यहां जमी हैं गांधी की स्मृतियां, चित्रों के जरिये आजादी के आंदोलन का इतिहास

Update: 2022-01-31 06:38 GMT

कुमार कृष्णन 

बिहार में कटिहार जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर है कुरसेला। इस छोटी-सी जगह का महत्व जरा दूसरे किस्म का है। सन 1934 में बिहार में प्रलयंकारी भूकम्प आया था। पीड़ितों की मदद के लिए महात्मा गांधी 11 मार्च, 1934 को बिहार आए। करीब एक महीने बाद 10 अप्रैल 1934 को रूपसी (असम) जाने के क्रम में वह पूर्णिया में टिकापट्टी होते हुए कुरसेला आए। उस दौर में कुरसेला पूर्णिया जिले का भाग था। महात्मा गांधी ने यहां स्कूली छात्रों के विशेष अनुरोध पर उन्हें संबोधित भी किया था।

30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की शहादत के बाद बिहार के अग्रणी सर्वोदयी नेता बैद्यनाथ प्रसाद चैधरी के नेतृत्व में स्थानीय कार्यकर्ताओं ने बापू के पार्थिव अंश को 12 फरवरी, 1948 को गंगा-कोसी के संगम में विसर्जित किया था। बैद्यनाथ चैधरी इस जिले के फलका के बरेटा में ख्याति प्राप्त स्वतंत्रता सेनानी थे जो महात्मा गांधी के आह्वान पर 1920 में आजादी की लड़ाई में शरीक हुए थे।

यहां गांधीजी के आगमन की स्मृति में सन 1948 में ही सौराष्ट्र के गांधीवादी कार्यकर्ता भगवन्न स्वामी ने एक आश्रम की स्थापना की। इसके लिए 9.15 एकड़ जमीन स्थानीय ग्रामीण बौकु साह एवं गोविन्द साह ने उपलब्ध कराई। इस जमीन पर आश्रम के साथ-साथ सर्वोदय महाविद्यालय और एक स्कूल है। समय-समय पर यहां आए भूदान नेता संत विनोबा भावे, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, देश के दो राष्ट्रपतियों- डॉ. राजेंद्र प्रसाद और डॉ. जाकिर हुसैन, सर्वोदय नेता दादा धर्माधिकारी-जैसे लोगों ने आश्रम की गतिविधियां नजदीक से देखीं। बाद में इस आश्रम को केंद्रीय गांधी स्मारक निधि, दिल्ली ने "गांधी घर" के रूप में नामित किया तथा बीस हजार रुपये की आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराई। फिर, यह आश्रम स्थानीय सहयोग से ही संचालित होने लगा। यहां ग्राम सफाई, रात्रि पाठशाला और चरखा-जैसे कार्यक्रम चलते थे। लेकिन बाद में एक-एककर सब बंद होते चले गए। 


1995 में राज्यसभा सभा नरेश यादव की अध्यक्षता में 21 सदस्यीय कमेटी बनी तो गांधी जी के रचनात्मक कार्यों को बढ़ावा देने का प्रयास तेज हुआ। नरेश यादव ने राज्यसभा सदस्य रहते हुए अपनी विकास निधि से यहां चारदीवारी, मंडप जैसे कई काम करवाए। लेकिन उन्हें इस काम में अपने दूसरे सांसदों का सहयोग नहीं के बराबर ही मिला। नरेश यादव इस वक्त आश्रम के अध्यक्ष हैं।

वह बताते हैं कि हम आश्रम की स्थापना की 74 वां वर्षगांठ मना रहे हैं। गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति, नई दिल्ली ने इसका गांधी व्याख्या केंद्र के रूप में चयन किया है और यहां एक परिसर का निर्माण कराया है। वहीं बिहार सरकार के पर्यटन विभाग ने इस आश्रम को गांधी सर्किट से जोड़ते हुए पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना 2.42 करोड़ रुपये की लागत से तैयार की है। इसके तहत बहुद्देशीय प्रशाल के साथ-साथ ओपेन एयर थियेटर और हॉर्टिकल्चर के विस्तार की योजना है। फिलहाल यहां गांधी जी की प्रतिमा के साथ गांधी की स्मृतियों जुड़ी प्रदर्शनी भी है। इसमें चंपारण सत्याग्रह के साथ-साथ भूकंप की त्रासदी, गांधी जी के जीवन से जुड़ी घटनाओं को दिखाया गया है।


इस आश्रम से जुड़े रूपेश कुमार बताते हैं कि यह प्रयास किया जा रहा है कि इस क्षेत्र को गांधी मॉडल का क्षेत्र बनाया जाए। गांधी विचार को तो प्रयोग के आधार ही परखा जा सकता है। इसकी पहल आरंभ हो गई है। हरिजन सेवक संघ, नई दिल्ली के अध्यक्ष शंकर सान्याल बताते हैं कि 'हरिजन सेवक में एक स्थान पर गांधी जी ने लिखा है कि हर गांव का पहला काम अपनी जरूरत के लायक अनाज और कपड़े के लिए कपास खुद पैदा करने का होगा। उसके पास इतनी सुरक्षित जमीन होनी चाहिए जिसमें पशु चर सकें और गांव के बडे-बुजुर्गों और बच्चों के मन-बहलाव के साधन और खेल-कूद के मैदान वगैरह का बंदोबस्त हो सकें। इस लिहाज से यहां जैविक खेती, कचरा प्रबंधन के जो प्रयास किए जा रहे हैं, वे महत्वपूर्ण है। राजघाट समाधि समिति, नई दिल्ली के सचिव डॉ. रजनीश कुमार बताते हैं कि गांधी के नाम पर रस्म अदायगी की जगह यहां कुछ काम होता दिखता है। यह आश्रम लोगों में सुबह श्रमदान की प्रवृत्ति विकसित कर रहा है।

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