अरुण दीक्षित
अभी एक खबर आई कि मध्यप्रदेश में किसानों के लिए आया सरकारी कोटे का करोड़ों का यूरिया जबलपुर से "गायब" हो गया। किसान पुत्र मुख्यमंत्री गुस्से से लाल हो गए।उन्होंने सुबह 7 बजे अफसरों की वर्चुअल इमरजेंसी बैठक बुलाई!पहले उन्होंने अफसरों से मामला समझा!
फिर अफसरों को समझाया - इस तरह काम नही चलेगा।यूरिया वापस चाहिए।जिम्मेदार लोगों को पकड़ो।मुकदमें दर्ज करो!कुछ भी करो!किसानों को यूरिया मिलना चाहिए।पूरे प्रदेश में कहीं भी यूरिया की कमी नही होनी चाहिए।
अफसरों ने मुख्यमंत्री का रुख देखा।चुनावी साल के हिसाब से मामले की गंभीरता को समझा। शायद उन्होंने यह भी समझा कि अब मुख्यमंत्री को कुछ भी समझा पाना मुश्किल होगा।फिर क्या था!साहब लोग तत्काल जुट गए यूरिया खोजो अभियान में।
सरकारी सूत्रों द्वारा किए गए दावे के मुताबिक मुख्यमंत्री के सामने वर्चुअली पेश हुए अफसरों ने एक्चुअली आसमान और पाताल एक कर दिया।हनुमान जी जैसे लंका से बूटी लाए थे ठीक वैसे ही तीन घंटे में करीब 130 मीट्रिक टन यूरिया वे चोरों के अड्डे से उठा लाए। यह यूरिया जबलपुर के ही दो गोदामों में रखा गया था।
इस संबंध में यह भी पता चला है कि सरकार के कोटे का यूरिया कृषक भारती कोआपरेटिव लिमिटेड के अफसरों और उसके आधिकारिक ट्रांसपोर्टर ने मिलकर गायब कराया था।
कृभको के अफसरों के खिलाफ सरकार ने मुकदमा दर्ज करा दिया है।ट्रांसपोर्टर को भी इसमें शामिल किया गया है।कुछ अफसर पकड़े जा चुके हैं।कुछ की तलाश जारी है।मुख्यमंत्री के गुस्से का ताप इस बात से आंका जा सकता है कि कृभको के एक अफसर को चलती ट्रेन से उतारा गया है।वह गिरफ्तारी से बचने के लिए अपने परिवार को लेकर भोपाल से गोरखपुर भाग रहा था।हालांकि खाद को इधर से उधर करने वाला ट्रांसपोर्टर अपना ट्रक लेकर भागा हुआ है।
अब असल किस्सा सुनिए!ऐसा पहली बार नही हुआ है। हर साल प्रदेश में खाद का संकट होता है।किसान भटकता है। निजी व्यापारियों से दोगुने दाम पर खाद खरीदता है। रो गाकर चुप बैठ जाता है।ज्यादा बारिश और पाले की तरह इसे भी भगवान का प्रकोप मानकर अपनी अगली फसल की तैयारी में लग जाता है।मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री बड़े बड़े बयान देते रहते हैं।किसान इन्हें रोजमर्रा की बात मानकर अपना गम भूल जाता है।
इस बार भी ऐसा ही होता।शायद ऐसा हो भी।क्योंकि जिस मामले पर मुख्यमंत्री आगबबूला हुए वह पांच दिन पुराना था।सारा गेम अफसरों ने मिल खेला था।आखिर सबको हिस्सा जो मिलना था।
बताते हैं जानकारी तो सरकार को भी थी कि सीधे सरकार द्वारा किसानों को दिए जाने वाला यूरिया "गायब" हो गया है।इसके चलते सरकार ने अपने एक आला अफसर को हटाया भी था।लेकिन सब कुछ कछुआ चाल चल रहा था।
बताते हैं कि इसी बीच पोषण आहार मामले पर एजी की रिपोर्ट को लेकर हंगामा हो गया।सरकार पर सरकार के ही एक विभाग द्वारा सवाल उठाया गया।जवाब मांगा गया।लेकिन जवाब से पहले ही मामला मीडिया में आ गया।
चूंकि विभाग के मुखिया खुद मुख्यमंत्री हैं और मामला भी गरीब बच्चों, गर्भवती महिलाओं और किशोरियों से जुड़ा हुआ था इसलिए हंगामा होना लाजिमी था।यह अलग बात है कि कांग्रेस के नेता भाजपा सरकार को ठीक से घेर नही पाए लेकिन मीडिया में आने की वजह से रायता फैल गया।इस मुद्दे पर फिलहाल सरकार की रोज किरकिरी हो रही है।मुख्यमंत्री की मदद को आगे आ रहे मंत्री कुछ ऐसा कह जा रहे हैं कि बुझी आग फिर से सुलगने लगती है।
ऐसे में जब खाद गायब होने की बात सामने आई तो मुख्यमंत्री खुद मैदान में कूदे।परिणाम सामने है।चोरी गया यूरिया कुछ घंटे में ही मिल गया।
इससे एक बात और साबित हो गई! अगर कोई थानेदार अगर चाह ले तो उसके इलाके में कोई अपराध नहीं हो सकता।ठीक उसी तरह अगर राज्य का मुखिया अगर चाह ले तो पूरे राज्य में कहीं भी भ्रष्टाचार नही हो सकता।मुख्यमंत्री ने चाहा तो तत्काल चोरी गया यूरिया बरामद हो गया।
अब सवाल यह है कि प्रदेश में सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री पद पर रहने का रिकॉर्ड बना चुके शिवराज सिंह ने इस तरह का "गुस्सा" पहले क्यों नही दिखाया।क्यों अब तक उन्होंने इस तरह अफसरों की लगाम कसी?
