गांधी आज की आवश्यकता है
गांधी एक विचारक, चिंतक, अर्थशास्त्री के साथ ही मानवता के प्रकाश-स्तम्भ, युगात्मा, युगदृष्टा और प्रेरणा स्रोत हैं। उनके विचार देश-काल में सीमित न होकर सीमाओं से परे है। आज उदारीकरण के प्रभाव से दुनिया के सभी देशों की अर्थव्यवस्था एक दूसरे से जुड़ी हुई है
वैश्विक स्तर पर व्याप्त हिंसा, मतभेद, बेरोजगारी, महंगाई तथा तनावपूर्ण वातावरण में आज बार-बार यह प्रश्न उठाया जा रहा है कि गांधी के सत्य व अहिंसा पर आधारित दर्शन और विचारों की आज कितनी प्रासंगिकता महसूस की जा रही है। यूं तो गांधीवाद का विरोध करने वालों ने जिनमें दुर्भाग्यवश और किसी देश के लोग नहीं बल्कि अधिकांशतय: केवल भारतवासी ही शामिल हैं, ने गांधी के विचारों की प्रासंगिकता को तब भी महसूस नहीं किया था जबकि वे जीवित थे।
गांधी से असहमति के इसी उन्माद ने उनकी हत्या तो कर दी परन्तु आज गांधी के विचारों से मतभेद रखने वाली उन्हीं शक्तियों को भली-भांति यह महसूस होने लगा है कि गांधी अपने विरोधियों के लिए दरअसल जीते जी उतने हानिकारक नहीं थे जितना कि हत्या के बाद साबित हो रहे हैं। और इसकी वजह केवल यही है कि जैसे-जैसे विश्व हिंसा, आर्थिक मंदी, भूख, बेरोजगारी और नफरत जैसे तमाम हालात में उलझता जा रहा है, वैसे-वैसे दुनिया को न केवल गांधी के दर्शन याद आ रहे हैं बल्कि गांधीदर्शन को आत्मसात करने की आवश्यकता भी बड़ी शिद्दत से महसूस की जाने लगी है।
गांधी एक विचारक, चिंतक, अर्थशास्त्री के साथ ही मानवता के प्रकाश-स्तम्भ, युगात्मा, युगदृष्टा और प्रेरणा स्रोत हैं। उनके विचार देश-काल में सीमित न होकर सीमाओं से परे है। आज उदारीकरण के प्रभाव से दुनिया के सभी देशों की अर्थव्यवस्था एक दूसरे से जुड़ी हुई है। इस तरह के माहौल में अपने देश के हितों की रक्षा गांधीवादी मूल्यों से ही सम्भव है। ग्लोबल विलेज और अधिकाधिक लाभ कमाने की संस्कृति में गांधी के अपरिग्रह का पालन उत्तम है।
साम्प्रदायिकता कट्टरता और आतंकवाद के दौर में गांधी का धार्मिक सदभाव महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पर्यावरण के मुद्दे पर गांधी सजग नजर आते हैं, उनका मानना है कि अंधाधुंध शहरीकरण हमारे वातावरण को दूषित कर रहा है। वह कुशल और आत्मनिर्भर गांवों की स्थापना की बात करते हैं। वे स्वदेशी को प्राथमिकता देते थे, उनका मानना था कि स्वदेशी से हमारा देश आत्मनिर्भर बन सकता है।
दुनिया में शांति और सद्भाव बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है की विभिन्न देशों की आर्थिक असमानता और असन्तु्लन को कम किया जाय। कई देशों में गरीबी, निरक्षरता, भुखमरी, कुपोषण और आर्थिक विषमता दिखाई देती है जो औपनिवेशिक शोषण का नतीजा है। इन देशों के हालातों में अगर सुधार नहीं किया गया तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक असन्तुलन पैदा होगा जो अशांति की वजह बन सकता है। आज के हिंसात्मक माहौल में न्याय, स्वतत्रता, समानता और भाईचारे की भावनाओं पर आधारित एक धर्मनिरपेक्ष तथा लोकतांत्रिक राष्ट्र अपना अस्तित्व कायम रख सकता है?
हाल की महामारी ने हमारी आंखों को वास्तविकताओं से परिचित कराया है। शहर और शहरी क्षेत्र, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक असुरक्षित हैं। हमारा विकास मॉडल मौलिक रूप से कैसे गलत है। इस संदर्भ में, हम गांधी द्वारा प्रस्तावित विकास के विचारों पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर हैं। उनका आर्थिक दर्शन स्थिर नहीं, बल्कि जीवंत और व्यापक रहा है। यह तकनीक केंद्रित नहीं है, बल्कि जन केंद्रित है।
मुट्ठी भर शहरों का विकास हमारी आर्थिक समस्याओं को हल नहीं कर सकता है। वास्तव में यह हमारी समस्याओं को और बढ़ाएगा। इसलिए गांधी ने गांवों के आर्थिक विकास पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। बड़े पैमाने पर उत्पादन की बजाय, उन्होंने छोटे पैमाने पर उत्पादन का सुझाव दिया। केंद्रीकृत उद्योगों के बजाय, उन्होंने विकेंद्रीकृत छोटे उद्योगों का सुझाव दिया। बड़े पैमाने पर उत्पादन केवल उत्पाद से संबंधित होता है, जबकि जनता द्वारा उत्पादन का संबंध उत्पाद के साथ-साथ उत्पादकों से भी है और इसमें शामिल प्रक्रिया से भी है। उनका एक आदर्श गांव का सपना था। बड़े पैमाने पर उत्पादन से लोग अपने गांव, अपनी जमीन, अपने शिल्प को छोड़कर कारखानों में काम करने पर मजबूर हो जाते हैं। गरिमामय जिंदगी और एक स्वाभिमानी ग्राम समुदाय के सदस्यों के बजाय, लोग मशीन के चक्रव्यू में फंस कर रह जाते हैं और मालिकों की दया पर जिंदगी गुजरबसर करने लगते हैं।
हमने यह भी देखा है कि इस दौरान प्रवासी श्रमिक के साथ कैसा व्यवहार किया गया। कैसा अमानवीय व्यवहार। हमें अपने महानगरों और पुलों के निर्माण के लिए उनकी आवश्यकता थी लेकिन हम उनकी आवश्यकता नहीं हैं। उन्होंने हमारे जीवन को आसान बना दिया लेकिन हमने उन्हें क्या दिया। यह विनाशकारी विकासात्मक मॉडल प्रवासी लोगों को बेरोजगार करता है।
आज, जब हमारे सार्वजनिक जीवन के साथ-साथ हमारे निजी जीवन में नैतिक मूल्यों का गहरा क्षरण हुआ है और जब नैतिक सिद्धांत राजनीति से लगभग गायब हो गए हैं, तो गांधीवादी मूल्य एक प्रभावी विकल्प के रूप में दिखाई देते हैं। अपने समय में गांधी जी ने न केवल राजनीतिक बल्कि देश को नैतिक नेतृत्व भी प्रदान किया, जो कि अब दुनिया से गायब हो चुका है। जैसा कि मार्टिन लूथर किंग ने सही कहा, "गांधी अपरिहार्य थे।
अगर मानवता की प्रगति करनी है, तो गांधी अपरिहार्य हैं। उन्होंने शांति और सद्भाव की दुनिया विकसित करने की ओर प्रेरित किया। हम अपने जोखिम पर गांधी की उपेक्षा कर सकते हैं।"