वैसे तो पीएम केयर्स एक दान पेटी है लेकिन इसके लिए वसूली हो रही है। बाकायदा। तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने संसद में यही आरोप लगाया था सरकारी उपक्रमों के कर्मचारियों की तनख्वाह से पैसे कैसे काटे गए हैं और तरीका यह होता है कि जिसे न कटवाना हो वह लिखकर दे (और अपनी पहचान बताए, आगे की अघोषित अनजानी कार्रवाइयों को झेलने के लिए तैयार रहे) और जो नहीं देते हैं या दे पाते हैं उनकी तनख्वाह से पैसे काटकर दानपेटी में डिजिटली डाल दी जाती है।
जवाब में वित्त मंत्री ने प्रधानमंत्री राहत कोष पर सवाल उठाए और कहा कि उसमें पारदर्शिता नहीं है। पर उसे ना जनता सरकार में बंद किया गया ना भाजपा के शासन में ना उसकी किसी गड़बड़ी के लिए किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है। उसके लिए ऐसी वसूली की कोई शिकायत मेरी जानकारी में नहीं है।
पीएम केयर्स के समर्थन में अक्सर दोनों को एक बता दिया जाता है। ना कोई पूछता है, ना बताया जाता है कि एक था ही तो दूसरे की जरूरत क्यों पड़ी? और 1947 से चला आ रहा पीएम केयर्स ठीक नहीं था तो उसे बंद क्यों नहीं किया गया और जनता से जबरन पैसे लेकर भी यह जनता के प्रति जवाबदेह क्यों नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर का लिंक कमेंट बॉक्स में है जो बताता है कि कैसे सरकारी उपक्रमों के कर्मचारियों पैसे काट कर पीएम केयर्स में जामा कराए गए हैं और इस तरह दान देने वालों में रेलवे भी है|
जिसने लाचार, बेरोजगार और परेशान गरीबों से श्रमिक स्पेशल के नाम पर ज्यादा किराया वसूला, छिपाने की पूरी कोशिश की, गलतबयानी की और करीब 100 लोगों के मर जाने, 3000 से ज्यादा शिकायतें मिलने के बावजूद यह दावा किया कि ट्रेन में अमानवीय स्थिति होने की कोई शिकायत नहीं है और किसी को मुआवजा नहीं दिया गया है क्योंकि किसी ने मांगा ही नहीं। जय हो।