नई दिल्ली। बिहार के अंग प्रदेश के लोगों ने पचास साल पहले राज्य सरकार की ओर से कर्ण पुरस्कार देने के लिए की गई एक घोषणा के अब तक अमल में नहीं लाने पर गैर सरकारी तरीके से उसे खुद से ही शुरू करने का फैसला किया है। अब भागलपुर में यानी कर्ण की नगरी में हर साल उभरती हुई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए कर्ण पुरस्कार दिया जाएगा।
गौरतलब है कि कर्ण से अंग प्रदेश की पुरानी पहचान है। कर्ण युद्धवीर और दानवीर के रूप में जाने जाते रहे हैं। दान के मामले में उनसे बड़ा कोई दानवीर नहीं है। कर्ण को दानवीर के रूप में पूरा देश जानता है। अंग प्रदेश के प्रसिद्ध राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह दिनकर की कर्ण पर केंद्रित काव्य पुस्तक रश्मि रथी हिंदी सहित अनेक भारतीय भाषाओं में अनूदित है। और खूब प्रसिद्ध भी है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि रामायण और महाभारत के विभिन्न पात्रों में सबसे अधिक साहित्यकारों और कवियों की कलम कर्ण पर ही ज्यादा चली है। अंग प्रदेश के चर्चित साहित्यकार डॉ अमरेन्द्र की कर्ण पर लिखी काव्य कृति भी खूब चर्चित है। लेकिन दुर्भाग्य है कि सरकार की उदासीनता और आम जनता के अनभिज्ञ होने के कारण अंग प्रदेश में कर्ण की कोई प्रतिमा नहीं है। उनसे जुड़ी सभी निशानियां काल कवलित होती जा रही हैं। नाथनगर स्थित कर्ण गढ़ की स्मृतियों को एक सरकारी संस्था ही ख़तम करती जा रही है।
यह जानकारी देते हुए अंग जन समागम के संयोजक और वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने बताया कि 1977 में चंपानगर में हुए अंगिका विकास सम्मेलन में बिहार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री स्व गुनेश्वर सिंह ने पद्मश्री से अलंकृत विख्यात गांधीवादी चिंतक डॉ रामजी सिंह की मौजूदगी में राज्य सरकार की ओर से कर्ण पुरस्कार शुरू करने की घोषणा की थी। वह सिर्फ घोषणा ही रह गई। घोषणा के पचास साल हो गए। अंग प्रदेश की जनता इंतजार करती रह गई। अब इंतजार नहीं। अब इसे साकार किया जाएगा। विश्व मातृभाषा दिवस पर भागलपुर के दिनकर भवन में 21 फ़रवरी को आयोजित होने वाले अंग जन समागम में अंगिका की विभूतियों की मौजूदगी में अंग प्रदेश की 11 हस्तियों को जनता की ओर से कर्ण पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। सम्मान स्वरूप इन युवा हस्तियों को प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिन्ह दिया जाएगा।
सम्मानित होने वाली हस्तियां
इसके अलावा लैलक मामालखा आदि के नाम है। इनमे ज्यादातर हस्तियां अंग संस्कृति और कला, भाषा और साहित्य के लिए समर्पित लोग हैं।