केन्द्र की मोदी सरकार की कर नीति को क्या राम राज्य की कर नीति कहा जा सकता है?

Update: 2021-10-20 11:23 GMT

कर निर्धारण का एक तरीका होता है। किस वस्तु पर कितना कर लिया जाए सरकारें अगर संवेदनशील हों तो जनता की जेब का भी ध्यान रखती हैं। ऐसा इसलिए भी करना पड़ता है क्योंकि जनता की नाराजगी कोई लोकतांत्रिक सरकार स्वीकार नहीं कर पाती है।

लेकिन वर्तमान में केन्द्र में जो सरकार है उसे इस बात का पूरा भरोसा है कि करों के नाम पर वह कोई भी लूटपाट करे, जनता नाराज नहीं हो सकती। इसलिए उसने डीजल पेट्रोल की कीमतों पर मनमाना कर लगा दिया। ऐसा उस समय किया गया जब कोरोना काल में क्रूड आयल की कीमतें 20 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गयी थीं। कहने के लिए ये जरूर कहा जाता है कि डीजल पेट्रोल की कीमतें बाजार तय करता है लेकिन वास्तविकता ये है कि इस पर केन्द्र सरकार का पूरा नियंत्रण होता है।

जब विश्व बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतें गिरीं तो केन्द्र सरकार ने मनमानी तरीके से कर बढा दिया। पेट्रोल पर जो कर 12 से 14 रूपये रहता था उसे बढाते बढाते 33 रूपये पर पहुंचा दिया। और डीजल पर अधिभार कभी भी 10 रूपये से अधिक नहीं रखा गया। केन्द्र सरकार ने उसे 32 रूपये कर दिया।

तर्क ये दिया गया कि जब क्रूड आयल की कीमतें गिरेंगी तब करों को कम करके कीमतों को समायोजित किया जाएगा। लेकिन शेर के मुंह में खून लग जाए तो वह शिकार छोड़ता है क्या? ठीक यही केन्द्र सरकार के साथ हुआ। क्रूड आयल मंहगा हुआ तो सरकार ने कर कम करने की बजाय डीजल पेट्रोल की कीमतों को बढने दिया।

यह निहायत ही गैर जिम्मेदारी वाला और जनता को लूटने वाला दृष्टिकोण था। इसका असर बाजार पर होना था। हुआ और मंहगाई बढ गयी। कोरोना की मार से बाहर निकलती जनता को आज मंहगाई की मार का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई। क्रूड आयल सस्ता हुआ तो उसने जनता को लाभ नहीं पहुंचने दिया और क्रूड आयल मंहगा हुआ तो बोझ जनता पर डाल दिया।

जब केन्द्र सरकार ने चोरी और सीनाजोरी की नीति अपना लिया तो राज्य सरकारों की भी हिम्मत बढी और अलग अलग राज्यों ने अलग अलग कर बढा दिया। परिणाम आज हर लीटर डीजल पेट्रोल पर लगभग हर राज्य में जनता को 50 से 60 रूपया टैक्स देना पड़ रहा है। क्या इसे ही लोक कल्याणकारी सरकार कहेंगे? क्या लूट की ये नयी नीति ही राष्ट्रवाद है जो उस राम के आदर्शों पर सरकार चलाने का दावा करती है जिन्होंने कहा था कि राजा को कर इस प्रकार लेना चाहिए जैसे सूर्य जल अवशोषित करता है। लेकिन राजा को वही कर जनता को इस प्रकार वापस करना चाहिए जैसे मेघ बरसते हैं।

केन्द्र की मोदी सरकार की कर नीति को क्या राम राज्य की कर नीति कहा जा सकता है?

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