( विवेक मिश्र )
जनपद में 23 फरवरी को चुनाव है। मतदाता एक बेहतर सरकार चुनने के लिए बेताब है। जिले की छह सीटों में लगभग सभी प्रत्याशी विधानसभा पहुंचने के लिए मतदाताओं के बीच मे विकास की गंगा बहाने के वादे कर रहे हैं। लेकिन यूपी के चुनाव में जातीय समीकरण हमेशा सिर चढ़कर बोला है इसी आधार पर अक्सर पार्टियां अपने प्रत्याशी का भी चयन करती हैं। जिले की सबसे प्रमुख सीट मुख्यालय की सदर ही मानी जाती है जहां बेहतर नेतृत्व प्रत्येक पार्टी रखना चाहती है। भाजपा से विक्रम सिंह उम्मीदवार हैं जो लगातार दो बार से विधायक हैं। वह समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक कासिम हसन के इंतकाल के बाद हुए उपचुनाव में जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। उसके बाद दोबारा 2017 में सपा के चन्द्रप्रकाश लोधी को हराकर विधायक बने थे।
सदर सीट पर मुस्लिम वोटर हमेशा से निर्णायक भूमिका में रहा है शायद यही वजह है कि 2012 में भाजपा के पूर्व मंत्री राधेश्याम गुप्ता को हराकर सपा के कासिम हसन विधायक बने थे। मगर एकजुटता की कमी व मोदी लहर में सपा उपचुनाव में सदर की सीट बचाने में नाकामयाब रही। बताते हैं कि बसपा ने मुस्लिम चेहरे अयूब को सदर सीट से इसीलिए प्रत्याशी बनाया है कि वहां मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में है। मुस्लिम व दलित वोटबैंक के माध्यम से अयूब भी विधानसभा पहुंचने का आधार मान रहे हैं। लेकिन भाजपा के दो बार से विधायक विक्रम सिंह से सीधी टक्कर राजनीतिक विशेषज्ञ सपा के चन्द्रप्रकाश लोधी से मान रहे हैं। उनका मानना है कि सदर सीट में अगर मुस्लिम मतदाता, मुस्लिम प्रत्याशी अयूब की तरफ जाता है तो अयूब भाजपा के प्रत्याशी विक्रम सिंह से सीधी टक्कर में आ जायेंगे। और अगर वह सपा के नाम पर चन्द्रप्रकाश लोधी की ओर झुकाव कर रहा है तो भी चुनाव रोमांचक होगा।
इसी माहौल को जानने के लिए स्पेशल कवरेज न्यूज की टीम मुस्लिम बहुल इलाके अस्ती में घूमी और दर्जनों लोगों से जाना कि वह कैसी सरकार चाहते हैं और किसे पसंद करते हैं। गांव के अधिकतर मुस्लिम मतदाताओं असलम, नफ़ीस, सलमान आदि का कहना रहा कि वह अखिलेश को पसंद करते हैं और वोट साइकिल को ही करेंगे। पूछने पर कि कासिम हसन के बाद दोबारा किसी प्रमुख पार्टी ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर उन्हें प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया है फिर आप उन्हें क्यों नहीं पसंद कर रहे। ऐसे में अस्ती के अधिकतर मुस्लिम मतदाताओं का कहना है कि यूपी में सरकार बदलना उनकी प्राथमिकता है और वह अखिलेश को, उनके द्वारा किये गए कार्यों को पसंद करते हैं इसलिए वह साइकिल को ही वोट करेंगे।
रुझानों के अनुसार मुस्लिम प्रत्याशी होने के बावजूद मुस्लिम मतदाताओं को अयूब पर भरोसा नहीं है ऐसे में अयूब की विधानसभा पहुंचने की राह कठिन नज़र आ रही है। हालांकि यह सिर्फ अभी कयास हैं मतदाता किस ओर झुकेगा, किसके सिर पर सेहरा पहनाएगा, यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा। नतीजे कुछ भी आएं लेकिन बसपा के अयूब के लिए विधानसभा की राह कठिन और संघर्षो से भरी है, हालांकि बसपा प्रत्याशी अयूब और उनके समर्थक जीत का दावा कर रहे हैं उनका कहना है कि मुस्लिम व दलित मतदाता उनकी जीत का आधार है बहन जी की सरकार में दस्यू, गुंडों, माफियाओ का सफाया हुआ है इस बार भी अन्य पार्टियों का सफाया कर बसपा की ही सरकार बनेगी।
- बाजी पलटने की स्थिति में है बसपा कैडर का मतदाता
सदर विधान सभा सीट में अगर चुनावी गणित की बात करे तो लगभग एक लाख मुस्लिम मतदाता और बसपा का कैडर वोट हमेशा से बाजी पलटने की स्थिति में रहा है 2012 के चुनाव में तत्कालीन विधायक राधेश्याम गुप्ता भले ही सपा के कासिम हसन से चुनाव हारे थे मगर बसपा के प्रत्याशी जितेंद्र लोधी दूसरी नम्बर पर थे और महज कुछ हजार वोटो से हारकर विधानसभा पहुंचते पहुंचते रह गए थे। ऐसे में बीएसपी के कैडर वोट व मुस्लिम मतदाताओं के गठजोड़ को हल्के में लेना अन्य पार्टियों की भूल है। लेकिन जानकार बताते है कि मुस्लिम बीजेपी हराओ अभियान के आगे पिछली नगर पालिका की हार व अयूब को दरकिनार कर रहे हैं। बसपा प्रत्याशी व बसपाई कड़ी मेहनत के बाद भी मुस्लिमो का भरोसा जीतने में दूर दूर तक कामयाब नहीं हो पा रहे हैं।