छत्तीसगढ़ में आदिवासी महोत्सव, आदिवासी महोत्सव में आदिवासियों का अपमान, यह कारनामा कहीं राजनीतिक साजिश का हिस्सा तो नही?
आमंत्रण कार्ड में आदिवासी सांसद व प्रदेश अध्यक्ष का ही नाम गायब, भूपेश बघेल ने की आदिवासी बाहुल्य राज्य में आदिवासियों की अनदेखी
रायपुर में 1 नबंवर तक चलने वाले राज्योत्सव और राष्ट्रीय आदिवासी उत्सव का 28 अक्टूबर से आगाज हो गया है, जिसमें देश विदेश के आदिवासी कलाकार, नेता, मंत्री, सांसद, विधायक समेत प्रदेश के सत्ता पक्ष और विपक्ष के तमाम प्रमुख नेताओं को आमंत्रित किया गया है। लेकिन राज्योत्सव और आदिवासी महोत्सव कार्यक्रम के आमंत्रण कार्ड में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम, सांसद दीपक बैज और प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष फूलोदेवी नेताम का नाम गायब है। यह तीनों आदिवासी नेता हैं। छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य राज्य है और राज्य की राजनीति में आदिवासी नेताओं की बड़ी अहमियत भी है।
यह राजनेता राज्य की आदिवासी जनता का प्रतिनिधित्व़ करते हैं। यहां पर भूपेश सरकार ने सरासर प्रदेश के आदिवासी वर्ग का अपमान किया है। यहां सवाल उठता है कि क्या मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जानबूझकर आदिवासी नेताओं का अपमान किया है? क्या अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए ऐसा कार्य किया है? यह ऐसे सवाल हैं जिनसे इंकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि हमने देखा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपनी राजनीति को चमकाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। उनके लिए किसी का मान, सम्मान कोई मायने नहीं रखता है।
यहां सवाल उठता है कि कहीं यह राजनैतिक साजिश का हिस्सा तो नहीं है? इतने बड़े आयोजन में इतनी बड़ी चूक साधारण बात नही है। यह कांग्रेस की गुटीय राजनीति का हिस्सा तो नही है? कुछ कांग्रेस नेताओं ने भी आश्चर्य जताया है। इस बड़ी चूक और आमंत्रण कार्ड का जिम्मा जिसको सौंपा गया था उसके खिलाफ क्या कार्रवाई होगी, यह बड़ा प्रश्न है। तीन दिवसीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों से आदिवासी जनजाति समूह शामिल हो रहा है। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के आदिवासी मूलभूत सुविधाओं के लिए आंदोलन कर रहे हैं।
गौरतलब है कि शुभारंभ समारोह में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल, पूर्व राज्यसभा सदस्य बी.के. हरिप्रसाद, यूगांडा और पेलेस्टाइन के काउंसलर और अन्य अतिथि गौर मुकुट और वाद्य यंत्र मांदर धारण कर इस महोत्सव में शामिल हुए। लेकिन दिल्ली के बड़े नेता विश्व आदिवासी महोत्सव में शामिल नहीं हुए। छत्तीसगढ़ विश्व आदिवासी महोत्सव में अति विशिष्ठ अतिथियों की अनुपस्थिति से मंच सूना रहा। बीके हरिप्रसाद को छोड़ कोई भी उपस्थित नहीं हुआ। कोंडागांव MLA मोहन मरकाम को मंच पर जगह ही नहीं मिली। महोत्सव में 07 देशों- नाइजीरिया, उजबेकिस्तान, श्रीलंका, यूगांडा, स्वाजीलैण्ड, मालदीप, पेलेस्टाइन और सीरिया के नर्तक दल सहित देश के 27 राज्यों तथा 6 केंद्र शासित प्रदेशों के 59 आदिवासी नर्तक दल शामिल हो रहे हैं। इन नृत्य करने वाले दलों में लगभग 1,000 कलाकार हैं, जिनमें 63 विदेशी कलाकार भी शामिल हैं।
हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान खोले जाने के ख़िलाफ़ धरना, आदिवासी कर रहे आंदोलन
