क्या भ्रष्टाचार के मामलों में भी बनेगा देश नंबर वन ?
लेखक ने इससे पहले किसानों के भूमि अधिग्रहण बिल को वापसी कराने तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ मिलकर अहम भूमिका निभाई, साथ ही किसान विरोधी तीनों कानूनों को आठ जून को पोस्टमार्टम करके देश की सरकार और कृषि मंत्री को अवगत कराया था.
व्यंग लेख: डॉ राजाराम त्रिपाठी, राष्ट्रीय संयोजक भारतीय किसान महासंघ (आइफा)
कहा जाता है कि हमारे पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक सामान्य चर्चा के दौरान विकासशील देश की अर्थव्यवस्था के लिए भ्रष्टाचार को जरूरी तथा कार्य निष्पादन का गति उत्प्रेरक बताया था। यह सही है या गलत यह तो नेहरु जी ही जानें, पर यह सही है कि पिछले कुछ दशकों में हमारे देश में भ्रष्टाचार को शिष्टाचार का दर्जा ऐलानिया रुप से मिल गया है।
अगर भ्रष्टाचार का वैश्विक परिदृश्य देखें तो पाएंगे की धीरे-धीरे कम भ्रष्टाचार की दलदल में आकंठ डूबते जा रहे हैं,, अब केवल भ्रष्टाचार का रसातल छूना भर बाकी है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी इस सूचकांक के अनुसार, भारत भ्रष्टाचार के मामले में 180 देशों की सूची में 80वें स्थान पर है, जबकि वर्ष 2018 में भारत इस सूचकांक में 78वें स्थान पर था अर्थात भ्रष्ट देशों की सूची में भारत दो पायदान और नीचे फिसल गया है । यह अधोगामी गति अगर इसी तरह जारी रही तो शीघ्र ही हम भ्रष्टाचार के मामले में पृथ्वी के सिरमौर देश बन सकते हैं। भ्रष्टाचार के मामले में हम पूरी तरह आत्मनिर्भर देश बन चुके हैं तथा 'सबका साथ भ्रष्टाचार का विकास' ध्येय वाक्य की दिशा में हमारे देश के नेता गण, नौकरशाह, व्यापारी, कार्पोरेट्स सभी समवेत दृष्टिकोण से एकजुट होकर जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। घोटाले तथा भ्रष्टाचारियों के क्षेत्र में हमने नित नूतन नवाचार के जरिए महान कीर्तिमान स्थापित किए कोयला ,बिजली, 2G, 3G ,नौकरी भर्ती,खेल- टूर्नामेंट, पशु चारा,तोप, हवाई जहाज,बैंक, अस्पताल,जमीन, सैनिकों के कफन, जैकेट, जूते जैसी कोई भी मानव जाति के काम में आने वाली वस्तु अथवा सेवा हमारे भ्रष्टाचार के दायरे से नहीं बची है। भ्रष्टाचार के मामले में हमने जल, थल, नभ ही नहीं जमीन के नीचे भी हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार के जबरदस्त कीर्तिमान स्थापित किए हैं। फिर भी हम विश्व में भ्रष्टाचार के क्षेत्र में नंबर 1 नहीं बन पाए ? धिक्कार है हम पर?
