अरविंद जयतिलक
सैकड़ों साल बाद भारतीय समाज का स्वरुप, चरित्र एवं चिंतन की व्याख्या का दायरा और उसके मूल्यों को मापने व परखने का मापदण्ड क्या होगा इसकी भविष्यवाणी आज संभव नहीं है। राजाराम मोहनराय, ईश्वरचंद विद्यासागर, स्वामी दयानंद सरस्वती, विवेकानंद, गांधी, लोहिया और अंबेडकर जैसे समाज सुधारकों-मनीषियों के सामाजिक अवदानों एवं नैतिक आदर्शों का मूल्यांकन भी उनके जाने के बाद ही हुआ। समाज की इस विचित्र अवधारणा का रहस्य और मनोविज्ञान क्या है यह तो समझना कठिन है, लेकिन जब भी असमानता और अन्याय पर आधारित समाज के खिलाफ तनकर खड़े होने वाले शिल्पकारों का इतिहासपरक मूल्यांकन होगा उस परिधि में समाजवाद के महानायक चंद्रशेखर सहज रुप से याद आएंगे।े उनका संघर्ष सदैव समतामूलक समाज के निर्माण, राष्ट्रीय एकता, अखण्डता और समानता की दिशा में काम करने के रुप में याद किया जाएगा।
दबे-कुचले वंचितों, शोषितों एवं पीड़ितों के लिए उनका सामाजिक-राजनीतिक योगदान एवं सर्वजन की चेतना को मुखरित करने की उनकी कमाल की क्षमता नई पीढ़ी के लिए मिसाल होगी। चंद्रशेखर को समझने के लिए वर्तमान समाज की बुनावट, उसकी स्वीकृतियां, विसंगतियां एवं धारणाओं को भी समझना होगा। इसलिए और भी कि उन्होंने समय की मुख्य धारा के विरुद्ध खड़ा होने और उसे बदलने के बदले में अपमानित और उत्पीड़ित करने वाली हर प्रवृत्तियों के ताप को सहा। उनके पास न तो विजेता की सैन्य शक्ति थी और न ही सत्ता का सिंहासन। एकमात्र विचारों का बल था जिसके बूते वह हाशिए पर खड़े लोगों को मुख्य धारा में लाने के लिए सतत प्रयास किया। हर समाज की भेदभावपरक व्यवस्था ही व्यक्ति के विचारों को तार्किक आयाम और जोखिम उठाने की ताकत देती है। और मुठभेड़ का माद्दा भी। समाज में व्याप्त विषमता से उत्पन जिस हलाहल को डा0 लोहिया ने पीया उसकी पीड़ा को कई वर्षों बाद चंद्रशेखर ने भी पीया और जीया। लिहाजा उन्होंने समाज के गुणसूत्र को बदलने की ठान ली। उन्होंने सामाजिक गैर-बराबरी को समाप्त करने लिए परंपरागत मूल्यों और मान्यताओं को हथियार बनाने के बजाए उसे ही निशाने पर रखा। पुरातनपंथी धारणाओं पर तीव्रता से हमला बोला और व्यवस्था की सामंती ढांचे को उखाड़ फेकने के लिए राजनीति को हथियार बनाया।
चंद्रशेखर का जन्म 1927 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपट्टी के एक किसान परिवार में हुआ। उनकी स्कूली शिक्षा भीमपूरा के रामकरन इंटर कालेज में हुई। उन्होंने स्नातकोत्तर की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की। युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर विद्यार्थी राजनीति जीवन के समय ही एक फायरब्रांड नेता के रुप में स्थापित हो चुके थे। वे राष्ट्रीय व विदेशी मसलों पर खुलकर गहन-गंभीर विचार व्यक्त करते थे और युवाओं को प्रेरित करते थें वे काॅलेज के दिनों से ही सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों में हिस्सा लेते थे और आगे बढ़कर उसकी अगुवाई करते थे। प्रारंभ से ही उनका रुझान समाजवाद की ओर था। नतीजतन वे शीध्र ही छात्र जीवन के बरक्स समाजवादी राजनीति की धुरी बन गए। 1951 में वे सोशलिस्ट पार्टी के वर्कर बन गए। लेकिन जब सोशलिस्ट पार्टी मेें फूट पड़ी तो वे कांग्रेस में चले गए। वे 1962 से 1977 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। 1984 में भारत की पदयात्रा कर भारत की चिरंतन संस्कृति और सभ्यता को समझने की कोशिश की। उनकी इस पदयात्रा ने देश के तमाम शीर्षस्थ नेताओं के मन में हलचल पैदा कर दिया। कहा तो यह भी जाता है कि उनकी पदयात्रा से उपजी लोकप्रियता से इंदिरा गांधी भी डर गयी। उनकी लोकप्रियता से उनके समकालीन नेता चिढ़ने लगे। जबकि वे अच्छी तरह जानते थे कि चंद्रशेखर का उद्देश्य समाजसेवा है न कि सत्ता में भागीदारी।
