।
ऑक्सफैम इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक गैब्रिएला बुचर ने रिपोर्ट में कहा कि अरबपतियों की तकदीर उनकी इसलिए नहीं बढ़ी हैं कि वे स्मार्ट हो गए हैं या कड़ी मेहनत कर रहे हैं बल्कि इसलिए बढ़ी है कि सुपर रिच दशकों से की गई धांधली का अब लाभ उठा रहे हैं। निजीकरण व एकाधिकार के चलते उन्होंने विश्व संपत्ति का बड़ा हिस्सा झपटा है और अपनी संपत्ति को टैक्स हैवन बने tax havens देशों में छिपा रहे हैं।