और अब तो इस पर लगाम लगाने के लिए जिम्मेदार संस्थाएं जैसे कि मीडिया , न्यायपालिका, चुनाव आयोग ने भी ताल से ताल मिलाते हुए, इस व्यापक राष्ट्रहित में अपने अपने नये युगधर्म तलाश लिए हैं । देश हित को देखते हुए , सभी इस इस गुरुतर कार्य , इस महायज्ञ में अब कूद पड़े हैं। हम सब मिलकर दिखा देंगे कि भारत कभी विश्व गुरु रहा हो या ना रहा हो, किंतु भ्रष्टाचार के मामले में तो यह विश्व का नंबर एक बनकर रहेगा। आखिर फलाने जी हैं, तो भला क्या असंभव है ? इसलिए यह निश्चित रूप से संभव है। संभावनाएं तलाशी जानी ही चाहिए। देश में हर बुद्धिमान , राष्ट्रभक्त व्यक्ति इस देश को आगे ले जाने के लिए कृत संकल्प है ,और इसलिए भ्रष्टाचार की संभावनाओं को निरपेक्ष भाव से तलाश रहा है। नेतागण भी दलगत राजनीति तथा आपसी भेदभाव से ऊपर उठकर पूर्णतया निरपेक्ष भाव से भ्रष्टाचार की संभावनाएं तलाशते में साधनारत हैं। जिन मूढमतियों को भ्रष्टाचार की संभावनाएं लाख ढूंढने पर भी नहीं मिल पा रही हैं केवल वही अभागे हताश तथा क्रोधित हैं,और भ्रष्टाचार के खिलाफ बेवजह काठ की तलवार भांज रहे हैं । देश को भ्रष्टाचार के मामले में पहले पायदान पर पहुंचने के मार्ग में दरअसल यही देशद्रोही बाधक हैं। वैसे भी भ्रष्टाचार में नवाचार के कोई कम कीर्तिमान हमने स्थापित नहीं किए हैं। चावल दाल में कंकड़ मिला लें तथा मसालों में घोड़े- गधे की लीद मिलाकर खाने जैसे घटिया स्तर के भ्रष्टाचार के दकियानूसी तरीकों से हम कई पायदान ऊपर उठ चुके हैं। दूध में यूरिया की मिलावट की बात हो अथवा घी में जानवरों की चर्बी की मिलावट की बात हो, यह सब अब हमारे लिए छोटी और सहज बातें हैं। जहरीली शराब बनाने का मामला हो, या फिर जानमारू नकली दवाइयां बनाने, बेचने की बात हो,,, दवा - दारू दोनों में निष्काम कर्म योग भाव से हम मिलावट करते हैं, अब चाहे इसे खा पीकर कोई जिएं अथवा मरें उससे भला हमें क्या ।
भाई मेरे, जन्म और मरण तो ईश्वर के हाथ में होता है ना? और मान लो कि हमारी जहरीली दवा-दारू शराब से अगर लोग मर भी जाते हैं तो ऐसी कौन सी आफत आ गई ? बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियंत्रण के देशहित के महती कार्य में आखिर हम सब का भी तो कोई योगदान बनता है कि नहीं? अभी हाल में देश की राजधानी के निकट एक श्मशान में, अंतिम संस्कार के लिए आए हुए शोकाकुल लोगों के सिर पर स्थानीय प्रशासन का बनाई हुई छत भर-भराकर गिर गई और 25 लोग स्वर्ग सिधार गए। इसमें भला स्थानीय प्रशासन और श्मशान मे भवन बनाने वाले ठेकेदार का भला क्या दोष ?? यह सवाल उठाना लाजिमी है कि मृतक के शोकाकुल परिजनों को जब या ज्ञान था कि यह भवन सरकारी विभाग ने ठेके पर बनवाया है ,तो यह जानते हुए भी बरसते पानी में भीगते हुए 2 मिनट का मौन व्रत करने के बजाय उस सरकारी भवन के नीचे आखिर जाकर क्यों खड़े हुए? क्या इससे पहले कोई सरकारी भवन, अस्पताल, स्कूल नहीं ध्वस्त हुए हैं? अभी पिछले ही साल बनारस में निर्माणाधीन ओवरब्रिज के यकायक जमींदोज हो जाने पर दर्जनों जाने चली गई , जनहित में और व्यापक देश हित में ऐसी घटनाएं रोज हर शहर में घटित हो रही है ,पर हमारे देश के की जनता की मति मारी गई है कि इन सब से कोई सबक नहीं ले रही है।
