शख्सियत: उर्दू साहित्यकार शारिक रब्बानी की रचनाओं में नेपाली समाज के प्रति प्रेम-भाव

भारत के वरिष्ठ उर्दू शायर व साहित्यकार शारिक रब्बानी नेपाली समाज व उनकी संस्कृति का बहुत सम्मान करते हैं जो नेपालियों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भी है

Update: 2021-10-31 13:12 GMT

भारत व नेपाल दोनों ही देशों में लोकप्रिय वरिष्ठ उर्दू शायर व साहित्यकार जिनका नेपाल के सीमवर्ती भारतीय शहर नानपारा, जनपद-बहराईच के अतिरिक्त खूबसूरत झीलों की नगरी भोपाल से भी करीबी ताल्लुक  है । इन्हें भारत और नेपाल के बीच साहित्यिक सम्बंधो की कड़़ी माना जाता है।

भारत का पड़ोसी राष्ट्र नेपाल जहां की अधिकांश जनता सनातन धर्म को मानती है तथा मुस्लिम,बौद्ध,सिख व ईसाई आदि धर्मो के लोग भी हैं। नेपाली सहित लगभग 124 भाषााएं बोली जाती हों और लगभग 125 विशिष्ट जातीय समूहों से सम्बंधित संस्कृति समाहित हैं । अनेक पहाड़ों ,झीलों और प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण अनेक पर्यटक स्थल हैैं।

 नेपाली मूल की महिलाएं व पुरूष स्नही और मेहमान नवाज़ मानी जाती हैं। प्रत्येक क्षेत्र मेें महिलाओं की भागीदारी होती है । भारत के वरिष्ठ उर्दू शायर व साहित्यकार शारिक रब्बानी नेपाली समाज व उनकी संस्कृति का बहुत सम्मान करते हैं जो नेपालियों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भी है।

शारिक रब्बानी जो कि सर्व धर्म समभाव पर विश्वास रखते हैं, और जिनकी रचनाओं एवं लेखों मेें स्त्री विमर्श की भी प्रधानता है। उनकी अनेक रचनाओं मेें  नेपाली समाज के प्रति प्रेम भावना की झलक दिखाई देती है जो भारत-नेपाल मैत्री रिश्तों  की दिशा में भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण स्वरुप प्रस्तुत हैं शारिक रब्बानी की नेपाल से संबधित रचनाओं की कुछ पंक्तियां ...


1. प्रेम का सागर प्रेम की धरती दिखती है नेपाल में,

हवा-ए-खुशदिल हवा-ए-खुश जाँ मिलती है नेपाल में ।

कोई भी मेहमाँ यहाँ जो आवे सबके घर में इज्जत पावेे,

खुशियों की चौपाल हमेशा लगती है नेपाल में ।।


2. बहुत खूब बेहतर ये नेपाल है,

   मुहब्बत का पैकर ये नेपाल है ।

विलादत हुई है यहाँ सीता जी की,

तभी तो मुनव्वर ये नेपाल है ।।

3. अपना ये दिलो जाँ हम कुर्बान करेंगेे,

नेपाल की धरती का यूँ सम्मान करेंगे ।

प्रेम की नदियां जो बहती हैं यहाँ पर,

दिन रात इसी में हम स्नान  करेंगे ।।


4. खूशनुमा खूब है माहौल और आला करदे,

अरजे नेपाल की अजमत को दोबाला कर दे ।

सारी दुनिया की जबानों का यहीं हो मरकज,

खूब होगा मेरे मौला जो तू ऐसा कर दे ।।

5. कितना हसीन मंज़र रखता है राजधानी,

मौजूद है जहाँ पर हर धर्म की निशानी ।

तौफीक गर खुदा दे ये है मेरा इशारा,

देखो जरा तो जाकर दिलकश है क्या नजारा ।

नेपाल का हर इँसा है जानो दिल से प्यारा, 

अब एकता का आओ मिलकर लगायें नारा।।

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