दोष नेहरू का है या मोदी का, गंदा है पर मेडिकल का धंधा है यह !!!
- हर साल किसी दस्तूर की तरह आ रही कोई न कोई महामारी - क्या कोई अंतरराष्ट्रीय साजिश है यह मेडिकल माफियाओं की ?
पता नहीं नेहरू का दोष है या मोदी का ... या फिर दुनियाभर में महामारी/ बीमारी के नाम पर अरबों- खरबों की लूट करने वाली दवा कंपनियों/ हस्पतालों/ डॉक्टरों/ लैब के किसी संगठित गिरोह का.... लेकिन अपने भारत में हर साल डेंगू, स्वाइन फ्लू आदि तमाम मौसमी बीमारियों का कहर अब किसी दस्तूर की तरह हर साल बना रहता है।
हर साल एक चलन हो गया है कि बरसात के मौसम से लेकर सर्दी तक डेंगू से लोग जान बचाने के लिए जूझेंगे तो सर्दी के मौसम से लेकर प्रचंड गर्मी शुरू होने तक स्वाइन फ्लू से बचने के लिए मशक्कत करेंगे। इन दिनों लखनऊ समेत लगभग पूरे उत्तर भारत में डेंगू से लोग हलकान हैं। सर्दी आने तक डेंगू इसी तरह लोगों के लिए खतरा बना रहेगा।
मुझे ऐसा लगता है कि पिछले 10-15 बरसों से ही यह सिलसिला एक दस्तूर बना है। इससे पहले हर साल ऐसा होता हो, यह तो मुझे याद नहीं आ रहा। कभी- कभार किसी सीजन में अगर डेंगू फैलता भी था तो उसके बाद कई सालों तक दोबारा उसका नाम सुनने को नहीं मिलता था।
चूंकि अब दवाइयां, हस्पताल, जांच, मेडिकल उपकरण आदि मिलाकर दुनिया के सबसे बड़े उद्योग में तब्दील हो चुका है तो इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि किसी सांठगांठ से पूरे साल किसी न किसी महामारी को फैलाए रखकर ये धंधा चमकाया जा रहा है।
अगर ऐसा है तो फिर इसे दुनिया की कोई सरकार न तो पकड़ पाएगी और न रोक पाएगी। कोई बड़ी बात नहीं कि शराब और हथियारों की तरह दुनियाभर की सरकारों का खजाना इसी से भर रहा हो इसलिए कुछ देशों की सरकारें या पार्टी/ नेता भी इसी धंधे से जुड़े हों। वैसे भी जहां मोटी कमाई हो, वहां सरकारी तंत्र बजाय उसे रोकने के, उसमें अपना हिस्सा ही तलाशता है। ऐसा नहीं होता तो कई देशों के सरकारी तंत्र पर शराब, हथियार ही नहीं बल्कि ड्रग्स और वेश्यावृत्ति तक को बढ़ावा देने के आरोप न लगते।
बहरहाल, हर साल आने वाली महामारी को रोकने का अब एक ही तरीका है और वह भी तभी कारगर होगा, जब वाकई गंदे खेल में कोई अंतरराष्ट्रीय साजिश ही है।
वह तरीका यही है कि स्वास्थ्य सेवाओं, दवाइयों, अस्पतालों, जांच आदि के कच्चे माल, निर्माण, बिक्री, लागत, कीमत, मुनाफे आदि पर सरकार कड़ा अंकुश रखे और उसे एक तय सीमा और मानकों के भीतर रखे। यही नहीं, स्वास्थ्य बीमा के कारोबारी खेल में न तो सरकार उतरे न निजी कम्पनियों को इजाजत हो। बजाय इस बीमा के सरकार हर उत्पाद और सेवा पर कड़ा नियंत्रण रखकर इसे सर्व सुलभ और बेहतरीन बनाए।
हालांकि मुझे भी पता है कि दुनिया की कोई सरकार ऐसा नहीं करेगी। पहले तो खुद उस सरकार के नेता इस धंधे से मोटी कमाई का मौका क्यों चूकेंगे? यदि किसी देश में गलती से कोई ईमानदार नेता आ भी गया तो पता नहीं उसमें इतनी कुव्वत होगी भी या नहीं कि वह दुनियाभर में इस तरह के गंदे धंधों से अपने देश में खुशहाली लाने वाले अमेरिका, यूरोप, रूस, चीन जैसे देशों के दबाव का सामना कर सके।
कभी भारत में लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी ने ऐसे ही कड़े फैसले लेकर दुनियाभर से पंगा लेकर भी कभी देश को झुकने नहीं दिया। आज मोदी जी की हालत यह है कि खुद उन पर ही अपने प्रिय उद्योगपतियों के धंधे चमकाने का आरोप है। इसके बावजूद राजनाथ सिंह जैसे चापलूस नेताओं को अपनी कुर्सी बचाने के लिए मोदी में गांधी के बाद सबसे बड़े नेता ही नजर आ रहे हैं...