मध्यप्रदेश उपचुनाव: कहीं नीचे गिरने का मुकाबला तो नही हो रहा ?
चुनाव परिणाम क्या होगा वह तो दो नवम्बर को पता चलेगा।लेकिन इतना तो तय है कि भाजपा यह चुनाव किसी भी "कीमत" पर जीतना चाहती है।हालांकि इनके परिणाम से शिवराज और मोदी सरकार पर कोई असर नही पड़ने वाला।लेकिन वह उप चुनाव को भी आम चुनाव की तरह लड़ रही है।
अरुण दीक्षित
भोपाल। मध्यप्रदेश में हो रहे उपचुनाव में प्रचार के लिए अब महज दो दिन बचे हैं!मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में ही है।इसलिए दोनों ने ही अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।पर अब तक जो स्थिति सामने आई है उससे ऐसा लग रहा है कि दोनों ही दलों ने राजनीतिक सौजन्यता को तिलांजलि दे दी है। दोनों ही दल जिन शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं उन्हें किसी भी दृष्टि से सभ्य और शालीन नही माना जा सकता है।इस युद्ध में अभी तक भाजपा आगे चल रही है।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में तीन विधानसभाओं और एक लोकसभा क्षेत्र के लिए उपचुनाव चल रहा है।मतदान तीस अक्टूबर को होगा और परिणाम 2 नवम्बर को आएगा।बताया गया है कि चुनाव आयोग ने इस बार प्रचार का दैनिक समय कम कर दिया है।साथ ही कुल अवधि भी घटा दी है।इसलिये चुनाव प्रचार 28 अक्टूबर की बजाय 27 अक्टूबर की शाम ही बंद हो जाएगा।यही बजह है कि दोनों प्रतिद्वंद्वियों में खंदक की लड़ाई चल रही है।
यह चारों सीटें चुने हुए प्रतिनिधियों के निधन की बजह से खाली हुई हैं।इनमें खण्डवा लोकसभा और रैगांव विधानसभा सीट पहले भाजपा ने जीती थी।जबकि पृथ्वीपुर और जोबट कांग्रेस के खाते में गयी थीं।अब भी मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में ही है।
जहां तक चुनावी लड़ाई और तैयारी का सवाल है,भाजपा कांग्रेस से कहीं आगे दिख रही है।उसने कई महीने पहले ही चुनावी तैयारी शुरू कर दी थी।राज्य और केंद्र सरकार के मंत्रियों के अलाबा सांसद और विधायकों को चुनावी ड्यूटी पर लगाया गया है।पार्टी के पदाधिकारियों को तो काफी पहले से तैनात कर दिया गया था।पिछले चार दिन से करीब आधा दर्जन केंद्रीय मंत्री वोट मांगते घूम रहे हैं।पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को भी उनके जातीय प्रभाव वाले इलाकों में वोट मांगने भेजा गया है।मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो पूरी ताकत और मशीनरी के साथ जुटे हुए हैं।मातृसंगठन भी अपना काम लंबे समय से कर रहा है।
लेकिन इतनी तैयारी के बाद कमजोर पक्ष यह है कि 18 साल से सत्ता में चल रही भाजपा इन चार इलाकों के लिए प्रत्याशी भी पार्टी के भीतर से नही जुटा पायी है।उसने जोबट के लिए प्रत्याशी कांग्रेस से लिया है जबकि पृथ्वीपुर के लिए समाजवादी पार्टी से।रैगांव और खण्डवा में भी उसे प्रत्याशी घोषित करने में छठी का दूध याद आ गया था।हालात यह बने कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को वह ऐलान करना पड़ा जो आगे चलकर उनके ही पुत्र के राजनीतिक भविष्य पर ग्रहण बन सकता है।
यही नही उन्होंने मतदान के 6 दिन पहले कांग्रेस के एक और विधायक को भी तोड़ा है।यह सभी जानते हैं कि जनता ने 2018 में शिवराज को चुनाव हरा दिया था।लेकिन कांग्रेस के चुने हुए विधायकों ने पाला बदल कर उन्हें फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी दिला दी थी।कहा जा रहा है कि अगले दो साल के लिए अपनी कुर्सी को बचाये रखने के लिये शिवराज किसी भी कीमत पर यह उपचुनाव जीतना चाहते हैं।जमीन पर यही दिख रहा है।
उधर कांग्रेस अपने बिखराव से मुक्त नही हो पायी है।केंद्रीय नेतृत्व की कमजोरी और प्रदेश के नेताओं की गुटबंदी उसे कमजोर ही किया है।प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अपने स्तर पर पूरी कोशिश कर रहे हैं।लेकिन भाजपा के संगठित हमलों के आगे वह भी कमजोर दिख रहे हैं।उन्हें अब प्रदेश की परेशान जनता पर ही भरोसा है।
इस चुनाव में सबसे दुखद पहलू यह है कि दोनों ही दलों के नेताओं ने भाषायी मर्यादा को तारतार कर दिया है।इस मोर्चे पर भी भाजपा कांग्रेस से आगे है।भाजपा का काडर और आई टी सेल तो काफी समय से इस क्षेत्र में आगे चल रहे थे लेकिन शिवराज सिंह उनसे भी आगे निकल गए हैं।शालीन माने जाने वाले शिवराज सिंह ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया है वह उनके व्यक्तित्व से मेल नही खाती है। भाजपा के अन्य नेताओं ने तो हर स्तर पर मर्यादा लांघी है। कम तो कांग्रेसी भी नही हैं।लेकिन उन्होंने अपनी ऊर्जा उत्तर देने में ही लगाई है।
दुर्भाग्य यह है कि इस उपचुनाव में महिलाओं को भी नही बख्शा गया है।हर दृष्टि से गैरजरूरी बातों को तबज्जो दी गयी है।ज्यादा दुःखद यह है कि किसी ने इस पर सफाई नही दी है।आज भी कोशिश और गहरे तक जाने की चल रही है।
चुनाव परिणाम क्या होगा वह तो दो नवम्बर को पता चलेगा।लेकिन इतना तो तय है कि भाजपा यह चुनाव किसी भी "कीमत" पर जीतना चाहती है।हालांकि इनके परिणाम से शिवराज और मोदी सरकार पर कोई असर नही पड़ने वाला।लेकिन वह उप चुनाव को भी आम चुनाव की तरह लड़ रही है।
यही स्थिति कांग्रेस की भी है।बहुमत से 17 अंक पीछे चल रही कांग्रेस इस जीत से सत्ता में तो नही लौटेगी। लेकिन उपचुनाव की जीत उसका मनोबल जरूर बढ़ाएगी।अगर उसने अपनी पुरानी सीटें बरकरार रखीं तो उसके लिए बड़ी बात होगी। लेकिन यह साफ है कि दोनों ही ओर से भारी गिराबट दिखाई दे रही है।अब जनता की प्रतिक्रिया का इंतजार है।