हाइवे पर अपराध रोकता नहीं, शिकार तलाशता है चोटियाबाज
हाइवे पर गुडवर्क भी, अवैध कमाई भी, अलग अलग उद्देश्य से घूमती है खाकी. खाकी की कृपा से अवैध कांटो से गुलजार हो रहे कई होटल संचालक
( विवेक मिश्र )
फ़तेहपुर जनपद भारत के सबसे प्रमुख हाइवे पर स्थित है। हाइवे से लाखों की संख्या में वाहन प्रत्येक दिन गुजरते हैं। जिनमे ऐसे सैकड़ो वाहन गुजर जाते होंगे जिनमे अफीम, गांजा, चरस, गौवंश आदि छुपाकर ले जाया जाता होगा। ऐसे में जरूरत है बेहतर मुखबिरी और हाइवे पर सक्रियता की। ऐसा भी नहीं है कि जिले के हाइवे पर बड़े गुडवर्क न हुए हों मगर उसमे अधिकतर लोकल पुलिस की भूमिका नगण्य रही, स्थानीय पुलिस ने एफआईआर लिखकर फ़ोटो खिंचवाकर सिर्फ अपनी पीठ थपथपाई। जबकि एसटीएफ ने फतेहपुर में आकर दर्जनों बार बड़े गुडवर्क किये।
हाइवे पर खागा से लेकर औंग तक दर्जनों अपराध हो रहे हैं मगर खाकी की सक्रियता काम नहीं आ रही। कई कई महीने हो जाते हैं एक बेहतर गुडवर्क के लिए अखबार के पन्ने तरस जाते हैं। हां इन दिनों बड़े गुडवर्क तो नहीं जिले की पुलिस अज्ञात शवो के पोस्टमार्टम में जरूर ब्यस्त है। अपराधियो को ऐसा लगता है कि हत्या करो, फतेहपुर में शव ठिकाने लगा दो। वहां की पुलिस खुलासा न करना पड़े इसके लिए स्वयं उसे सड़क दुर्घटना या पानी मे डूबकर मौत या ट्रेन से कटकर मौत बताने में ऊर्जा लगा देगी। शायद यही वजह है कि जिले में अब तक दर्जनों अज्ञात शव मिल चुके हैं मगर खुलासा तो दूर, उनकी पुलिस शिनाख्त भी नहीं करा पाई है। हाइवे पर हो रहे अपराधों के प्रति अगर पुलिस गम्भीर होती तो सबसे पहले होटलों और ढाबो में संचालित हो रहे अवैध कांटो को सख्ती से बंद कराकर संचालको को जेल भेजती। ये कांटे सिर्फ अवैध सामान खरीद बिक्री के केंद्र नहीं, अपराध के अड्डे हैं। इन कांटो में ही चोरी व लूट के माल को औने पौने दामो में ठिकाने लगाया जाता है।
हाल ही में पुलिस ने सरिया से लदे हाइवे से लूटे गए ट्रक को कोतवाली क्षेत्र से बरामद किया है। अगर ट्रक का मालिक सौभाग्य से उस रास्ते से न निकलता तो कुछ ही घण्टो में न सरिया का पता चलता और न ही ट्रक का। बताते हैं इससे पूर्व भी ओमप्रकाश के गोदाम में कई ट्रक कट चुके हैं। फ़तेहपुर में ऐसे कई ओमप्रकाश सक्रिय हैं। जो चोरी के माल को खरीदते और ठिकाने लगाते हैं। सबसे अधिक चोरी के माल की खरीद बिक्री हाइवे पर संचालित ढाबो व होटलों से होती है। हाइवे में संचालित कुछ होटल संचालक रोटी बेचकर नहीं इन अवैध कांटो से ही करोड़पति बने हैं अन्यथा आप ही सोचिए कुछ वर्षों में करोड़ों की बिल्डिंगे, चमक धमक, बड़ी बड़ी गाड़ी कहां से आ जाती हैं। थानेदार भी अपराध को रोकने के बजाय कारखासो तक सीमित रह जाते हैं।
अवैध कांटो के सबसे अधिक अड्डे कल्याणपुर, कोतवाली, थरियांव व खागा क्षेत्र में हैं। कोतवाली क्षेत्र में हाइवे पर कई ऐसे स्थान हैं जहां चोरी का माल खरीदा और बेचा जाता है। एक दो स्थान ऐसे भी हैं जहां रातों रात गाड़ियां कट जाती हैं। इन स्थानों के तार शहर के कबाड़ी मार्केट से भी जुड़े हैं। कल्याणपुर और मलवां थाना क्षेत्र में भी आधा दर्जन अवैध कांटे संचालित हैं जहां चोरी का माल रात में ठिकाने लगाया जाता है। क्षेत्र के कई ऐसे होटल संचालक हैं जो इसी अवैध धंधे से फर्श से अर्श तक पहुंचे हैं। इन अवैध धंधों पर नकेल कसकर संचालको को जेल भेजने के बजाय थाने का कारखास साहब की गाड़ी लेकर रात भर निगहबानी करता है। बताते हैं थानेदारी पाने से पूर्व दर्जनों गुडवर्क करने वाले साहब इन दिनों चोटियाबाज के इशारे पर चल रहे हैं।
उन्हें विश्वास में लेकर चोटियाबाज और उसके सहायक ने अवैध कांटो सहित कई मादक पदार्थ तस्करों को संरक्षण दे रखा है। सौंह में भारी मात्रा में गांजे की बिक्री, नूरपुर मोड़ के समीप एक चर्चित होटल में, प्राथमिक विद्यालय गुगौली के समीप खुलेआम प्रतिदिन उतर रही सरिया इसका जीता जागता उदाहरण है। बताते हैं चौडगरा ओवरब्रिज के पास एक मैग्नीशियम, एल्मुनियम, कॉपर व सरिया खरीदने वाला कबाड़ी इस अवैध धंधे से खूब फल फूल रहा है। कल्याणपुर थाना क्षेत्र में कुछ महीनों में तीन चार अज्ञात शव मिल चुके हैं, जिनके खुलासे के प्रति थाने की पुलिस गंभीर नहीं है, हां सक्रियता रात में बक्सर बॉर्डर तक देखने को जरूर मिलती है जब थाने की गाड़ी ओवरलोड़ वाहनों के पीछे दौड़ती हुई नज़र आती है।
ये हाल सिर्फ कोतवाली या कल्याणपुर के नहीं है हाइवे में कमोवेश अधिकतर थानों में कारखास सड़क पर सक्रिय रहते हैं। हाइवे पर पशु तस्करी में लिप्तता पर पूर्व में जनपद के एक दरोगा सहित नौ पुलिसकर्मी एसटीएफ की रिपोर्ट पर निलंबित हुए थे। उसके बाद कुछ समय तक काला कारोबार ठंडा पड़ा फिर पुनः पशु तस्करों के तार हाइवे के अधिकतर थानों से जुड़ गए हैं। हाइवे पर कई ऐसे पुलिसकर्मी तैनात हैं जो दागी हैं और उन्हें हाइवे से हटा दिया गया था, कुछ ऐसे भी हैं जो थाने में तीन वर्ष से ऊपर से जमे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जिनकी अधिकतर नौकरी हाइवे पर ही बीत रही है। मगर देखने वाला कौन है जिन्हें पर्यवेक्षण करना चाहिए उन्हें पत्रकार समालोचक नहीं बल्कि दुश्मन नजऱ आते हैं। ऐसे में ब्यवस्था में सुधार नहीं सिर्फ बेहतर काम करने की ढकोसले बाजी ही हो सकती है।