अटल बिहारी वाजपेयी की 5वीं पुण्यतिथि आज, यहां पढ़िए पूर्व प्रधानमंत्री से जुड़े किस्से

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पांचवीं पुण्यतिथि आज है। यहां पढ़िए पूर्व प्रधानमंत्री से जुड़े रोचक किस्से...

Update: 2023-08-16 06:38 GMT

अटल बिहारी वाजपेयी।

Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary: भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों की बात करें तो अगर किसी का पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद किसी की सबसे ज्यादा लोकप्रियता है तो वह अटल बिहारी वाजपेयी हैं। उनके नाम राजनीति में कई अटूट रिकॉर्ड दर्ज हैं। पंडित नेहरू के बाद वे देश के पहले प्रधानमंत्री थे जो लगातार दूसरी प्रधानमंत्री बने थे। उनकी छवि ही ऐसी थी कि उनकी विरोधी पार्टी के नेता तक उनका लोहा मानते थे। वे हमेशा एक ओजस्वी और प्रभावी वक्ता रहे। वे देश के प्रधानमंत्री, विदेशमंत्री और लंबे समय तक संसद में नेता प्रतिपक्ष भी रहे। लेकिन उन्होंने विदेश में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का पक्ष हमेशा ही प्रभावशाली तरीके रख कर देश का मान बढ़ाया। आज ही के दिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आखिरी सांस ली थी। उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर आइए जानते हैं उनसे जुड़े कुछ खास बातें

ग्वालियर से थे वाजपेयी

पूर्व प्रधानमंत्री का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर के में 25 दिसंबर 1924 को हुआ था। इनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपोयी स्कूल में शिक्षक थे। इनकी शुरुआती शिक्षा ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर में फिर हुई। जिसके बाद इन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी में बीए, और कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की।

पहले पत्रकारिता में रखा कदम

छात्र जीवन से ही अटल राजनीतिक विषयों पर वाद विवाद प्रतियोगिताओं आदि में हिस्सा लेते थे। 1939 अपने छात्र जीवन में ही वे स्वयंसेवक की भूमिका में आ गए थे। उन्होंने हिंदी न्यूज़ पेपर में संपादकका काम भी किया था। 1942 में उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी से उनकी मुलाकात हुई। उनके ही आग्रह पर अटल जी ने भारतीय जनसंघ पार्टी की सदस्यता ली थी।

नेहरू को भी किया प्रभावित

उन्होंने 1957 में उत्तर प्रदेश जिले के बलरामपुर लोकसभा सीट से अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता और फिर 1957 से 1977 तक लगातार जनसंघ संसदीय दल के नेता के तौर पर काम करते रहे। इस बीच 1968 से 1973 तक पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने अपने ओजस्वी भाषणों से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को भी प्रभावित किया और सभी पर अपने विशिष्ठ भाषा शैली का प्रभाव छोड़ते रहे।

संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में दिया भाषण

अपने विनम्र और मिलनसारव्यक्तित्व के कारण उनके विपक्ष के साथ भी हमेशा उनके मधुर सम्बन्ध रहे। 1975 में लगे आपातकाल का उन्होंने भी पुरजोर विरोध किया और जब 1977 में देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो, मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार में अटलजी ने विदेश मंत्री के तौर पर पूरे विश्व में भारत की शानदार छवि निर्मित की। विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले देश के पहले वक्ता बने थे।

पाकिस्तान से बात चीत की कोशिश की

1998 उनका ही कौशल था कि परमाणु परीक्षण के बाद बिगड़ी छवि के बाद भी उन्होंने पाकिस्तान से बातचीत की पहल कर दुनिया को बताया कि भारत शांति के लिए कितना गंभीर है। कारगिल युद्ध में अटलजी की ही विदेश नीति थी कि वे दुनिया को यह समझाने में सफल रहे कि पाकिस्तान के साथ भारत युद्ध नहीं कर रहा है, बल्कि पाकिस्तान की घुसपैठ को नाकाम करने का प्रयास कर रहा है। यहीं पर पाकिस्तान वैश्विक स्तर पर अकेला पड़ गया और साथ ही उसे हार का भी सामना करना पड़ा।

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