राजस्थान में सचिन पायलट ले सकते है 20 मई से पहले शपथ, गहलोत को मिला रवानगी का संदेश
कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने राजस्थान में मुख्यमंत्री बदलने का निर्णय ले लिया है । पार्टी द्वारा 13 मई से आयोजित तीन दिवसीय चिंतन शिविर के बाद अशोक गहलोत की कभी भी विदाई हो सकती है । इस निर्णय से गहलोत भी वाकिफ है । इसलिए आजकल उनके बयान और भाषण में सचिन पायलट की बगावत का उल्लेख अवश्य होता है । इसके अलावा आंतरिक पीड़ा स्पस्ट रूप से देखने को मिलती है ।
ऐसा माना जा रहा है कि गहलोत के स्थान पर सचिन पायलट की ताजपोशी होगी । करीब पौने दो साल रहेंगे पायलट के पास बतौर मुख्यमंत्री । इस दौरान उन्होंने प्रदेश की जनता से जो पीसीसी चीफ के नाते वादे किए थे, उनको तेजी से पूरा किया जाएगा । यदि सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनते है तो गहलोत का क्या होगा, राजनेताओ और अफसरशाही में यह जबदस्त चर्चा है ।
यह तो तय है कि सचिन की तरह गहलोत भी राजस्थान छोड़कर जाने वाले नही है । गहलोत की मंशा अभी दस साल तक राजनीति से सन्यास लेने की कतई नही है । ऐसे में उनके पास दिल्ली जाने के अलावा कोई विकल्प नही है । अगर ये दोनों ही राजस्थान में रहते है तो मारधाड़ पहले की तरह बरकरार रहेगी ।
सचिन पायलट के पास फिलहाल खोने को कुछ नही है । जो कुछ भी था, वह छूट चुका है । इनके पास केवल विधायकी बची है जिसे कोई छीन नही सकता है । उधर गहलोत अपने पुत्र वैभव गहलोत के पुनर्वास हेतु चिंतित है । वे चाहते है कि उनके रहते हुए वैभव विधायक बन जाए । गहलोत के कुर्सी से उतरने के बाद कोई वैभव को पार्षद भी नही बनाने वाला है ।
सोनिया से हुई बातचीत में सचिन ने साफ शब्दों में कह दिया कि यदि आप पहले की तरह 15-20 सीट लाने की ख्वाहिशमंद है तो जो चल रहा है, उसे चलने दो । अगरचे राजस्थान में कांग्रेस की सरकार पुनः बने, इसके लिए मुख्यमंत्री का बदलना ही एकमात्र विकल्प है । इनके सीएम रहते पार्टी को कितनी सीट मिली, दोहराने की आवश्यकता नही है ।
ज्ञात हुआ है कि सचिन की बात को न केवल सोनिया ने अहमियत दी बल्कि राहुल और प्रियंका के भी समर्थन किया । पार्टी नेतृत्व यह तो मानता है कि गहलोत को संगठन चलाने में तो महारत अवश्य हासिल है, लेकिन सरकार चलाने में वे फिसड्डी है । आज भ्रस्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी और अराजकता चरम पर है ।
बातचीत के दौरान सोनिया को अवगत कराया गया कि कार्यकर्ताओ को मिलने वाले पदों पर अफसर काबिज होगये है और कार्यकर्ता यतीम की तरह धक्के खाने को विवश है । क्या ऐसे उत्साहहीन कार्यकर्ताओ के भरोसे फिर से राजस्थान में सरकार आ सकती है ? सोनिया के सामने सचिन ने पूरी बेबाकी से यह सवाल रखा ।
सत्ता को चलाने के लिए निश्चय ही कुछ समझौते करने पड़ते है । लेकिन राजस्थान में अपनी कुर्सी बचाने के लिए सीएम ने पूरा सरकारी खजाना खोल दिया है । पार्टी के समर्पित विधायकों के बजाय निर्दलीय और बीएसपी के विधायक मलाई चाटने में सक्रिय है । एक सचिन पायलट को परास्त करने के लिए सरकारी खजाने को निर्ममता से बर्बाद करना महापाप है । जनता तबाही के मंजर को विवश होकर देख रही है । शीघ्र ही इस तबाही को रोका नही गया तो जनता पार्टी को पूरी तरह तबाह कर देगी । जनता जब अपनी पर उतर आती है तो बड़े बड़े दरख़्त उखड़ जाते है । बड़ी नफासत और तर्क के साथ सचिन ने सोनिया के सामने तफसील से अपनी बात रखी ।
उधर दिल्ली से इशारा मिलने के बाद गहलोत ने बोरिया बिस्तर समेटने प्रारम्भ कर दिए है । जब भी किसी मंत्री की विदाई होने वाली होती है, उससे पहले वह अपने कार्यालय और निवास से अवांछित पत्र, दस्तावेज आदि नष्ट करवा देता है । सीएमओ में अधिकांश फालतू कागजात नष्ट करवा दिए गए है । बचे हुए कागजातों की छंटाई जारी है । तीन-चार दिन पहले तो बहुत देर रात तक कागजो को नष्ट करने का सिलसिला चलता रहा ।
जब से मुख्यमंत्री को उनको हटाने की मनहूस खबर मिली है, वे पूरी तरह उदास होगये है । औपचारिकता पूरी करने की गरज से वे चिंतन शिविर आयोजन का स्वांग कर रहे है । हकीकत यह है कि उनकी रुचि और तबीयत दोनो गड़बड़ाने लगी है । तभी तो किसी को नकारा-निकम्मा तो किसी को सार्वजनिक मंच से मेंटली डिस्टर्ब बताने लगे है । लगता है कि सीएम की कुर्सी हिलते देखकर वे भी अस्त-व्यस्त और डिस्टर्ब होगये है ।
पुख्ता तौर पर तो कुछ नही कहा जा सकता है । लेकिन 15 मई के बाद गहलोत के लिए अशुभ दिनों की शुरुआत हो सकती है । नए मुख्यमंत्री के रूप में पायलट शपथ ले सकते है और गहलोत को सामान समेटना पड़े । इस सबकी स्क्रिप्ट तैयार हो चुकी है । केवल फिल्माना बाकी है ।