उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव-2022 में अभी भी स्वास्थ्य, आखिर कोई मुद्दा क्यों नहीं !
भारत के लिए अगले 10 साल हेल्थ फैसिलिटी के लिए बेहद चुनौती पूर्ण रहने वाले हैं। इस वर्ष के इकनॉमिक सर्वे में है कि देश की 17 फीसदी आबादी अपनी कुल कमाई का 10 फीसदी हेल्थ पर खर्च करती है
लेखक - रुद्र प्रताप दुबे
..हालांकि हर पार्टी स्वास्थ्य को बुनियादी जरूरत मानती है, लेकिन असलियत यह है कि सरकारी स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा इतना जर्जर है कि देश की बड़ी आबादी प्राइवेट हॉस्पिटल में अनाप-शनाप बिलों के साथ इलाज कराने के लिए विवश है। केंद्र सरकार ने खुद संसद में स्वीकार किया है कि देश में कुल एलोपैथी डॉक्टर्स का मुश्किल से 20 फीसदी ही सरकारी सेवाओं में है। जाहिर है भारत में अधिकतर नागरिक अपने इलाज के लिए निजी डाक्टरों या अस्पतालों पर ही निर्भर हैं।
ऐसे समय जब हमने दो खतरनाक कोविड की लहरें झेली हैं और तीसरी लहर के लगभग मुहाने पर खड़े हैं तब यूपी चुनाव के दौरान जनता का बुनियादी सवाल यह होना चाहिए कि प्राइवेट हॉस्पिटल के इस शोषण का विकल्प किस दल के पास है? ये तो तय है कि सरकारी स्वास्थ्य ढांचा खड़ा करने में हम इतना पिछड़ चुके हैं कि इसे पटरी पर लाने में सालों लगने वाले हैं, तब हमारी प्राथमिकता यही होनी चाहिए कि हमें प्राइवेट हॉस्पिटल और उनके अनैतिक बिलों से निबटना होगा।
भारत के लिए अगले 10 साल हेल्थ फैसिलिटी के लिए बेहद चुनौती पूर्ण रहने वाले हैं। इस वर्ष के इकनॉमिक सर्वे में है कि देश की 17 फीसदी आबादी अपनी कुल कमाई का 10 फीसदी हेल्थ पर खर्च करती है। हर पांच में से एक भारतीय इलाज के लिए कर्ज लेता है और ये सब इसीलिए है क्योंकि सरकारों ने शिक्षा और स्वास्थ्य के विषय में आजादी के बाद से सिर्फ झूठ ही बोला है। राज्य सरकारों की लगातार नाकामी आज आम आदमी के बचत के पैसों को खा रही है।
मैंने कोविड के दौरान भी कहा था कि हमारा मेडिकल सिस्टम Collapse नहीं बल्कि Expose हुआ था। Collapse वो चीज होती है जो खड़ी होती है। हमारा मेडिकल सिस्टम कभी इतना दुरुस्त था ही नहीं, जो collapse होगा। पहले हमारे जानने वाले कुछ लोग हॉस्पिटल जाते थे और लौट कर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की लूट और दुर्दशाओं को बताते थे लेकिन कोविड के दौरान हजारों लोग गए और उन्होंने एक आवाज में पूरे मेडिकल सिस्टम की पोल खोल कर रख दी है।
कुछ मुद्दे हमें न्यूज पेपर देंगे, कुछ मुद्दे पॉलिटिकल पार्टी देंगी लेकिन कम से कम हमें तो पता ही होना चाहिए कि इस बार चुनाव में हमारा असल मुद्दा क्या होना चाहिए।