राजनीति में मुसलमानों की चर्चा ना होना, फायदा या नुकसान
मुसलमानों ने अपनी अंदरूनी समाज पर ध्यान देना शुरू कर दिया तो मुस्लिम समाज बहुत जल्दी देश का सबसे तरक्की यात्रा और अग्रणी समाज बनकर उभरेगा.
मुस्लिम समाज में आजकल यह सवाल बहुत तेजी के साथ गर्दिश कर रहा है कि वर्तमान राजनीति में कोई भी राजनीतिक दल मुसलमानों की चर्चा नहीं करना चाहता. इसके पीछे यह भी सवाल उठते हैं कि क्या मुसलमानों की राजनीतिक अहमियत खत्म हो गई है या राजनीतिक दलों को मुसलमानों से चिढ़ हो गई है या राजनीतिक दल मुसलमानों से दूरी बनाने में लगे हैं. सवाल बहुत अहम हैं क्योंकि पहले की जो राजनीति थी उसमें हर चुनाव से पहले मुसलमानों की पसंद ना पसंद पर खूब चर्चा हुआ करती थी. राजनीतिक विश्लेषक यह भी देखते थे कि मुस्लिम समाज किस पार्टी को वोट देगा किसका विरोध करेगा, लेकिन इस बार जबकि उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य समेत चार अन्य राज्यों में वोटिंग होनी है लेकिन मुसलमानों के नाम पर कोई चर्चा नहीं हो रही है. इस चर्चा के ना होने का कारण क्या समझा जाए इस पर गहन विचार होना चाहिए.
दरअसल यह बात नहीं कही जा सकती कि इतने बड़े वोट बैंक की अहमियत कभी चुनाव में खत्म हो सकती है. चर्चा क्यों खत्म हो गई इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. इसके पीछे जो सबसे महत्वपूर्ण कारण है वह यह है कि वर्तमान राजनीति भारतीय जनता पार्टी की हिंदुत्व आधारित राजनीति है जिसको मुस्लिम विरोध से ही संबल मिलता है. राजनीतिक दल जितना मुसलमानों का शौर मचाते हैं भाजपा का वोट बैंक और मज़बूत होता रहता है. लेकिन अब सभी राजनीतिक दलों ने भाजपा को हिंदुत्व की पिच पर ही पछाड़ने का फैसला किया है. सभी राजनीतिक दलों के चिंतनकर्ता इस बात पर सहमत हैं कि अब चुनाव में मुसलमानों की बात ना की जाए बल्कि भाजपा जो हिंदू समाज पर एकाधिकार समझने लगी है उसे चुनौती दी जाए. अब इस रणनीति को हम गलत भी नहीं कह सकते क्योंकि भाजपा को सत्ता से दूर रखना भी राजनीतिक दलों और देशहित में भी जरूरी है. मुसलमान भी यही चाहते हैं.
इस बार अगर हम देखें तो सभी राजनीतिक दल ब्राह्मण समाज को लुभाने में लगे हैं. बहुजन समाज पार्टी जिसका आधार ही ब्राह्मणवाद का विरोध था अबकी बार ब्राह्मणों के लिए इतनी चिंतित है अयोध्या में राम मंदिर बनाने का ऐलान तक भी कर चुकी है इसके साथ ही अखिलेश यादव भी ब्राह्मण समाज को खुश करने के लिए परशुराम की भव्य मूर्ति लगवाने का वादा कर चुके कांग्रेस जो खुद ब्राह्मणों की पार्टी हुआ करती थी ब्राह्मण समाज को लुभाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही है और भारतीय जनता पार्टी तो हिंदुओं पर अपना एकाधिकार समझती है इसलिए यह सो मच आने की आवश्यकता नहीं है ब्राह्मणों की चर्चा होने से क्या अनुमान लगाया जाए कि ब्राह्मण समाज की अहमियत बढ़ गई है नई भारतीय राजनीति में ब्राह्मणों का प्रतिशत सुधा से रहा है लेकिन भारतीय जनता पार्टी में सत्ता में आने के बाद ब्राह्मण समाज राजनीतिक हाशिए पर पहुंचना शुरू हो गया था जब कोई समाज राजनीतिक हाशिए पर होती होता है तो उसकी चर्चा भी ज्यादा होती है ब्राह्मण समाज दिशा हीनता का शिकार है इसलिए सभी दल उसे अपनी ओर खींचना चाहते हैं जबकि मुसलमान राजनीतिक रूप से इतना परिपक्व हो चुका है सभी जानते हैं कि मुसलमान कब किसे वोटिंग करेगा किस से खिलाफ जाएगा तुम मुस्लिम समाज को ऐसे सवालों से गुरेज करना चाहिए इन सवालों से उस समाज में उदासीनता आती है मायूसी पैदा होती है और उन सभी दलों पर गलत संदेश जाता है जो मुसलमानों को अपने साथ रखना चाहते हैं.
इससे भारतीय जनता पार्टी का पक्ष भी मजबूत होता है कि हमने मुसलमानों को राजनीति पर लाकर खड़ा कर दिया जबकि मुसलमान अगर राजनीति से थोड़ा पीछे हटकर समाज सुधार पर ज्यादा ध्यान दें तो एक परिपक्व और बेहतर समाज के तौर पर उभर सकता है किसी भी देश के संख्यक समुदाय को कैसे राजनीति करनी चाहिए मुसलमानों को इस पर गौर करना चाहिए कोई राजनीतिक दल उनका शोर मचा रहा है नहीं बचाता कोई उनका नाम लेता है नहीं लेता अपना कार्य है लेकिन मुसलमानों का अपना कार्य है गंभीरता से चिंतन करें कि हम अल्पसंख्यक होते हुए इस समाज में कैसे बेहतर समाज के तौर पर हैं मुसलमानों ने अपनी अंदरूनी समाज पर ध्यान देना शुरू कर दिया तो मुस्लिम समाज बहुत जल्दी देश का सबसे तरक्की यात्रा और अग्रणी समाज बनकर उभरेगा.