गाँधी का चंपारण पहुंचना और चंपारण ना छोड़ने के निश्चय से ही ब्रितानी हुकूमत हिल गई थी
गाँधी जब चम्पारण गये थे तो उन्होंने तीन दिन का वक्त तय किया था, लेकिन फिर वहां के किसानों की दुर्दशा और खराब हालत देखकर गाँधी वहां एक वर्ष रुकना पड़ा। क्योंकि भारत की आजादी के इस महानायक को लगा कि जब तक यहां के लोगों के कष्टों का निवारण नही हो जाता चम्पारण छोड़ना मानवीयता से मुँह मोड़ना होगा।
गाँधी जब मुजफ्फरपुर पहुँचे तो उनसे वहां के कमिश्नर एल एफ मोरशेड ने कहा कि आपको यहाँ किसने बुलाया है? सरकार जांच कर रही है इसलिए आपकी इस मसले पर दखलंदाजी अनावश्यक है। उन्होने गाँधी को सलाह दी कि वह तुरंत वापस लौट जायें। तभी गाँधी को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है।
गाँधी ने कमिश्नर की सलाह को दरकिनार कर चंपारण जाने का फैसला लिया। गाँधी के पहुंचते ही वहां के डीएम ने धारा 144 लगा दी और गाँधी को एक नोटिस देकर चंपारण छोड़ने का निर्देश दिया, लेकिन गाँधी किसानों की व्यथा सुनकर लिखते रहे। गांधी को गिरफ्तार कर मोतिहारी कोर्ट मे धारा 144 के उल्लंघन का मुकदमा चला।
गाँधी का चंपारण पहुंचना और चंपारण ना छोड़ने के निश्चय से ही ब्रितानी हुकूमत हिल गई थी। फिर भी वह गाँधी को डराने का हर संभव प्रयास कर रही थी। जज ने गाँधी से कहा कि आप चंपारण छोड़ दे। हम आपके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। गाँधी के साफ इंकार करने पर, अदालत की कार्रवाई आगे जारी रहती है।
अदालत गाँधी को सजा सुनाने की भीतरी हिम्मत जुटा ही रही थी कि गांधी ने जज से कहा कि-"इस वक्त मैं सरकार से भी उच्चतर कानून अपनी अंतरात्मा के कानून का पालन करना उचित समझ रहा हूं। सरकार चाहे तो इस अपराध के लिए मुझे दंडित कर सकती है। मैं दंड सहने को तैयार हूं"। अदालत ने उन्हें 100 रुपये के मुचलके पर जमानत लेने को कहा, तो उन्होंने इससे भी इनकार कर दिया। थक हार कर जज महोदय को खुद मुचलका भरना पड़ा। यह उस वक्त के लिहाज से ऐतिहासिक घटना थी।