प्रदेश के आदिवासी अपनी परेशानियों को लेकर कई जगह आंदोलन कर रहे हैं। बीते 14 अक्टूबर से राज्य के सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा ज़िले के बीस से ज़्यादा गांवों के आदिवासी हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान खोले जाने के ख़िलाफ़ धरना दे रहे हैं। उनका आरोप है कि कोल ब्लॉक के लिए पेसा क़ानून और पांचवी अनुसूची के प्रावधानों की अनदेखी की गई है। परसा कोयला खदान हेतु पेसा कानून 1996 और पांचवीं अनुसूची के संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी की है। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग में करीब एक लाख सत्तर हजार हेक्टेयर में फैले हसदेव अरण्य के वन क्षेत्र में जंगलों पर उजड़ने का खतरा मंडरा रहा है। इन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों ने जंगलों को बचाने के लिए मोर्चा संभाल लिया है। दरअसल इस पूरे वनक्षेत्र में कोयले का अकूत भंडार छुपा हुआ है और यही इन जंगलों पर छाए संकट का कारण भी है। पूरे इलाके में कुल 20 कोल ब्लॉक चिह्नित हैं, जिसमें से 6 ब्लॉक में खदानों के खोले जाने की प्रक्रिया जारी है। एक खदान परसा ईस्ट केते बासेन शुरू हो चुकी है और इसके विस्तार के लिए केते एक्सटेंशन के नाम से नई खदान खोलने की तैयारी है। वहीं परसा, पतुरिया, गिधमुड़ी, मदनपुर साउथ में भी खदानों को खोलने की कवायद जारी है। इन परियोजनाओं में करीब एक हजार आठ सौ बासठ हेक्टेयर निजी और शासकीय भूमि सहित सात हजार सात सौ तीस हेक्टेयर वनभूमि का भी अधिग्रहण होना है। खदानों की स्वीकृति प्रक्रियाओं से ग्रामीण हैरान हैं और इसके विरोध में खुलकर सामने आ गए हैं। प्रभावित क्षेत्र के सैकड़ों आदिवासी व अन्य ग्रामीण लामबंद होते हुए विगत 30 दिनों से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हुए हैं। पिछले दिनों अपनी मांगों को लेकर बस्तर से पैदल यात्रा कर रायपुर पहुंचे आदिवासियों के लिए राजभवन के दरवाजे खोल दिए गए। राज्यपाल अनुसुइया उइके ने राजभवन के लॉन में चौपाल लगाई और करीब 300 आदिवासियों को बुठाकर उनकी समस्या सुनी। राज्यपाल ने आदिवासी क्षेत्रों में स्थित इलाकों की इस समस्या के लिए राज्य सरकारों को जिम्मेदार ठहराया। राज्यपाल ने उन्हें भरोसा दिया कि इसके कानूनी पहलुओं का अध्ययन कर नियमानुसार आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
मुस्लिम वर्ग के मंत्री को दिया आदिवासियों का महत्वपूर्ण विभाग
प्रदेश के इतिहास में पहली बार हुआ कि किसी मुस्लिम वर्ग के मंत्री को आदिवासियों से संबंध रखने वाले विभाग का मुखिया बनाया है। इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ है। अभी तक आदिवासियों से संबंधित विभाग का मुखिया आदिवासी वर्ग का ही बना है। लेकिन भूपेश बघेल ने मोहम्मद अकबर को इस विभाग का मुखिया बनाया है। वैसे भी कांग्रेस के पास कई आदिवासी नेता थे जो चुनकर आए हैं। वर्तमान विधानसभा में कुल 29 आदिवासी विधायक चुने गए हैं लेकिन भूपेश बघेल ने केवल तीन को ही मंत्री बनाया है। जबकि सब जानते हैं कि राज्य का गठन ही आदिवासियों के हकों के लिए हुआ है। यह ऐसे फैसले हैं जो दर्शाते हैं कि भूपेश बघेल को आदिवासियों से कितना मोह है।
भेदभावपूर्ण हो रहे राज्य के स्थापना दिवस के आयोजन
01 नबंवर को राज्य का स्थापना दिवस है। इस दिन पूरे प्रदेश में जिला स्तर पर आयोजन होने वाले हैं। वहीं राजधानी रायपुर में तीन दिन तक राज्योत्सव का आयोजन होगा। लेकिन यहां भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भेदभाव कर दिया है। दरअसल जिला स्तर पर होने वाले आयोजनों में प्रभारी मंत्रियों को मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होना है। लेकिन कुछ ऐसे मंत्री भी हैं जिनको स्थापना दिवस पर उपस्थित रहने से वंचित रखा गया है। जिनके नाम हैं- टीएस सिंहदेव बाबा, जयसिंह अग्रवाल, रूद्र गुरू, प्रेमसाय सिंह और उमेश पटेल। यह वह मंत्री हैं जो पिछले दिनों जब भूपेश बघेल दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान के सामने पेश हुए थे उस समय यह मंत्री भूपेश बघेल के साथ नहीं गए थे। यही कारण है कि इन्हें स्थापना दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होने से रोका गया है।