मायावती पश्चिमी यूपी के मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, बरेली, आगरा व अलीगढ़ मंडलों के मुख्य सेक्टर प्रभारियों से अलग-अलग मिल रही हैं। मुख्य सेक्टर प्रभारियों से वह जमीनी हकीकत के बारे में समझने के साथ जरूरी दिशा-निर्देश दे रही हैं। यह माना जा रहा है कि मायावती चुनावी अभियान के शुरुआत पश्चिमी यूपी के किसी मंडल मुख्यालय से कर सकती हैं।
कहां से करेंगी अभी इस पर मंथन किया जा रहा है। बसपा जानकारों का कहना है कि अन्य चुनावों की अपेक्षा इस बार मायावती की अधिक चुनावी सभाएं भी कर सकती हैं। इसकी खास वजह यह भी है कि बसपा में मायावती के अलावा कोई दूसरा नेता नहीं है जो चुनावी कमान संभाल सके।
बसपा सुप्रीमो मायावती वर्ष 2007 जैसी जीत के लिए चुनावी रणनीति बनाने में जुटी हुई हैं। मायावती इस बार पश्चिमी यूपी को बसपा के लिए सबसे मुफीद मानकर चल रही हैं। वजह, वह स्वयं पश्चिमी यूपी से आती हैं और जिस जाटव बिरादरी से वो हैं उनका वोट बैंक भी यहीं पर सर्वाधिक है। मायावती यह मानकार कर चल रही हैं कि किसान आंदोलन और अल्पसंख्यकों की नाराजगी का सबसे अधिक फायदा बसपा को मिलने वाला है। इसीलिए वह इन दिनों पश्चिमी यूपी के नेताओं से मुलाकात कर रहीं हैं।
पश्चिमी यूपी के 23 जिलों में कुल 136 विधानसभा सीटें हैं। पश्चिमी यूपी ने जब-जब जिस पार्टी का साथ दिया उसे सत्ता नसीब हुई। वर्ष 2007 में बसपा ने यहां बेहतर प्रदर्शन किया और सरकार बनी। अगर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा को सर्वाधिक सीटें यहीं से मिली।
इसीलिए मायावती इस बार पश्चिमी यूपी पर विशेष ध्यान दे रही हैं। उन्होंने अल्पसंख्यक नेता मुनकाद अली और शमसुद्दीन राईनी को पश्चिमी यूपी में लगा रखा है। इन दोनों नेताओं को अल्पसंख्यकों को अपने पाले में लाने की जिम्मेदारी दी गई है। इसके साथ ही जाटव बिरादारी को साथ लाने के साथ संगठन के लोगों को लगाया गया है।