कविता: कुछ पीड़ाएं सदियों तक पीछा करती हैं

जीवन में रिश्ते बनते हैं , ढह जाते हैं, कुछ स्वप्न‍ दर्द की आँधी में बह जाते हैं

Update: 2021-10-24 10:18 GMT
कविता: कुछ पीड़ाएं सदियों तक पीछा करती हैं
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इतने ग़म हैं दुनिया में फिर भी जीते हैं

अपना चिथड़ा दुख जैसे - तैसे सीते हैं

हम उसी गोत्र-कुल-खानदान के वारिस हैं

अपने आँसू जो चुपके - चुपके पीते हैं।

सुख क्या है जैसे मुखड़ा देखे दर्पण में

दुख लेकिन जीवन को हरदम झुलसाता है

तपती हो रेत जहाँ चलना भी मुश्किल हो

फिर भी राही धीरज से चलता जाता है।

जीवन में रिश्ते बनते हैं , ढह जाते हैं

कुछ स्वप्न‍ दर्द की आँधी में बह जाते हैं

मिल जाते हैं सदियों के बिछड़े कभी-कभी

कुछ दोस्त ज़रा-सी ग़लती से खो जाते हैं।

कुछ पीड़ाएँ सदियों तक पीछा करती हैं

कुछ भूलें जीवन भर ही यहाँ कसकती हैं

कुछ लोगों का जाना जीवन भर खलता है

कुछ यादें कई जन्‍म तक जीवित रहती हैं।

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ओम निश्‍चल ।

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