जमीनी सच्चाई यह है कि मुख्यमंत्री का जितना लंबा कार्यकाल है उतने ही लंबे और बड़े बड़े घोटाले प्रदेश में हुए हैं।मध्यप्रदेश का व्यापम घोटाला पूरी दुनिया में चर्चित हुआ है।इस घोटाले पर फिल्में भी बनी हैं।सीबीआई आज भी जांच कर रही है।बड़े बड़े लोग पकड़े गए थे।बड़ों बड़ों के नाम आए थे।खुद मुख्यमंत्री जांच के दायरे में आए थे।उनके एक मंत्री तो लंबे समय तक जेल में रहे थे। कुछ अफसरों ने भी "कृष्ण जन्मस्थान" में रहने का आनंद उठाया है।प्रदेश की कई बड़ी हस्तियां भी सलाखों के पीछे पहुंचीं थीं।कहा तो यह भी जाता है कि इस घोटाले से जुड़े 50 से ज्यादा लोग अकाल मौत मरे हैं।अभी भी सीबीआई जांच कर रही है।
व्यापम के बाद ई टेंडर घोटाला भी हुआ।वह भी जांच के दौर में है।कहा यह जाता है कि यह तो व्यापम से भी बड़ा घोटाला है।क्योंकि यह 80 हजार करोड़ के टेंडरों से जुड़ा है।
प्रदेश का सबसे बड़ा और स्थाई घोटाला तो खनन घोटाला है।नर्मदा सहित प्रदेश की सभी नदियों में अवैध खनन हो रहा है। अवैध खनन रोकने की कोशिश में एक युवा आईपी एस अधिकारी सहित दर्जनों सरकारी कर्मचारी अपनी जान गंवा चुके हैं।
मध्यप्रदेश की नदियों से अवैध खनन में आसपास के राज्यों के माफिया भी शामिल हैं।मुख्यमंत्री कहते हैं कि माफिया और भ्रष्ट अफसरों को जमीन में गाड़ देंगे। लेकिन उन्हें अभी तक इस मामले में इतना गुस्सा नही आया कि वे नर्मदा का ही अवैध दोहन रुकबा सकें।
पोषण आहार घोटाले को तो महालेखाकार की टीम ने पकड़ा है।इसलिए चर्चा ज्यादा है।
ऐसा ही घोटाला फर्जी नर्सिंग कालेजों का भी है।लाखों छात्रों के भविष्य से जुड़े इस घोटाले पर भी मुख्यमंत्री को जोर का गुस्सा नही आया।
सिंचाई विभाग का एक एक नया बना बांध पिछले दिनों टूट गया।कुछ और नए पुल और सड़कें बह गईं।सिंचाई विभाग से एक ठेकेदार बिना काम किए सैकड़ों करोड़ लेकर चंपत हो गए। कई परियोजनों का काम अधूरा है।लेकिन उन पर मुख्यमंत्री को गुस्सा नही आया। हां जांच आयोग और जांच समितियां बन गई हैं।अपना काम कर रही हैं।
और तो और मुख्यमंत्री की सबसे प्रिय कन्यादान योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी।इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री बहुत ही संवेदन शील हैं।बच्चियों की उन्हें बहुत चिंता रहती है।लेकिन उन्हें इस घोटाले पर खाद जैसा गुस्सा नही आया। विदिशा जिले के एक इलाके में ही करोड़ों का खेल हो गया।पर सरकार की जांच उससे आगे बढ़ती नजर नहीं आई।अगर पूरे प्रदेश की जांच हो जाती तो आंकड़ा बहुत बड़ा हो जाता।
शायद मुख्यमंत्री का गुस्सा कम रह गया!कन्यादान की राशि अफसर और बिचौलिए खा गए।
ऐसे मामलों की सूची बहुत लंबी है।लेकिन अब यही कह सकते हैं कि जब जागे तभी सवेरा!जब गुस्सा आ गया तब ही सही। हालांकि अब समय कम बचा है।चुनाव का साल आ गया है।लेकिन अगर मुख्यमंत्री को ऐसे ही गुस्सा आता रहे तो कमाल हो जाएगा।यह कमाल "कमल" को मजबूती देगा।
देखना यह है कि अब गुस्से का कमाल आगे होता है कि नहीं।क्योंकि कुछ भी हो सकता है।मुख्यमंत्री नरम दिल जो ठहरे।और फिर अपना एमपी तो गज्जब है न!