अल्लसुबह बनारस की : मुलायम सिंह यादव ने दिया तो योगी आदित्यनाथ ने क्यों छीन लिया !
अल्लसुबह बनारस की भोर को बाय बाय करते हुए हम वाया गाजीपुर पहुँच चुके थें मऊ शहर में. जहां सूरज अपनी लालिमा बिखेरे बता रहा था कि 8 बज चुके हैं.
चूंकि हम गंतव्य स्थान(हलधरपुर) के नजदीक थें और समय पर्याप्त था.इसलिए हमारे कदम मुड़ चुके थें मऊ के बुनकर कालोनी वहां के बुनकरों के हाल हालात के जायजा लेने. मेन सड़क से बुनकर कालोनी के रास्ते पर उतरते ही लुंगी शर्ट पहने बुनकर कालोनी के चार लोग खड़े मिल गये. सब कौतूहल पूर्वक हम सबको देखने लगें.हमारे साथ जाने माने साहित्यकार पत्रकार विजय विनीत जी,टीवी चैनल के पत्रकार आकाश यादव,यूट्यूबर मनोज गोंड थें.
भईया हम पत्रकार हैं,बुनकरों के हाल हालात को जानने आये हैं.उनमें से एक साथ हो लिया.वह आगे आगे हम पीछे पीछे. लगभग ढाई हजार कि आबादी वाली कालोनी से पावरलूम की खटर पटर सुनाई देने लगी थी. सबसे पहले हम पहुँचे
(52वर्षीय)अब्दुल हसन के यहां जहाँ वो घर के दरवाजे के पास कढ़ाई से गर्मा गर्म पूड़ियां निकाल रहें थें. अब्दुल हसन बताते हैं कि लॉक डाउन में बिनकारी का काम ठप्प हो गया.जब दिक्कतें बढ़ीं तो वह घर के दरवाजे पर पूड़ी कचौड़ी तलने लगें.ताकि आजीविका चलती रहे.
सकरें पक्के रास्ते पर आगे बढ़ें तो पत्रकारों की टीम देखकर कालोनी के कई लोग अपनी समस्याओं को बताने लगें. एक घर के सामने ठिठके तो 48 वर्षीय मोहम्मद मुस्तफ़ा खड़े मिल गयें.चेहरे पर कोई भाव नहीं.जैसे उदासियों ने उनके चेहरे पर कब्जा जमा लिया हो. पूछने पर वह बताते हैं कि लॉक डाउन के बाद से जीवन थम सा गया है.कारोबार मंदा है ऊपर से सरकार बिजली सब्सिडी खत्म करके हमारे ऊपर लोड लाद दी है.हम अगर उस दर से बिजली का बिल भरने लगें तो हम दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं कर पायेंगे. वह बताते हैं कि पूरा दिन पावरलूम चलाकर बमुश्किल 250 से 500 तक कमा पाते हैं.उतने में ही परिवार का गुजारा करना पड़ता है. बच्चे पढ़ रहे हैं,इस सवाल पर वह कहां से पढ़ा पायेंगे.जब घर ही चला पाना मुश्किल हो.
पास खड़े जुम्मन कहते हैं कि "मुलायम सिंह यादव दिवा रहा,अउर योगी जी ने छीन लिवा". मने मुलायम सिंह यादव ने अपने कार्यकाल में बुनकरों को किफायती (सब्सिडी)दर पर बिजली दिया था.जिसे योगी सरकार ने सब्सिडी हटा लिया.
आगे एक पान की दुकान पर 50 वर्षीय उमर मिल गयें. वह महंगाई के नाम पर खुद ब खुद बोलने लगें कि आजकल नाम का बदलाव ही विकास है.गैस महंगा, तेल महंगा, बिजली महंगा बस यही सब का विकास हो रहा है. जब पूछा कि तब किसको पसन्द करते हैं किसको वोट देंगे. इस सवाल पर उमर समेत आसपास खड़े सब लोग कह बैठे.यह मत पूछिए हम नहीं बताएंगे. मुख्तार अंसारी के नाम पर खड़े एक बुजुर्ग कहते हैं की उन्होंने क्या किया जब से विधायक बने जेलव में तो रहते हैं.अब उनको राजनीति छोड़ देनी चाहिए.
चार मकान के बाद एक मकान में एक 22 वर्षीय लड़की नजराना पावरलूम चलाती मिली.पत्रकारों की टीम देखते ही वह पावरलूम बन्दकर अंदर से झांकने लगी. जब हमने कहा कि हम पत्रकार हैं,बुनकरों दशा जानने आये हैं.तब वह सकुचाते हुये आती है. वह बताती है कि अब्बू के साथ वह उसकी पावरलूम चलाती है.घण्टों खड़े खड़े पावरलूम चलाने से थकान होती है.मगर काम नहीं करेंगे तो खर्च कैसे चलेगा.वह बताती है कि पूरे परिवार का खर्च इसी पावरलूम पर निर्भर है. कभी ढाई सौ तो कभी पांच सौ तक कमाई होती है.
कुछ दूरी पर नियाज़ मिलें जो बिनकारी छोड़कर सब्जी बेच रहें थें. अधिकांश लोगों की हालत एक जैसी थी.बहुतों के बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं.सबकी पीड़ा थी कि सरकार बुनकरों की हालत नहीं समझ रही है.कई तो लॉक डाउन में कर्ज लेकर घर चला रहे थें. जिसको भरने में ही उनकी कमाई चली जा रही है.
उनकी हालत देखकर लगा कि जितने भी मुसलमानों के रहनुमाई करने वाले लोग हैं.चाहे वो ओवैसी हों का कोई ओलेमा मुल्ला मौलाना. उन्हें मुसलमानों के स्वास्थ्य शिक्षा रोजगार पर फोकस करना चाहिये. ताकि उनका विकास हो,मगर अफसोस वह अधिकांश दूसरे समुदाय के खिलाफ बयानबाजी में ही समय लगाते हैं।
कोई भी नेता,व्यक्ति, रहनुमा आपसे स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार की जगह मात्र धा'र्मिक बातों में उलझाता है,यकीन करिये वह फरेबी है,वह समाज का भला नहीं खुद का भला करने की नीयत रखता।