गुजरात के आणंद में प्राकृतिक खेती पर आयोजित राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के समापन सत्र को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने किसानों से प्राकृतिक खेती को अपनाने का आह्वान किया और कहा कि इस दिशा में नए सिरे से शोध करने होंगे और प्राचीन ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक सांचे में ढालना होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि प्राकृतिक खेती का सबसे अधिक लाभ छोटे किसानों को होगा और यदि वह प्राकृतिक खेती का रुख करेंगे तो उन्हें भी इसका लाभ होगा। उन्होंने सभी राज्यों से प्राकृतिक खेती को जन आंदोलन बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ''कृषि के अलग-अलग आयाम हो, खाद्य प्रसंस्करण हो या फिर प्राकृतिक खेती हो, यह विषय 21वीं सदी में भारतीय कृषि का कायाकल्प करने में बहुत मदद करेगा। आजादी के अमृत महोत्सव में आज समय अतीत का अवलोकन करने और उनके अनुभवों से सीख लेकर नए मार्ग बनाने का भी है।''
उन्होंने कहा, ''यह सही है कि रसायन और उर्वरक ने हरित क्रांति में अहम रोल निभाया है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि हमें इसके विकल्पों पर भी साथ ही साथ काम करना होगा और अधिक ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा, ''इससे पहले खेती से जुड़ी समस्याएं भी विकराल हो जाएं, बड़े कदम उठाने का यह सही समय है। हमें अपनी खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना ही होगा। जब मैं प्रकृति की प्रयोगशाला की बात करता हूं तो ये पूरी तरह से विज्ञान आधारित ही है।''
उन्होंने कहा कि खेती में उपयोग होने वाली खाद और कीटनाशक दुनिया के विभिन्न कोनों से अरबों-खरबों रुपए खर्च करके लाना होता है और इस वजह से खेती की लागत भी बढ़ती है, किसान का खर्च बढ़ता है और गरीब की रसोई भी महंगी होती है। उन्होंने कहा कि यह समस्या किसानों और सभी देशवासियों की सेहत से भी जुड़ी है, इसलिए सतर्क व जागरूक रहने की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भले ही रसायन और उर्वरकों ने हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो लेकिन अब खेती को रसायन की प्रयोगशाला से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि इस दिशा में कृषि से जुड़े प्राचीन ज्ञान को ना सिर्फ फिर से सीखने की जरूरत है बल्कि उसे आधुनिक समय के हिसाब से तराशने की भी आवश्यकता है।
इस दौरान पीएम मोदी ने पराली जलाने वाले किसानों को भी नसीहत दी। प्रधानमंत्री ने कहा, 'हमें खेती की तकनीक में होने वाली गलतियों से भी छुटकारा पाना होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि खेत को जलाने से भूमि की उर्वरता का नुकसान होता है। लेकिन पराली जलाने की परंपरा बन गई है। मिट्टी तपती है तो ईंट बन जाती है।'