देखा भी गया कि 1975 की इमर्जेंसी के बाद जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तो सभी दिग्गज नेताओं ने मंत्रिपद स्वीकारा लेकिन चंद्रशेखर ने मंत्री पद नहीं लिया। उन्होंने समाजवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद लेना स्वीकार किया। उनका मकसद जनसेवा के जरिए समाज में समाजवादी चेतना का विकास करना था। वे पहली बार 1977 में बलिया जिले से लोकसभा के सदस्य चुने गए। वर्ष 1990 में उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला जब उनकी ही पार्टी के विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार भाजपा के समर्थन वापस लेने के उपरांत अल्पमत में आ गयी। चंद्रशेखर के नेतृत्व में जनता दल में दो फाड़ हो गया। 64 सांसदों का धड़ा अलग हुआ। राजीव गांधी ने चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया। लेकिन नैतिक राजनीति के पुरोधा इसके लिए शीध्र तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस सरकार में शामिल होगी तभी वे सरकार का नेतृत्व करेंगे। राजीव गांधी ने भरोसा दिया कि दो महीने बाद कांग्रेस भी सरकार में शामिल होगी। लिहाजा चंद्रशेखर सरकार बनाने के लिए तैयार हो गए। अपने वादे के मुताबिक कांग्रेस सरकार में शामिल नहीं हुई और प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को अपने इशारे पर नचाने की कोशिश की। लेकिन समाजवाद के प्रकाशस्तंभ चंद्रशेखर ने कांग्रेस के इशारे पर चलने से मना कर दिया।
लिहाजा कांग्रेस ने सात महीने बाद ही उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। कांग्रेस के समर्थन वापसी से भले ही चंद्रशेखर का पद चला गया लेकिन जनमानस में उनका कद जरुर बढ़ गया। वे प्रधानमंत्री रहते हुए डिफेंस और होम अफेयर्स की जिम्मेदारियों का भली प्रकार निर्वहन किया। कहा जाता है कि उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए कभी भी सरकारी घर 7 रेसकोर्स रोड पर नहीं रहे। वे या तो तीन साउथ रेवेन्यू वाले घर में रहते या भोड़सी के भारत यात्रा आश्रम में। दो राय नहीं कि अगर उन्हें प्रधानमंत्री पर अधिक समय तक रहने का मौका मिला होता तो उनकी गिनती भारत के महानतम प्रधानमंत्रियों में होती। उन्होंने अपने अल्प कार्यकाल में ही अयोध्या विवाद, असम समस्या, पंजाब समस्या और कश्मीर समस्या का हल निकालने का रोडमैप तैयार कर लिया था। प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर भी सराहनीय कार्य किए। उन्होंने पांचवे सार्क शिखर सम्मेलन में शिरकत की और ठेठ हिंदी में क्षेत्रीय और वैश्विक समस्याओं को ध्वनित किया। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ उनके भाषण से बेहद प्रभावित हुए।
उन्होंने उस समय अपने कार्यालय में काम कर रहे रियाज खोखड़ से कहा कि काश तुम भी मेरे लिए इतनी अच्छी तकरीर लिखते। चंद्रशेखर एक राजनेता ही नहीं बल्कि प्रखर वक्ता, विद्वान लेखक और गजब के समीक्षक थे। नवाज शरीफ ने चंद्रशेखर का इसलिए भी आभार व्यक्त किया कि उन्होंने कुछ स्वीडिश इंजीनियरों की जान बचाई थी जिनका कश्मीरी पृथकतावादियों ने गुलमर्ग में अपहरण कर लिया था। अगर उनकी जान नहीं बची होती तो फिर पूरा इल्जाम पाकिस्तान के सिर जाता। अन्य अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर भी चंद्रशेखर की राय बेबाक और स्पष्ट थी। सामाजिक मोर्चे पर चंद्रशेखर की भूमिका का मूल्यांकन करें तो राष्ट्र-समाज व्यवस्था में बेहतर बदलाव के लिए उन्होंने सामाजिक-आर्थिक संरचना में आमूलचूल परिवर्तन की बात कही।
उनका स्पष्ट कहना था कि गैर-बराबरी को खत्म किए बिना समतामूलक समाज का निर्माण संभव नहीं है। इसके लिए उन्होंने पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म कर समाजवादी व्यवस्था की स्थापना पर बल दिया। वे डा0 लोहिया के इस विचार से पूरी तरह सहमत थे कि 'पूंजीवाद कम्युनिज्म की तरह ही जुआ, अपव्यय और बुराई है और दो तिहाई विश्व में पूंजीवाद पूंजी का निर्माण नहीं कर सकता। वह केवल खरीद-फरोख्त ही कर सकता है जो हमारी स्थितियों में महज मुनाफाखोरी और कालाबाजारी है।' सच कहें तो चंद्रशेखर राष्ट्रवादी होने के साथ-साथ एक महा मानवतावादी भी थे। उनकी अवधारणा एक ऐसे समाजवादी समाज के निर्माण की थी जहां भय, भूख और भ्रष्टाचार न हो। चतुर्दिक सुख और समृद्धि का प्रसार हो।