अंग प्रदेश में जनजागरण का अभूतपूर्व दौर शुरू....?

विश्व मातृभाषा दिवस पर होगा अंग जन समागम, मार्च में अंग की संस्कृति और साहित्य पर होगी राष्ट्रीय संगोष्ठी।

Update: 2022-02-11 12:18 GMT

भागलपुर। अंग प्रदेश में अंग की संस्कृति, भाषा,कला और साहित्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व रूप से उथल पुथल शुरू हो गया है। एक तरफ अंगिका भाषा को महत्व दिलाने की मांग पर अविराम आंदोलन शुरू हो गया है, वहीं अंग संस्कृति और साहित्य पर गहरे मंथन के लिए मार्च में एक महत्पूर्ण सेमिनार की तैयारी भी होने लगी है। अंग प्रदेश में साहित्यकारों,पत्रकारों,समाज कर्मियों और आंदोलन कर्मियों सहित जन जन की सक्रियता बढ़ गई है। भाषा,साहित्य और कला को लेकर लोगों की बढ़ती दिलचस्पी पहली बार देखने को मिल रही है। विश्व मातृभाषा दिवस पर अंगिका की उपेक्षा के खिलाफ एक दिन का अंग जन समागम हो रहा है। साथ ही सेमिनार होने वाला है। अंग प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में धरना प्रदर्शन भी पिछले दो महीने से चल रहे हैं। इसमें महिलाएं भी बढ़ चढ़ कर भाग ले रही हैं।

डॉ अमरेन्द्र, डॉ विभू रंजन जायसवाल, डॉ आलोक प्रेमी,कैलाश ठाकुर, सुधीर प्रोग्रामर डा मनोज मीता सहित अनेक लोग अंगिका के मान सम्मान के लिए अहिंसक संघर्ष के मैदान में कूद चुके हैं। मीडिया भी पूरी तरह समर्थन में हैं। इस क्रम में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी और अंगिका विभाग के चर्चित अध्यक्ष और साहित्यकार डॉ योगेन्द्र के मुताबिक पिछले दिनों एक बैठक विद्वानों की हुई। जिसमें दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित करने का निर्णय किया गया। डॉ योगेन्द्र के मुताबिक यह संगोष्ठी 11 और 12 मार्च 2022 को होगी।

सेमिनार का केंद्रीय विषय है- अंग की संस्कृति और उसका साहित्य ।

डॉ योगेन्द्र का कहना है कि सेमिनार के प्रतिभागी इससे जुड़े संदर्भों पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत कर सकते हैं ।

इससे जुड़े उप विषय हो सकते हैं-

1अंग की सांस्कृतिक चेतना: एक विमर्श

2 अंग के स्थापत्य

3 अंग के लोकचित्र ( मंजूषा)

4 अंग के लोकगीत: एक विवेचन

5 अंग की लोकगाथाओं की पड़ताल

6 अंग के मंदिर- मस्जिद आदि धार्मिक स्थलों का विवेचन 7 अंग का ऐतिहासिक संदर्भ

8 अंग की कविताएँ ,कथाएँ

9अंग के नाटक , आलोचना और उपन्यास

10 अंग की नदियॉं आदि।

अंगिका विभाग द्वारा आयोजित होनेवाले सेमिनार की प्रस्तावना की चर्चा करते हुए डॉ योगेन्द्र का कहना है कि अंग का प्राचीनतम उपलब्ध उल्लेख अथर्ववेद में है।उसके एक मंत्र में तक्मन् ( ज्वर) से कहा गया है कि वह अंग, गान्धार ,मगध जैसे देशों में चला जाय।(5।22।14) इस मंत्र का रचनाकार निश्चित तौर से किसी भिन्न इलाक़े का है और अंग को एक भिन्न दृष्टि से देखता है।संभावना दोनों तरह की है कि या तो अंग इतना मज़बूत था कि यहाँ ज्वर टिकता नहीं था या अंग को हीन दृष्टि से देखा जाता था।जो भी हो, इससे इतना ज़रूर पता चलता है कि अंग की एक अलग पहचान है। 2022 में अंग की यह पहचान क्या है? क्या इस जनपद का एक अलग सांस्कृतिक दृष्टिकोण है जिसका उल्लेख वैदिक साहित्य,वेदांग- ग्रंथ,महाभारत, रामायण,पुराण आदि में है? बुद्ध काल में 16 महाजनपदों में पहला महाजनपद अंग है।इस जनपद में बुद्ध,जैन ,सिद्ध हैं तो बहुला- विषहरी,विसु राउत आदि लोकगाथाओं के गीत गूंजते हैं । बहुला - विषहरी अगर वाणिज्यिक संस्कृति से जुड़ी है तो विसु राउत कृषि संस्कृति से।मंजूषा लोकचित्र है तो अनेक सांस्कृतिक स्थापत्य हैं।कर्ण का अभिन्न संबंध इस इलाक़े से है तो सिद्धों की वाणियों की क्रांतिकारी अनुगूँज भी है।अंग की भाषा अंगिका का एक समृद्ध इतिहास है जिसे रचने में हज़ारों रचनाकारों ने अपना योगदान दिया है।अंगिका के लोकगीतों में अंग की ख़ुशियाँ अभिव्यक्त हैं तो वेदना भी है।

अंग जनपद के साहित्य में स्थानीयता है तो वैश्विक दृष्टि भी है।

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