हम तो ठेकेदार के भ्रष्टाचार के प्रति समर्पण तथा विशिष्ट कर्तव्य निष्ठा की सराहना करेंगे , जिसने सामान्य भवन तथा श्मशान घाट के भवन निर्माण कार्य में किंचित भी पक्षपात पूर्ण रवैया नहीं अपनाया तथा निष्पक्ष भाव से सीमेंट की जगह रेत व अन्य समस्त घटिया निर्माण सामग्रियों का बेधड़क उपयोग किया। अब उस भवन को तो टूटना ही था। कुछ लोग कह रहे हैं कि उसका लेंटर कमजोर था इसलिए भरभरा कर गिरा कुछ लोग कह रहे हैं तो उसके पिलर कमजोर थे। अब पिलर यानी खंभे की अगर बात करें तो देश के लोकतंत्र के खंभे भी तो कमजोर हो चले हैं।कुछ मूर्खों को केवल चौथे खंभे की फ़िक्र है,, किंतु हमारा चतुर सुजान मुखिया जानता है लोकतंत्र का 70 साला भवन के सभी खंभों को भ्रष्टाचार की दीमक पूरा का पूरा चाट चुकी है, और यह भी कभी जनता के सिर पर भरभरा कर ढह सकता है, इसलिए वह अपने तथा अपने पंचों के लिए नया भवन बनाने की फिराक में है। अब उसके ठेकेदार क्या उसमें क्या गुल खिलाएगे यह तो गुलशन का माली ही बता सकता है। एक बार फिर आते हैं श्मशान भवन के निर्माण पर।
क्या हमें एक बार भी उस ठेकेदार की तारीफ नहीं करनी चाहिए जिसने यह जानते हुए भी कि सभी को एक न एक दिन सब कुछ छोड़ छाड़ कर श्मशान जाना ही जाना है, इस सर्वव्यापी वैराग्य भाव से ऊपर उठते हुए , देश के समग्र भ्रष्टाचार हित में श्मशान गृह में भी कर्तव्य पथ से बिना डिगे, घटिया भवन निर्माण की महान परंपरा को कायम रखा। ठेकेदार ने बताया कि चाहे कोई अन्य सरकारी भवन हो अथवा श्मशान घाट का निर्माण हो निष्पक्ष तथा निरपेक्ष भाव से 30 से 40% कमीशन पूरी ईमानदारी से अपने अधिकारियों को सादर अर्पित करता है। मैं तो बलिहारी जाता हूं उसकी सत्य निष्ठा पर और उस अदा पर , कि किस तरह चैनलों के सामने छाती ठोक कर वह इस भ्रष्टाचार को सहर्ष स्वीकार करते हुए, 40 प्रतिशत कमीशन , माफ़ करिएगा 'कार्य उत्प्रेरक शुल्क' अदा करने का वीरता पूर्वक उद्घोष करता है। धन्य हैं ऐसे ठेकेदार नेता जी, इंजीनियर तथा ऐसे अधिकारी, ऐसे ही वीरों के बल पर भारत भ्रष्टाचार की दौड़ में अव्वल आकर रहेगा। हमारे यह भ्रष्टाचारी रणबांकुरे राष्ट्रहित में किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेंगे और दूसरे देश चाहे कितना भी जोर लगा लें, पर भ्रष्टाचार के मामले में हम जिस तरह से पूरे उत्साह व समर्पण भाव से लक्ष्य की ओर तीव्र गति सेआगे बढ़ रहे हैं, उससे यह तय है कि जल्द ही हम सबको पीछे छोड़ देंगे।
हमें तो तरस आता है उन लोगों की बुद्धि पर जो बेवजह देश को विश्व का विश्व गुरु मनाने की निष्फल चेष्टा कर रहे हैं। हम ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के द्वारा किए गए आकलन को नकारते हैं, निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र के तहत भारत को नीचा दिखाने की उद्देश्य हमें इस क्षेत्र में अव्वल होने के दर्जे से वंचित किया गया है, जिसका हम सब राष्ट्रहित में विरोध करते हैं। दरअसल हमारा यह दावा है कि पूरे विश्व में भ्रष्टाचार के सभी स्वरूपों का सभी स्तरों पर अगर पूरी ईमानदारी और निष्पक्ष भाव से मूल्यांकन किया जाए तो भ्रष्टाचारी देश नंबर -1 की पगड़ी अंततः भारत की माथे पर सजेगी। शायद इससे नेहरू जी की आत्मा को विशेष रूप से चैन और सुकून मिलेगा कि भारत ने आखिरकार विकासशील राष्ट्र से विकसित राष्ट्र के बीच के सफर का एक मुख्य पड़ाव पार कर लिया है।
लेखक ने इससे पहले किसानों के भूमि अधिग्रहण बिल को वापसी कराने तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ मिलकर अहम भूमिका निभाई, साथ ही किसान विरोधी तीनों कानूनों को आठ जून को पोस्टमार्टम करके देश की सरकार और कृषि मंत्री को अवगत कराया था.