अरविंद जयतिलक
यह सुखद है कि भारत पांच ट्रिलियन इकोनाॅमी की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। जिस तरह चालू वित्त वर्ष के बजट में पूंजीगत खर्च पर जोर से घरेलू विनिर्माण को गति मिली है और कर राजस्व संग्रह में इजाफा हुआ है उससे साफ है कि भारत के लिए 5000 अरब डाॅलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य साधना अब दूर की कौड़ी नहीं है। देश की जीडीपी की सेहत सुधरी है और कर राजस्व 2021-22 में रिकाॅर्ड 34 फीसद बढ़कर 27.07 लाख करोड़ पर पहुंच गया है।
यह इस मायने में महत्वपूर्ण है कि महामारी की तीन लहरों के बाद यह स्थिति है, जो रेखांकित करता है कि अर्थव्यवस्था सुधार पर है। इसी तरह कंपनी कर संग्र्रह 2021-22 में 8.6 लाख करोड़ रुपए रहा जो पिछले वित्त वर्ष में 6.5 लाख करोड़ रुपए था। पिछले वित्त वर्ष में प्रत्यक्ष कर संग्रह रिकाॅर्ड 49 फीसदी बढ़कर 14.10 लाख करोड़ रुपए रहा। इसी तरह अप्रत्यक्ष कर संग्रह 12.90 लाख करोड़ रुपए रहा। यह संकेत भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था की संभावना को पुख्ता करता है। अच्छी बात यह है कि मजबूत अर्थव्यवस्था के कारण भारत में निवेश को बढ़ावा मिला है और निवेशक भारत में इनवेस्ट करने में रुचि दिखा रहे हैं। माना जा रहा है कि आर्थिक सुधारों और कारोबारी सुगमता के कारण 2022-23 में 100 अरब डाॅलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आ सकता है। उद्योग मंडल पीएचडी चैंबर्स आॅफ काॅमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआइ) का आंकलन है कि चालू वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर 8 फीसदी से अधिक रहेगी।
हालांकि जिस तरह कच्चे तेल के आयात में अत्यधिक डाॅलर का भुगतान करना पड़ रहा है उससे लक्ष्य को साधने में अवरोध उत्पन हो सकता है। उद्योग मंडल पीएचडी चैंबर्स आॅफ काॅमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआइ) ने भारत को 5000 अरब डाॅलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को साधने के लिए कुछ अहम सुझाव दिए हैं। मसलन बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूती देने के लिए निवेश को आकर्षित किया जाए, पीएलआई योजना के तहत इसमें अन्य क्षेत्रों को शामिल किया जाए। कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश के लिए माहौल निर्मित किया जाए। वस्तुओं की ऊंची कीमत और कच्चे माल की कमी की समस्या को दूर किया जाए। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2019 में भारत को 5000 अरब डाॅलर यानी पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था और वैश्विक आर्थिक ताकत बनाने की परिकल्पना की थी। उस समय तमाम आर्थिक विश्लेषकों ने इस परिकल्पना के लक्ष्य पर सवाल उठाया था। याद होगा तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र और सांस्कृतिक नगरी वाराणसी में पांच लाख करोड़ (पांच ट्रिलियन) की अर्थव्यवस्था की क्षमता पर शक करने वाले लोगों को पेशेवर निराशावादी की संज्ञा देते हुए भरोसा जताया था कि उनकी सरकार लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब होगी। उन्होंने यह कहा था कि जिस तरह उनकी सरकार पिछले पांच साल में अर्थव्यवस्था को दो ट्रिलियन की ऊंचाई दी उसी तरह अगले पांच साल में पांच ट्रिलियन का लक्ष्य पूरा होगा। चूंकि वर्ष 2019 में ही संपूर्ण विश्व कोरोना महामारी की चपेट में आ गया और अर्थव्यवस्था बेपटरी हुई ऐसे में भारत के लिए भी चुनौती बढ़ी। लेकिन अगर प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के रणनीतिकारों के पास पांच हजार अरब डाॅलर के लक्ष्य को हासिल करने के रोडमैप उपलब्ध हैं तो भरोसा किया जाना चाहिए। बेशक यह लक्ष्य बहुत बड़ा है लिहाजा आर्थिक मोर्चे पर सरकार को कई चुनौतियों से रुबरु होना पड़ेगा।
