श्री कृष्ण से अदीकत रखने वाले उर्दू शायर..
कहा जाता है कि प्रसिद्ध सूफी बुुज़ुर्ग हजरत निजामुद्दीन औलिया के सपने मेें श्रीकृष्ण आये थे जिसके बाद उन्होंने अमीर खुसरो से श्रीकृष्ण की शान में लिखने को कहा तो अमीर खुसरो ने एक रचना लिखी जिसकी दो पँकतियाँ इस प्रकार हैं..
.....सूफीवाद में प्रेम को सबसे अत्यधिक महत्व दिया जाता है।इसलिए राधा व गोपियों का कृष्ण-प्रेम सूफीवाद के अनुकूल है और यही कारण है कि अनेक मुस्लिम सूफियों ने श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम का बखान बखूबी किया है।
ओडिशा के राज्यपाल गांधीवादी विश्वंभर नाथ पाण्डेय ने अपने एक लेख में लिखा है कि सईद सुल्तान एक शायर हुए हैं जिन्होंने नबी बगश नामक एक ग्रंथ में श्रीकृष्ण को इस्लाम की मान्यता ओं के हिसाब से नबी का दर्जा दिया है।
कहा जाता है कि प्रसिद्ध सूफी बुुज़ुर्ग हजरत निजामुद्दीन औलिया के सपने मेें श्रीकृष्ण आये थे जिसके बाद उन्होंने अमीर खुसरो से श्रीकृष्ण की शान में लिखने को कहा तो अमीर खुसरो ने एक रचना लिखी जिसकी दो पँकतियाँ इस प्रकार हैं ..
ऐ रे सखी मैं जो गयी थी पनिया भरन को। छीन झपट मोरी मटकी पटकी मो से नैना मिलाई के।
इसी क्रम में उर्दू शायरों ने भी श्रीकृष्ण और राधा प्रेम तथा श्रीकृष्ण और राधा व गोपियों की शान में बहुत सी रचनाएं लिखी हैं और श्री कृष्ण से अपनी अकीदत का इजहार किया है। यहाँ पर प्रस्तुत हैं कुछ मुस्लिम शायरों की कृष्ण भक्ति से भरी हुई रचनाओं की पक्तियां । जो हमारे देश की गँगा-जमुनी तहजीब की बेहतरीन मिसाल पेश करती हैं--
1. तू सबका खुदा सब तुझपे फिदा ,
अललाहो गनी अललाहो गनी है कृष्ण कन्हैया।
नन्द लला । अललाहो गनी अललाहो गनी ।।
- नजीर अकबराबादी
2. मथुरा की नगरी है, आशिकी का दम भर्ती है,
आरजू उसी का ,पैगाम-ए-हयात-ए-जावेदाँ था
हर नगमा कृष्ण बाँसुरी का ।
- मौलाना हसरत मोहानी
3. क्या खूब तेरी शान है या हजरत-ए-कृष्ण,
गीता से मिलता ज्ञान है या हजरत-ए-कृष्ण।
लीलाएं तेरी ऐसी हैं कि दिल को मोह लें ,
मुरली की सुर का ध्यान है या हजरत-ए-कृष्ण ।। .
- शारिक रब्बानी
4. ऐसा दरपन मुझे कन्हैयाई दे,
जिसमें मेरी कमी दिखाई दे ।
दे कलम अपनी बाँसुरी जैसा,
अपनी रंगत की रौशनाई दे ।।
- बेकल उत्साही
5. वृन्दावन में कृष्ण कन्हैया अल्लाहु,
वंशी राधा गीता गैया अल्लाहु।
मौलवियों का सज़दा पंडित की पूजा,
मजदूरों की हईया हईया अल्लाहु ।।
- निदा फ़ाज़ली
6. अगर कृष्ण की तालीम आम हो जाये,
तो फ़़ित्ना-गरो का काम तमाम हो जाये।
मिटाए बरहमन शेख तफ्ररूकात अपने,
जमाना दोनों घरों का गुलाम हो जाये।।
- अली सरदार जाफरी