सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि समाज की आत्मीयता व समता आधारित रचना चाहने वाले सभी को प्रयास करने पड़ेंगे। सामाजिक समरसता के वातावरण को निर्माण करने का कार्य संघ के स्वयंसेवक सामाजिक समरसता गतिविधियों के माध्यम से कर रहे हैं।
जनसंख्या नीति
देश के विकास की बात सोचते हैं तो और एक समस्या सामने आती है, जिससे सभी चिंतित हैं, ऐसा लगता है। गति से बढ़ने वाली देश की जनसंख्या निकट भविष्य में कई समस्याओं को जन्म दे सकती है। ऐसे विषयों के प्रति जो भी नीति बनती हो, उसके सार्वत्रिक संपूर्ण तथा परिणामकारक क्रियान्वयन के लिये अमलीकरण के पूर्व व्यापक लोक प्रबोधन तथा निष्पक्ष कार्रवाई आवश्यक रहेगी।
सद्यस्थिति में असंतुलित जनसंख्या वृद्धि के कारण देश में स्थानीय हिन्दू समाज पर पलायन का दबाव बनने की, अपराध बढ़ने की घटनाएँ सामने आयी हैं। पश्चिम बंगाल में हाल ही के चुनाव के बाद हुई हिंसा में हिन्दू समाज की जो दुरवस्था हुई उसका, शासन प्रशासन द्वारा हिंसक तत्वों के अनुनय के साथ वहां का जनसंख्या असंतुलन यह भी एक कारण था। इसलिए यह आवश्यक है कि सब पर समान रूप से लागू हो सकने वाली नीति बने। अपने छोटे समूहों के संकुचित स्वार्थों के मोहजाल से बाहर आकर सम्पूर्ण देश के हित को सर्वोपरि मानकर चलने की आदत हम सभी को करनी ही पड़ेगी।
हिन्दू मंदिरों का प्रश्न
हिन्दू मंदिरों की आज की स्थिति एक अहम प्रश्न है। दक्षिण भारत के मन्दिर पूर्णतः वहां की सरकारों के अधीन हैं। शेष भारत में कुछ सरकार के पास, कुछ पारिवारिक निजी स्वामित्व में, कुछ समाज द्वारा विधिवत् स्थापित विश्वस्त न्यासों की व्यवस्था में हैं। कई मंदिरों की कोई व्यवस्था ही नहीं ऐसी स्थिति है। मन्दिरों की चल/अचल सम्पत्ति का अपहार होने की कई घटनाएँ सामने आयी हैं। प्रत्येक मन्दिर तथा उसमें प्रतिष्ठित देवता के लिए पूजा इत्यादि विधान की परंपराएँ तथा शास्त्र अलग-अलग है, उसमें भी दखल देने के मामले सामने आते हैं। भगवान का दर्शन, उसकी पूजा करना, जात-पात-पंथ न देखते हुए सभी श्रद्धालु भक्तों के लिये सुलभ हों, ऐसा सभी मन्दिरों में नहीं है, यह होना चाहिये। मन्दिरों के, धार्मिक आचार के मामलों में शास्त्र के ज्ञाता विद्वान, धर्माचार्य, हिन्दू समाज की श्रद्धा आदि का विचार लिए बिना ही निर्णय किया जाता है, ये सारी परिस्थितियाँ सबके सामने हैं। सेक्युलर होकर भी केवल हिन्दू धर्मस्थानों को व्यवस्था के नाम पर दशकों शतकों तक हड़प लेना, अभक्त/अधर्मी/विधर्मी के हाथों उनका संचालन करवाना आदि अन्याय दूर हों, हिन्दू मन्दिरों का संचालन हिन्दू भक्तों के ही हाथों में रहे तथा हिन्दू मन्दिरों की सम्पत्ति का विनियोग भगवान की पूजा तथा हिन्दू समाज की सेवा तथा कल्याण के लिए ही हो, यह भी उचित व आवश्यक है।