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा जा चुका है कि अगले पांच वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था का आकार दोगुना करने का लक्ष्य पाने के लिए मोदी सरकार को विकास दर की रफ्तार 12 फीसद करने के साथ-साथ कई अन्य उपाय तलाशने होंगे। मसलन जीडीपी में 17 फीसद हिस्सेदारी रखने वाला कृषि क्षेत्र जो कि 50 फीसद श्रमशक्ति को रोजगार देता है, उसकी सेहत सुधारनी होगी। यह सच्चाई भी है कि भारतीय कृषि मानसून, एमएसपी, कर्ज के बोझ और बेहतर बाजार तंत्र के अभाव से ग्रसित है। इस दिशा में सरकार को सफलता तभी मिलेगी जब कृषि में निवेश बढे़गा। अच्छी बात है कि केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र के ढांचागत विकास के लिए आने वाले पांच वर्षों में 25 लाख करोड़ रुपए निवेश का खाका तैयार की है। सरकार की मंशा इस निवेश के जरिए सिंचाई के साधन, मंडियों की स्थापना, पोल्ट्री, डेयरी व अन्य उत्पादों के कोल्ड स्टोरेज, ढुलाई और मंडी के ढांचे को मजबूत करना है।
अगर यह योजना मूर्त रुप लेती है तो निःसंदेह किसानों की आमदनी बढ़ेगी और कृषि में नुकसान का जोखिम कम होगा। दूसरी ओर सरकार को कृषि और किसानों की हालत सुधारने के लिए बुनियादी सुविधाओं में निवेश, हर खेत को पानी के अलावा कानूनी सुधार में भूमि पट्टेदारी कानून, ठेके पर खेती, मार्केंट सुधार और आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव करने की भी जरुरत है। अगर सरकार कृषि उपज के रखरखाव, प्रोसेसिंग और लाभकारी मूल्य दिलाने की दिशा में ठोस पहल करती है तो फिर अर्थव्यवस्था कुलांचे मारने में देर नहीं लगेगी। अच्छी बात है कि सरकार ने गत वर्ष 10 हजार नए उत्पादक संगठनों यानी एफपीओ की स्थापना का निर्णय लिया जो कि कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम यानी एपीएमसी एक्ट की बाधाओं से बचने के लिए ये एफपीओई नाम से जुड़े होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्पष्ट मानना है कि पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था का लक्ष्य तभी पूरा होगा जब जनभागीदारी बढ़ेगी।
यानी उन्होंने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए जनता विशेष रुप से ग्रामीण जनता का आह्नन किया है। यह सच्चाई भी है कि जीडीपी ग्रोथ तभी दिखेगी जब ग्रामीण भारत की आय बढ़ेगी। ग्रामीण भारत की आय बढ़ाने के लिए सरकार को कृषि के साथ-साथ बागवानी और मत्स्य पालन जैसे परंपरागत कार्यों पर फोकस बढ़ाना होगा। अगर ग्रामीण युवा बागवानी और मत्स्य पालन में अपने भविष्य को संवारते हैं तो जीडीपी ग्रोथ का बढ़ना तय है। उचित होगा कि सरकार बागवानी और मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण और शैक्षिक कार्यक्रम चलाए। एनुअल स्टेट आॅफ रिपोर्ट -2017 में कहा जा चुका है कि ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को शिक्षा के विशेष अवसर उपलब्ध कराना चाहिए ताकि कृषि के साथ-साथ उससे जुड़ी अन्य बुनियादी ढांचे का निमार्ण तेजी और सहजता से हो सके। ध्यान देना होगा कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर जीडीपी ग्रोथ के लक्ष्यों को हासिल किए बिना 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था संभव नहीं है। इसके लिए सभी क्षेत्रों में आवंटन पर जोर देना होगा। इसमें शिक्षा और स्वास्थ्य भी महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
सरकार को औद्योगिक विकास की गति तेज करने के लिए खनन क्षेत्र और बिजली उत्पादन में जबरदस्त सुधार करने की जरुरत है। सरकार को ध्यान रखना होगा कि पांच ट्रिलियन के लक्ष्य हासिल करने के लिए रोजबार बढ़ाने को काफी जोर देना होगा। इस समय बेरोजगारी दर उच्च स्तर पर है। ऐसे में सरकार को नौकरी उपलब्ध कराने के लिए विकास दर तेज करना होगा। अर्थव्यवस्था को डिजिटल करने के साथ एमएसएमई सेक्टर पर जोर देना होगा। लेकिन यह तभी संभव होगा जब विदेशी निवेश बढ़ेगा। इसके लिए सरकार को टैक्स घटाने, एक समान जीएसटी लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे। इक्विटी टैक्स 20 फीसद से नीचे लाना होगा। सरकार को एफडीआई बढ़ाने की दिशा में ठोस पहल की रणनीति भी बनानी होगी। इसके अलावा सरकार को बजट का लक्ष्य हासिल करने के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने के साथ प्रत्यक्ष आयकर का दायरा बढ़ाना होगा। अगर सरकार इन सभी उपायों को आजमाती है तो 2025 तक 5 ट्रिलियन के लक्ष्य को साधना कठिन नहीं होगा।