यह आम धारणा बनी हुई है कि नालंदा महाविहार का विध्वंस बख़्तियार ख़िलजी के हाथों हुआ। और उसी बख़्तियार ख़िलजी के नाम पर बख़्तियारपुर जंक्शन है। जबकि सच यह है कि नालंदा महाविहार का पतन बौद्ध भिक्षुओं और ब्राह्मण पुजारियों के बीच हुए संघर्ष की वजह से हुआ।
मुस्लिम इतिहासकार मिन्हाज ने अपनी किताब Tabaqat-i-Nasiri (1260 ) में लिखा है कि बख़्तियार ने आनंद-विहार या ओदंतपुरी-विहार (बिहार शरीफ के निकट) पर आक्रमण किया। उसने नालंदा का उल्लेख नहीं किया है। वह केवल "बिहार के किले" (हिसार-ए-बिहार) पर बख़्तियार के हमले की बात करता है। प्रख्यात इतिहासकार डी.एन.झा लिखते हैं कि इस आक्रमण और लूटपाट के बाद बख्तियार झारखण्ड होते बंगाल के नादिया चला जाता है।
इतिहासकार आर.के.मुखर्जी अपनी पुस्तक 'प्राचीन भारत में शिक्षा', सुकुमार दत्त अपनी किताब बुद्धिस्ट मॉन्क्स एंड मॉनस्ट्रीज ऑफ़ इंडिया, बुद्ध प्रकाश अपनी किताब आस्पेक्ट्स ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री एंड सिविलाइजेशन और जदुनाथ सरकार, हिस्ट्री ऑफ़ बंगाल वॉल्यूम- 2 में इस बात की पुष्टि करते हैं कि नालंदा महाविहार का पतन बौद्ध भिक्षुओं और ब्राह्मण पुजारियों के बीच हुए संघर्ष की वजह से हुआ। रहा बख़्तियारपुर जंक्शन! तो मुस्लिम इतिहास के जानकारों के मुताबिक यह नामकरण उस इलाके में रह रहे एक सूफी बख़्तियार के नाम पर हुआ है।
(पिछले दिनों नीतीश कुमार के इस कथन पर कि मेरा जन्म बख्तियारपुर में हुआ है, इसके नाम को बदलने की जरूरत क्या है! इसके बाद भाजपा के खेमे में हुआ हंगामा मचा हुआ है।)