उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कमान संभालने के साथ ही जानें कैसे बदल रहा है चुनावी समीकरण
अभी कुछ महीने पहले तक उत्तर प्रदेश में भाजपा नेतृत्व के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई थी । कार्यकर्ताओं की नाराज़गी, पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसानों का कृषि बिल को लेकर विरोध, बेरोजगारी का मुद्दा उठाने पर पुलिस लाठीचार्ज, चयन परीक्षा के पेपर लीक होने की निरंतरता, नौकरशाही की मनमानी जैसे तमाम गंभीर आरोपों का सामना कर रहे राज्य के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ को जैसे ही पार्टी के सर्वोच्च सेनापति का साथ मिला, उत्तर प्रदेश में राजनीतिक आबोहवा में भाजपा को एक संजीवनी प्राप्त हो गई है। एक तरफ़ जहां पूर्वांचल एक्सप्रेस पर लड़ाकू विमानों की टच लैंडिंग के साथ भाजपा के चुनावी अभियान का शंखनाद हो गया है वहीं कृषि बिल को वापस लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समस्त विपक्ष के साथ साथ किसान नेता राकेश टिकैत के अप्रत्यक्ष राजनीतिक महत्वाकांक्षा के खेल को भी बिगाड़ दिया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार उत्तर प्रदेश में योजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण कर रहे हैं और इसी कड़ी में कल बलरामपुर में सरयू कैनाल परियोजना को उन्होंने उत्तर प्रदेश की जनता को समर्पित कर दिया और उसके अवसर पर उन्होंने विपक्ष पर चुनावी हमलों की बौछार भी की। कल 13 दिसंबर 2021 को भाजपा और स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक ऐतिहासिक पल बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में श्री काशी-विश्वनाथ मंदिर के भव्य मंदिर कारिडोर के उद्घाटन के साथ ही एक बड़ा संदेश देश के हिन्दू जनमानस को देंगे। ज़ाहिर है श्री काशी-विश्वनाथ मंदिर कारिडोर हिन्दू जनमानस की आस्था का केंद्र है और आजादी के सत्तर साल बाद उसके जिर्णोद्धार का श्रेय नि:संदेह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा को जाता है एवं आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा नेतृत्व इसे जरूर प्रदेश की जनता के सामने लेकर जायेगी।
इन सभी अभियानों के बीच उत्तर प्रदेश में विपक्ष अब भी किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में है। समाजवादी पार्टी और उसके मुखिया श्री अखिलेश यादव जो अभी पिछले महीने तक एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी लग रहे थे अब स्वयं गठबंधन के लिए छोटे छोटे दलों के सामने मत्था टेकते नज़र आ रहे हैं तो वहीं कभी पार्टी के मजबूत स्तंभ रहे उनके चाचा शिवपाल यादव भी उनके सामने साथ लड़ने का प्रस्ताव भेज चुके है लेकिन अखिलेश यादव पश्चिम उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी के लोकदल के साथ सीटों पर मत्था पच्चीसी में लगे हैं क्योंकि कृषि बिल वापिस लेने के कारण पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव आ गया है।
बहुजन समाज पार्टी और उसकी मुखिया सुश्री मायावती तो जैसे नेपथ्य में चले गई है। बहुजन समाज पार्टी का अभियान सोशल मीडिया और ट्विटर अकाउंट से चल रहा है और ऐसे मे मायावती केवल वोट कटवा की भुमिका अदा करने जा रही है जिसका सीधा फायदा भाजपा को होगा। कांग्रेस इस पूरे परिदृश्य में कहीं भी लड़ाई में नहीं है और इस बार उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती उनके गढ़ रहे रायबरेली में मिलेगी जहां भाजपा नेतृत्व अदिति सिंह के साथ बड़ी चुनौती पेश करने जा रहा है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के कमान संभालने के साथ ही उत्तर प्रदेश में चुनावी समीकरण बदल गया है और विपक्ष के पास इसका कोई तोड़ हाल फिलहाल तो नही दिखाई दे रहा है।
डॉ रविन्द्र प्रताप सिंह, रिसर्च असिस्टेंट, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद नई दिल्ली