Pakistan's resolution passed in UN on Islamophobia;इस्लामोफ़ोबिया पर यूएन में पाकिस्तान का प्रस्ताव पारित, भारत ने जताई चिंता

उठाया हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म का मुद्दा

Update: 2022-03-16 08:01 GMT

भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में मंगलवार को 'इंटरनेशन डे टू कॉम्बैट इस्लामोफ़ोबिया' यानी इस्लामोफ़ोबिया विरोधी दिवस मनाने के लिए पाकिस्तान की ओर से लाए गए एक प्रस्ताव के पारित होने पर चिंता जताई है.

भारत ने कहा है कि एक धर्म विशेष को लेकर डर उस स्तर पर पहुंच गया है कि इसके लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने की स्थिति आ गई है. भारत ने कहा है कि धर्मों को लेकर अलग-अलग तरह से डर का मौहाल बनाया जा रहा है, ख़ासकर हिंदुओं, बौद्ध और सिख धर्म के ख़िलाफ.

193 सदस्यों वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान के राजदूत मुनीर अकरम ने ये प्रस्ताव रखा था कि 15 मार्च को 'इंटरनेशन डे टू कॉम्बैट इस्लामोफोबिया' यानी 'इस्लाम के प्रति डर के ख़िलाफ़ लड़ाई का अंतरराष्ट्रीय दिवस' के तौर पर मनाया जाए.

इस प्रस्ताव पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा, "इस्लामोफ़ोबिया के बढ़ते माहौल के ख़िलाफ़ हमारी आवाज़ सुनी गई है. 15 मार्च को 'इंटरनेशन डे टू कॉम्बैट इस्लामोफोबिया' मनाने को लेकर ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन की तरफ़ से पाकिस्तान द्वारा रखे गए ऐतिहासिक प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र ने पारित किया है. इसके लिए मैं मुस्लिम जगत को बधाई देता है."

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस पर कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस प्रस्ताव के सर्वसम्मति से पारित होना इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की मुहिम पर मुहर लगाता है.

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन के इस प्रस्ताव को अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, चीन, मिस्र, इंडोनेशिया, ईरान, इराक़, जॉर्डन, कज़ाख़स्तान, कुवैत, किर्गिस्तान, लेबनान, लीबिया, मलेशिया, मालदीव, माली, पाकिस्तान, क़तर, सऊदी अरब, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, युगांडा, संयुक्त अरब अमीरात, उज़्बेकिस्तान और यमन का समर्थन हासिल था.

इस प्रस्ताव के पारित होने पर प्रतिक्रिया देते हुए, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने महासभा में कहा कि भारत को उम्मीद है कि ये प्रस्ताव नज़ीर नहीं बनेगा. इस प्रस्ताव के बाद अन्य धर्मों के प्रति डर को लेकर कई प्रस्ताव आ सकते हैं और संयुक्त राष्ट्र धार्मिक शिविरों में बदल सकता है.

भारत का पक्ष

उन्होंने कहा, "1.2 अरब लोग हिंदू धर्म को मानते हैं. बौद्ध धर्म को मानने वाले 53.5 करोड़ लोग हैं और तीन करोड़ से ज़्यादा सिख दुनिया भर में फैले हुए हैं. ये समय है कि हम एक धर्म के बजाय सभी धर्मों के प्रति फैल रहे डर के माहौल को समझें."

"संयुक्त राष्ट्र का ऐसे धार्मिक मामलों से ऊपर रहना ज़रूरी है जो दुनिया को एक परिवार की तरह देखने और हमें शांति और सौहार्द के मंच पर साथ लाने के बजाय हमें बांट सकती है."

इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद तिरुमूर्ति ने कहा कि भारत यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म के ख़िलाफ़ की जा रही किसी भी गतिविधि की निंदा करता है. लेकिन डर का माहौल केवल इन्हीं धर्मों को लेकर नहीं फैलाया जा रहा है.

उन्होंने कहा, "वास्तव में इस बात के सबूत हैं कि धर्मों के प्रति इस तरह से डर के माहौल ने यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के अलावा अन्य धर्मावलंबियों को भी प्रभावित किया है. इससे धर्मों के प्रति, ख़ासकर हिंदुओं, बौद्धों और सिखों के प्रति डर का माहौल बढ़ा है."

उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को ये नहीं भूलना चाहिए कि 2019 में 22 अगस्त को पहले ही धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा में मारे गए लोगों की याद में मनाया जाता है. ये दिवस पूरी तरह से सभी पहलुओं को समेटे हुए है.

तिरुमूर्ति ने और क्या कहा...

टीएस तिरुमूर्ति ने कहा, "यहां तक कि 16 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस मनाया जाता है. हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि हमें किसी एक धर्म विशेष के प्रति डर के ख़िलाफ़ एक अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने की ज़रूरत है."

उन्होंने ये बात जोर देकर कही कि धर्मों के प्रति इस तरह के डर की वजह से कई देशों में गुरुद्वारों, बौद्ध मठों और मंदिरों जैसी धार्मिक जगहों पर हमले की घटनाएं और यहूदी, इस्लाम और ईसाई धर्म के अलावा अन्य धर्मों को लेकर भ्रामक सूचनाएं और घृणा बढ़ी है.

उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के बामियान में बौद्ध प्रतिमा के विध्वंस, गुरुद्वारे का अपमान, सिख धर्मावलंबियों के नरसंहार, मंदिरों पर हमले, मंदिरों में प्रतिमा तोड़े जाने जैसी घटनाओं को वाजिब ठहराने की कोशिश, जैसी कई घटनाओं का उदाहरण भी दिया.

टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि इस तरह की घटनाओं से ग़ैर यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्मों के लोगों प्रति डर का माहौल आज कल बढ़ा है.

महासभा में प्रस्ताव के पारित होने के बाद तिरुमूर्ति ने एक बयान जारी कर कहा, "इसी संदर्भ में हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि बाक़ी धर्मों को छोड़कर किसी एक धर्म को लेकर डर के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जा रहा है. किसी धर्म का उत्सव मनाना एक बात है लेकिन किसी धर्म के प्रति घृणा के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए एक दिन मनाना बिलकुल दूसरी बात है. इस प्रस्ताव से अन्य धर्मों के ख़िलाफ़ डर की गंभीरता को कमतर आंका गया है."

उन्होंने कहा कि भारत को इस बात का गर्व है कि विविधता उसके अस्तित्व की बुनियाद है.

"हम सभी धर्मों को समान रूप से संरक्षित किए और बढ़ावा दिए जाने पर यकीन रखते हैं. इसलिए ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि 'विविधता' जैसे शब्द का इस प्रस्ताव में जिक्र तक नहीं किया गया है और इस प्रस्ताव को लाने वाले देशों ने हमारे संशोधन प्रस्ताव के जरिए इस शब्द को शामिल करना ज़रूरी नहीं समझा जिसकी वजह वे लोग ही समझते होंगे."

तिरुमूर्ति ने कहा कि एक विविधतापूर्ण और लोकतांत्रिक देश होने की वजह से भारत सदियों से कई धर्मों का घर रहा है. भारत ने दुनिया भर में धर्म के नाम पर दमन का शिकार होने वाले लोगों को पनाह दी है.

उन्होंने कहा, "ऐसे लोगों को भारत में सुरक्षित पनाह मिली है. वे चाहे पारसी हों या बौद्ध या यहूदी हों या फिर किसी और धर्म को मानने वाले लोग."

उन्होंने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोगों के ख़िलाफ़ हिंसा, असहिष्णुता और भेदभाव की घटनाओं के बढ़ने पर गहरी चिंता जाहिर की.

फ्रांस का बयान

संयुक्त राष्ट्र में फ्रांस के स्थाई प्रतिनिधि निकोलस डे रिविरे ने तिरुमूर्ति के बाद महासभा में अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि ये प्रस्ताव सभी तरह के भेदभाव के ख़िलाफ़ हमारी साझा लड़ाई से जुड़ी चिंताओं का जवाब नहीं देता है.

उन्होंने कहा, "धर्म को मानने या न मानने की आज़ादी का जिक्र किए बिना अन्य धर्मों को छोड़कर एक धर्म को तरजीह देकर ये प्रस्ताव धार्मिक असहिष्णुता के ख़िलाफ चल रही लड़ाई को बांटता है."

निकोलस डे रिविरे ने कहा कि समाज में हर तरह के लोग हैं. इनमें बहुत से लोग अलग-अलग धर्मों को मानते हैं या फिर वे किसी को भी नहीं मानते हैं.

साभार बीबीसी 

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